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तेल की घटी कीमतों और बढ़े आबकारी करों की वजह से भापत को 1.2 लाख करोड़ रुपए की बचत होने की संभावना है.
और संभवत: इससे वित्तमत्री अरुण जेटली को राजकोषीय घाटे (सरकार की कमाई और खर्च का अंतर) को 5.56 लाख करोड़ के लक्ष्य ताक लाने में मदद मिलेगी, जो कि गसकल भारतीय उत्पाद (GDP) का 3.9 प्रतिशत होगा.
यह स्थिति तब है जब देश को सीधे करों से होने वाली आय के कम होने की उम्मीद है. इससे चालू खाते के घाटे (देश के निर्यात और आयात का अंतर) को भी निर्धारित लक्ष्य यानी GDP के 1.3% तक लाने में भी मदद मिलेगी. वित्तीय वर्ष 2015-16 की पहली छमाही में यह घाटा GDP का 1.4% है, इसे साल के अंत तक 1.3% तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
तेल की कम हुई कीमतों की वजह से देश को 2.7 लाख करोड़ की बचत होगी, लेकन घटते हुए निर्यात के कारण इसमें से 1.7 लाख करोड़ कम हो जाएंगे. ऐसे में देश को कुल 1 लाख करोड़ का फायदा होने की उम्मीद है.
अगर दिसंबर तक इकट्ठा होने वाले आबकारी करों की दर पिछले तीन महीनों की तरह ही रही तो, 2015-16 में बढ़े हुए आबकारी करों की वजह से सरकार को 20,000 करोड़ का फायदा और होगा. करीब 1.2 लाख करोड़ रुपए के इस फायदे से सरकार अपने कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की बढ़ी हुई तनख्वाहें देगी, यह पैसा वन रेंक वन पेंशन और सैनिकों की विधवाओं पर भी खर्च किया जाएगा. वित्त मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक इन दोनों ही योजनाओं के लिए सरकारी खजाने से 1.1 लाख करोड़ रुपए की जरूरत है.
तेल की कीमतों में गिरावट न होने की स्थिति में 130 लाख सरकारी कर्मचारियों और सैनिकों की तनख्वाह में हुई इस बढोतरी के लिए पैसा जुटाना मुश्किल हो जाता. ब्रेट क्रूड तेल की कीमत में $30 प्रति बैरल से नीचे पहुंच गई है. आखिरी बार इतनी कम कीमत 2004 या फिर 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान देखी गई थी. जनवरी 2016 में भारत में आने वाले तेल की कीमत $110 से $26 प्रति बैरल तक लुढ़क गई थी.
एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री शौगाता भट्टाचार्या ने बताया कि, तेल की कमतों में इतनी ज्यादा गिरावट विकसित बाजारों और चीन में तेल की मांग की कमी की वजह से हुई है.
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