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RBI सालाना रिपोर्ट:रूरल मार्केट को दें रफ्तार,रोजगार को मिले धार

देश की इकनॉमी में मौजूदा स्लोडाउन को खत्म करने के लिए आरबीआई ने खपत और निजी निवेश बढ़ाने की सिफारिश की है

दीपक के मंडल
बिजनेस
Published:
रिजर्व बैंक ने अपनी  वार्षिक रिपोर्ट में इकनॉमी को दुरुस्त करने के लिए कई तरीके सुझाए हैं
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रिजर्व बैंक ने अपनी  वार्षिक रिपोर्ट में इकनॉमी को दुरुस्त करने के लिए कई तरीके सुझाए हैं
(फोटो : द क्विंट) 

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देश की इकनॉमी में मौजूदा स्लोडाउन को खत्म करने के लिए आरबीआई ने खपत और निजी निवेश बढ़ाने की सिफारिश की है. अपनी सालाना रिपोर्ट में आरबीआई ने इकनॉमी में स्लोडाउन को साइक्लिक करार दिया है. उसकी नजर में यह स्ट्रक्चरल दिक्कतों की वजह से स्लोडाउन का सामना नहीं कर रही है. 2018-19 की अपनी रिपोर्ट में आरबीआई ने इकनॉमी की चुनौतियों का जिक्र करते हुए कई उपाय भी सुझाए हैं. आइए जानते हैं इस रिपोर्ट की क्या हैं बड़ी बातें

आरबीआई ने सालाना रिपोर्ट में पेश की ये तस्वीर

  1. आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अगर मांग में स्लोडाउन जारी रहा तो यह देश की वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम भरा हो सकता है. इसलिए सरकार को अर्थव्यवस्था में भूमि, श्रम और कृषि सेक्टर पर भी सुधारों पर जोर देना होगा. खास कर एग्रीकल्चरल मार्केटिंग पर ज्यादा ध्यान देना होगा, जिससे किसानों को उनकी फसल की वाजिब कीमत मिले. इससे देश में मांग में इजाफा होगा.
  2. रिपोर्ट में मैन्यूफैक्चरिंग में गिरावट में चिंता जताई गई है. इसमें कहा गया है कि मैन्यूफैक्चरिंग को मजबूती नहीं मिली तो ग्रामीण और शहरी इलाकों दोनों जगह रोजगार और इनकम में इजाफे को बड़ा झटका लगेगा. देश में कैपिटल गुड्स में निवेश में कमी पर भी गहरी चिंता जताई गई है. साफ है कि यह निवेश घटने के संकेत दे रहे हैं.
  3. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि कंज्यूमर नॉन ड्यूरेबल्स (तुरंत इस्तेमाल होने वाले सामान) में मांग की कमी सबसे बड़ी चिंता है. बड़ी कंज्यूमर गुड्स कंपनियों की बिक्री घट गई है. उनका वॉल्यूम कम हुआ है और एफएमसीजी प्रोडक्टस की वॉल्यूम ग्रोथ तो दहाई अंक से नीचे आ गई है.
  4. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग की कमी फसलों की कीमत न बढ़ने का नतीजा है. इसने खपत और निवेश दोनों मोर्चे पर चिंता बढ़ाई है. ग्रामीण इलाकों में आय में इजाफा न होने से खपत भी घटी है. इस वजह से पूंजी निवेश में कमी आई है. दरअसल देश की जीडीपी में खपत की हिस्सेदारी 57 फीसदी है. इस वजह से स्लोडाउन का खतरा ज्यादा बढ़ गया है.
  5. वित्त वर्ष 2018-19 में GST कलेक्शन 162,300 करोड़ रुपये की कमी दर्ज की गई है, जबकि इनकम टैक्स कलेक्शन भी 56,300 करोड़ रुपये घट गया है. इसके लिए साल में दो बार टैक्स छूट को जिम्मेदार ठहराया गया है. इससे एवरेज GST Rate 12.2% से गिरकर 11.6% रह गई.
  6. नोटबंदी के वक्त यह दावा किया गया था कि इससे कैश ट्रांजेक्शन में कमी आएगी और काले धन पर लगाम लगेगी. लेकिन कैश ट्रांजेक्शन काफी बढ़ गया है. नोटबंदी के जरिए लोगों को कैशलेस इकनॉमी की ओर प्रेरित क रने की कोशिश हुई थी लेकिन अभी भी कैश में लेनदेन बहुत ज्यादा है.
  7. आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी बैंक में फ्रॉड के मामले बढ़ गए हैं. वित्त वर्ष 2018-19 में आधे से अधिक बैंक फ्रॉड पब्लिक सेक्टर बैंकों में ही हुए. कुल बैंक फ्रॉड्स में 55.8 फीसदी हिस्सा सरकारी बैंकों का है.

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