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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
उपलब्धियों की फेहरिस्त इतनी लंबी कि 14 पेज की सीवी बन गई, IIT बॉम्बे फिर न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से पढ़ाई राष्ट्रपति अवॉर्ड, लंदन बिजनेस स्कूल और बैंक ऑफ लंदन में काम कर चुके खुद को गरीबों का रघुराम राजन बताने वाले RBI डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य का कार्यकाल खत्म होने से 6 महीने पहले ही दिया इस्तीफा विरल आचार्य ही थे जिन्होंने RBI के अधिकारों के लिए सबसे पहले खुलकर आवाज उठाई थी. कहते हैं कि RBI में विरल अकेले पड़ गए थे. याद कीजिए पिछले साल अक्टूबर में आचार्य ने कहा था-
दरअसल सरकार RBI सेक्शन 7 लागू करना चाहती थी जिससे वो RBI पर हुक्म चला सके जबकि आचार्य RBI की ऑटोनॉमी बचाने के पक्ष में थे.
उर्जित पटेल
RBI गवर्नर उर्जित पटेल को खुद यही सरकार लेकर आई थी उन्होंने भी वक्त से पहले इस्तीफा दे दिया था. उनका कार्यकाल खत्म हो रहा था सितंबर 2019 में लेकिन उन्होंने दिसंबर 2018 में ही इस्तीफा दे दिया. नोटबंदी से लेकर RBI के अधिकारों में हस्तक्षेप को लेकर उर्जित भी सरकार से नाराज थे.
रघुराम राजन
अब याद कीजिए रघुराम राजन की विदाई का किस्सा. महंगाई के मोर्च पर मील का पत्थर कायम करने वाले रघुराम राजन ने जून 2016 में ही ऐलान कर दिया था कि वो बतौर आरबीआई गवर्नर दूसरा कार्यकाल नहीं चाहते. राजन भी RBI में सरकार की बेजा दखलअंदाजी के खिलाफ थे.
अरविंद सुब्रह्मण्यन
सरकार से बड़े अफसरों के मतभेद का ये पैटर्न RBI तक सीमित नहीं रहा. देश के इकोनॉमिक स्ट्रक्चर का एक और अहम नाम मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रह्मण्यन ने भी कार्यकाल खत्म होने से करीब एक साल पहले इस्तीफा दे दिया.
अरविंद पानगढ़िया
नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष बने अरविंद पानगढ़िया की भी कहानी कुछ ऐसी ही है नीति आयोग का ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर खड़ा वाले पानगढ़िया ने कार्यकाल खत्म होने से ढाई-तीन साल पहले ही इस्तीफा दे दिया.
कुल मिलाकर इस सरकार में इस्तीफा देने वाले ज्यादातर बड़े अर्थशास्त्रियों का उससे मतभेद रहा . आचार्य के इस्तीफे के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि हमें बाहर से टैलेंट लाने की क्या जरूरत है, घर में टैलेंट की कमी है क्या? कुछ ने तो बाहर से आने वाले अर्थशास्त्रियों की निष्ठा तक पर सवाल उठा दिया है.
इन सवालों का जवाब देते हुए वरिष्ठ बिजनेस जर्नलिस्ट पूजा मेहरा ने लिखा है. देश के अयोग्य अर्थशास्त्री पद पाने के लिए बाहर से आए, काबिल भारतीय अर्थशास्त्रियों के खिलाफ अभियान चलाते रहते हैं. वरिष्ठ पत्रकार एमके वेणु ने भी कहा है कि पहले जिन संस्थाओं को अर्थशास्त्री चलाते थे. अब उनमें से ज्यादातर पर ब्यूरोक्रेट्स का कब्जा हो गया है.
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