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26 साल के अमित पारकर को अपने पिता की हार्ट सर्जरी के लिए पैसों की जरूरत थी. बैंकों ने उन्हें लोन देने से मना कर दिया, क्योंकि उन्होंने तीन साल पहले एक मोटरसाइकिल लोन चुकाने में देरी की थी. एक ट्रैवल फर्म में काम करने वाले अमित ने अपनी किस्मत आजमाई लेन-देन क्लब में, जो एक ऑनलाइन पोर्टल है और कर्ज लेने वाले और देने वाले लोगों को जोड़ता है. उन्हें वहां से 70,000 रुपये मिल गए.
अमित जैसे लोगों के लिए पीयर-टू-पीयर लेंडिंग प्लेटफॉर्म एक बढ़िया आॅप्शन है, जिन्हें बैंक लोन देने से हिचकते हैं. फिनटेक स्टार्टअप्स ने इसे बेहद आसान कर दिया है- जिन लोगों को पैसे की जरूरत है, उन्हें उनसे मिलाया जाए जो पैसे देना चाहते हैं.
बैंक लोन जल्दी चुकाने की इच्छा रखने वाले यंग प्रोफेशनल से लेकर किसी इमरजेंसी या हॉलिडे के लिए पैसे की जरूरत वाले, हर तरह के कर्जदार यहां आ रहे हैं.
इनमें से ज्यादातर छोटे कर्ज हैं, और बाजार भी छोटा है. अभी हर महीने कुछ सौ ऐसे कर्ज बंट रहे हैं और लेने वाले या तो खराब क्रेडिट रिकॉर्ड वाले लोग हैं या फिर टेक-सैवी. हालांकि अगर रिजर्व बैंक इस बारे में गाइडलाइंस लेकर आए, तो बाजार बढ़ सकता है. और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बुधवार को साफ किया कि पी-2-पी लेंडिंग प्लेटफॉर्म को नॉन-बैंक फाइनेंस कंपनियों के बराबर माना जाएगा.
ऊंचे दरों के बावजूद लोग यहां से कर्ज लेने को तैयार रहते हैं क्योंकि उन्हें यहां बैंक जैसी जटिल प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता. कर्ज भी छोटी रकम के होते हैं इसलिए ब्याज दरों में 5 फीसदी का अंतर भी बड़ा नहीं लगता.
यही वजह है कि 25 साल की जागृति मिश्रा जैसे लोग जोखिम उठाकर कर्ज देने के लिए तैयार रहते हैं. पी-2-पी लेंडिंग के बारे में उन्हें एक दोस्त से पता चला. बंगलुरू की एक कंपनी में काम करने वाली जागृति ने आई2आईफंडिंग पर 8,000 रुपए का लोन देकर शुरुआत की थी.
इसके आठ महीने बाद ही, जागृति ने 60,000 रुपए का कर्ज देने का जोखिम उठा लिया. और जोखिम उठाती क्यों नहीं, जब उन्हें रेकरिंग डिपॉजिट पर करीब 7 फीसदी ब्याज के मुकाबले यहां 22 फीसदी का ब्याज मिल रहा था.
मुंबई के एक इन्वेस्टमेंट बैंकर के मुताबिक पीयर-टू-पीयर लेंडिंग एक मीडियम-रिस्क इन्वेस्टमेंट है. लेकिन रेगुलेटर की तरफ से कोई साफ गाइडलाइंस नहीं होने की वजह से अब तक बड़े निवेशक इससे दूर थे.
स्टार्टअप इंटेलिजेंस फर्म, ट्रैक्शन की अक्टूबर 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से 2016 के दौरान सिर्फ पांच पीयर-टू-पीयर लेंडिंग कंपनियां ही निवेशकों से करीब 80 लाख डॉलर की रकम जुटा पाई थीं.
पी-टू-पी स्टार्टअप्स के मुताबिक फिलहाल बिजनेस महीने-दर-महीने 15-20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है. “ऐसा बहुत बड़ा बाजार है जिसकी जरूरत बैंक और एनबीएफसी पूरी नहीं कर पाते,” लेनदेन क्लब के को-फाउंडर भाविन पटेल कहते हैं, जो हर महीने 150 ट्रांजैक्शन करता है और कर्ज की औसत रकम होती है 1 लाख रुपए.
फेयरसेंट के को-फाउंडर, रजत गांधी के मुताबिक कर्ज लेने और देने वालों में सबसे आगे हैं मिलेनियल्स. इनके 18,000 सदस्यों में करीब 60 फीसदी 35 साल से कम उम्र के हैं. लेनदेन क्लब के दो-तिहाई से ज्यादा यूजर्स 30-40 साल की उम्र के हैं. वो ज्यादातर लाइफस्टाइल सुधारने के लिए कर्ज लेते हैं. और यहीं पर आता है डिफॉल्ट का जोखिम.
लेनदेन क्लब के 1 फीसदी कर्ज अभी तक चुकाए नहीं गए हैं, जबकि आई2आईफंडिंग के मामले में डिफॉल्ट करीब 4 फीसदी है. लेकिन लेनदेन क्लब में निवेश करने वाले वेंचर कैपिटल फर्म अर्थ इंडिया वेंचर्स के पार्टनर अनिरुद्ध दमानी मानते हैं कि पी-2-पी लेंडिंग में भी उतना ही जोखिम है जितना किसी बैंक में. इसलिए वो कर्ज देने में भी डाइवर्सिफिकेशन को जरूरी मानते हैं.
(स्रोत: bloombergquint.com )
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