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कहा जाता है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है. ये कहावत देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बारे में तो बिलकुल सही साबित हो रही है. और ये इतिहास सिर्फ 3 साल में दोबारा आ गया है. अगर आपको ये बात समझ नहीं आ रही, तो याद कीजिए कि पेट्रोल-डीजल की मौजूदा कीमत आपने इससे पहले कब चुकाई थी. चलिए हम बता देते हैं.
उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के दाम नीचे गिरने लगे थे और उसका असर यहां भी कीमतों में गिरावट के रूप में दिखा था. लेकिन आपको ये जानकर हैरत होगी कि सितंबर 2014 में क्रूड की कीमत थी 97 डॉलर प्रति बैरल, जबकि फिलहाल इसकी कीमत है करीब 54 डॉलर प्रति बैरल. (देखें ग्राफिक्स)
यानी आज क्रूड की अंतरराष्ट्रीय कीमत 3 साल पहले के मुकाबले करीब आधी है, फिर भी पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतें उसी स्तर पर हैं. इसकी बड़ी वजह है कि पिछले तीन सालों में पेट्रोल-डीजल पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने टैक्स की दरों में जोरदार बढ़ोतरी की है. नवंबर 2014 से लेकर अब तक केंद्र सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी में नौ बार बढ़ोतरी की. हालत ये है कि दिल्ली में सितंबर 2014 में जहां केंद्र सरकार पेट्रोल पर प्रति लीटर 10.43 रुपए की एक्साइज ड्यूटी वसूलती थी, अब वो दोगुने से भी ज्यादा है 21.48 रुपए प्रति लीटर. (देखें ग्राफिक्स)
डीजल पर एक्साइज ड्यूटी तो और भी ज्यादा बढ़ी है. सितंबर 2014 से अब तक ये करीब 4 गुना हो चुकी है. सितंबर 2014 में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी थी 4.52 रुपए प्रति लीटर जो अभी 17.33 रुपए है. (देखें ग्राफिक्स)
पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में इस बढ़ोतरी से सरकार के राजस्व में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है. पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के आंकड़ों के मुताबिक, जहां साल 2014-15 में केंद्र सरकार को इससे 99,184 करोड़ रुपए का राजस्व मिला था, वहीं साल 2016-17 में ये बढ़कर 2.43 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि पेट्रोल-डीजल की इन ऊंची कीमतों की जिम्मेदार सिर्फ केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी है.
राज्य सरकारों ने भी पेट्रोल-डीजल पर वैट की दरें बढ़ाकर अपने राजस्व में बढ़ोतरी की है. पेट्रोल पर राज्यों में वैट की न्यूनतम दर है 25 फीसदी और महाराष्ट्र में तो ये करीब 47 फीसदी है. (देखें ग्राफिक्स)
पेट्रोल के मुकाबले डीजल पर वैट की दरें कम हैं, फिर भी उत्तर पूर्व के राज्यों को छोड़कर कहीं भी इसकी दरें 15 फीसदी से कम नहीं हैं. डीजल पर सबसे ज्यादा वैट आंध्र प्रदेश में लगता है जहां इसकी दर है करीब 31 फीसदी. पेट्रोल-डीजल की कीमतें ऊंची होने की वजह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के टैक्स ही हैं, क्योंकि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों और फ्यूल पंप डीलरों का मार्जिन मूल ईंधन की मूल कीमत के 10-12 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है. (देखें ग्राफिक्स)
हमारे और आपके पास जो पेट्रोल 69.71 रुपए में पहुंचा, उसमें (21.48+14.82= 36.30 रुपए) सिर्फ टैक्स है. यानी पेट्रोल की कीमत का आधा से ज्यादा हम और आप टैक्स में दे रहे हैं.
इस सवाल का जवाब बस इतना है कि अगर सरकारें टैक्स की दरें कम करने को तैयार होती हैं तो शायद ऐसा ना हो. फिलहाल तो केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कीमतों में कमी के लिए टैक्स की दरें घटाने से इनकार किया है. और जब केंद्र सरकार अपनी कमाई छोड़ने को तैयार नहीं दिख रही तो फिर राज्य सरकारें ऐसा करेंगी, इसकी उम्मीद कम है. वो तो इसी बात के लिए तैयार नहीं हैं कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को जीएसटी के दायरे में लाया जाए.
(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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