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OPS लागू करने वाले राज्य को चाहिए NPS का पैसा, केंद्र की ना, पेंशनधारियों पर असर

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के तहत कर्मचारियों की जमा बचत राशि पर राज्यों का दावा कानूनी रूप से मान्य नहीं: PFRDA

प्रतीक वाघमारे
बिजनेस
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<div class="paragraphs"><p>OPS लागू करने वाले राज्य को चाहिए NPS का पैसा, केंद्र की ना, पेंशनधारियों पर असर</p></div>
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OPS लागू करने वाले राज्य को चाहिए NPS का पैसा, केंद्र की ना, पेंशनधारियों पर असर

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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वित्त मंत्री निर्मला सितारमण (Nirmala Sitharaman) ने कहा है कि, नियमों के तहत एनपीएस (नेशनल पेंशन व्यवस्था) का पैसा राज्यों को वापस नहीं किया जाएगा. दरअसल ये जवाब राजस्थान सीएम अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) की मांग को लेकर था जिसमें उन्होंने कहा था कि NPS का पैसा सरकार को मिलना चाहिए, ऐसा न होने पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने तक की बात कही है.

बता दें कि राजस्थान पुरानी पेंशन व्यवस्था (ओपीएस) लागू कर चुका है, ऐसे में उन्हें एनपीएस में जमा हुआ पैसा वापस चाहिए.

आइए हम आपको पूरा मामला समझाते हैं, इसमें पेंच कहां है वो भी बताएंगे, OPS, एनपीएस क्या है, सब कुछ समझिए.

1 जनवरी से 2004 से देशभर में पुरानी पेंशन व्यवस्था (ओपीएस: ओल्ड पेंशन स्कीम) को बंद कर के नई पेंशन व्यवस्था (एनपीएस: नेशनल पेंशन स्कीम) को लागू किया गया था. उस समय पश्चिम बंगाल इकलौता राज्य था जिसने ओपीएस को जारी रखा और एनपीएस को अपनाने से इनकार कर दिया था. लेकिन धीरे धीरे दूसरे राज्यों ने भी ओपीएस को अपनाना शुरू कर दिया.

आज की तारीख में जिस राज्य में विपक्षी दल सत्ता में हैं वहां ओपीएस को फिर बहाल किया गया है. जैसे छत्तीसगढ़, पंजाब, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश.

साल 2022 में बजट पेश करने के दौरान राजस्थान सरकार ने भी ओपीएस को लागू किया, और अब केंद्र सरकार से एनपीएस में जमा हो रहे पैसे की मांग की लेकिन केंद्र ने नियमों का हवाला देते हुए एनपीएस का फंड लौटाने से मना कर दिया है.

केंद्र सरकार ने पहले भी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने से मना किया था. वहीं, कांग्रेस शासित राज्यों ने एनपीएस में जमा कर्मचारियों की रकम को देने के लिए केंद्र से आग्रह किया था, जिसे केंद्र ने मना कर दिया था. इस मामले में पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण (PFRDA) ने संबंधित राज्यों को सूचित किया है कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के तहत कर्मचारियों की जमा बचत राशि पर राज्यों का दावा कानूनी रूप से मान्य नहीं है. पेंशन नियामक ने एनपीएस प्रावधानों की विस्तृत कानूनी जांच के बाद राज्यों को बताया है कि कर्मचारियों की जमा राशि को सरकारी खजाने में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है. इसलिए राज्यों को कर्मचारियों की जमा राशि नहीं मिल सकेगी.

तो क्या पेंशनधारियों का पैसा फंस गया है. क्योंकि अब तक कर्मचारियों का पैसा एनपीएस में जमा हो रहा था लेकिन ओपीएस के लागू होने के बाद जमा होना बंद हो गया. तो जितना पैसा सरकार के पास एनपीएस में जमा है उस पैसे का क्या होगा? ये सवाल है.

नई और पुरानी पेंशन व्यवस्था में क्या अंतर है

पुरानी पेंशन व्यवस्था (OPS)

पुरानी पेंशन व्यवस्था में सरकारी कर्मचारी को अपनी तरफ से पेंशन के लिए कोई पैसा नहीं देना होता था. जब भी वह रिटायर होगा और उस समय उसकी जो भी तनख्वा (बेसिक सैलेरी और डीए) का 50 फीसदी पेंशन बाकी का जीवन व्यापन करने के लिए दी जाएगी. मान लीजिए रिटायरमेंट के वक्त आपकी सैलेरी 80 हजार रुपये है तो उसका 50% यानी 40 हजार रुपये आपकी पेंशन बनेगी.

इसके फायदे-नुकसान की बात करें तो कर्मचारियों को काफी फायदा है:

  • काम करने के दौरान पेंशन के लिए सैलेरी में से कोई कटौती नहीं होगी

  • रिटायरमेंट के बाद आखरी सैलेरी का 50% हिस्सा पेंशन के रूप में मिलेगा

  • रिटायरमेंट के बाद मौत होने पर पत्नी/पति को पेंशन का 50% हर महीने मिलेगा

लेकिन सरकार को इसमें नुकसान ज्यादा है:

  • सरकारी खजाने पर बहुत बोझ पड़ता है

  • रिटायरमेंट के बाद कई सालों तक पेंशन देनी होती है, फिर उसके पति/पत्नी को पेंशन देनी होती है

  • राज्य सरकारें पहले ही काफी कर्ज में हैें

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नेशनल पेंशन व्यवस्था (NPS)

2003 के बाद केंद्र ने ओपीएस को बंद कर एनपीएस की शुरुआत की. एनपीएस में कर्मचारी के सैलेरी में से 10% हिस्सा पेंशन के लिए निकाला जाता है और इतना ही पैसा सरकार भी उसमें जोड़ देती है. अब केंद्र 10% की जगह 14% का योगदान देती है. हर महीने इस पैसे को एनपीएस फंड में डाला जाता है.

एनपीएस पहले सरकारी कर्मचारियों के लिए ही होता था लेकिन 2009 में इसे भारत के हर नागरिकों के लिए खोल दिया गया.

एनपीएस का फंड पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (PFRDA) के पास जाता है जो इसे शेयर मार्केट में निवेश करता है. एनपीएस का रिटर्न फिक्स नहीं होता.

अगर कोई कर्मचारी रिटायरमेंट की उम्र से पहले ही रिटायर हो जाए तो जितना पैसा एनपीएस में जमा हुआ है उसका 20% कर्माचारी निकाल सकता है, बाकी 80% पैसा जिसे एन्युटी कहते हैं वो पेंशन के रूप में दिया जाता है. वहीं अगर रिटायरमेंट की उम्र में रिटायरमेंट होने पर कर्माचारी 40% पैसा निकाल सकता है और बाकी 60% पैसा एन्युटी होगा.

इसके फायदे-नुकसान की बात करें:

  • कर्मचारी की सैलेरी का 10% हिस्सा हर महीने कटेगा यानी खुद की पेंशन के लिए खुद ही पैसा जुटाना होगा

  • कोई फिक्स रिटर्न नहीं मिलेगा

  • रिटर्न शेयर बाजार पर आधारित होगा, अगर मार्केट अच्छा तो पेंशन अच्छी इसका उलटा होने पर नुकसान

  • सरकार को रिटायरमेंट का बाद जीवन भर अपने कर्मचारी को पेंशन नहीं देना होगा

ओपीएस को लागू करना राज्य के लिए कितना मुश्किल है? 

एक बात साफ है कि कर्मचारियों के लिए एनपीएस से ज्यादा अच्छी स्कीम ओपीएस है. लेकिन पुरानी पेंशन स्कीम राज्य के लिए एक नुकसान का सौदा है. सरकारी खजाने पर बोझ है. ओपीएस वैसे तो काफी कल्याणकारी योजना है लेकिन इसकी आर्थिक व्यावहारिकता को भी देखना जरूरी है.

भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू किये जाने को लेकर आगाह किया है. केंद्रीय बैंक ने कहा है कि इससे राज्यों के स्तर पर राजकोषीय परिदृश्य को लेकर बड़ा जोखिम है और आने वाले वर्षों में उनके लिये ऐसी देनदारी बढ़ेगी, जिसके लिये पैसे की व्यवस्था नहीं है.

आरबीआई ने ‘राज्य वित्तः 2022-23 के बजट का अध्ययन' शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में यह बात ऐसे समय कही है जब हाल ही में हिमाचल प्रदेश ने महंगाई भत्ते से जुड़ी पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) फिर से लागू करने की घोषणा की है.

साल 2021-22 की बात करें तो राजस्थान सरकार की कमाई 1,86,325 थी. सरकार का खर्च 2,90,691 रहा. यानी सरकार कुल 48,238 (फिस्कल डेफिसिट) के घाटे में थी. पेंशन पर सरकार 23,391 खर्च करती है. आंकड़ों से साफ समझ आता है कि घाटे में चल रही सरकार के लिए ओपीएस लागू करना आसान नहीं है. यही हाल देश के अधिकतर राज्यों का है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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