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देश का टैक्स सिस्टम सवालों के घेरे में है, क्योंकि एसी रेस्टोरेंट में खाना खाएं या अपना भविष्य संवारने के लिए छात्र प्राइवेट कोचिंग लें, दोनों पर लगने वाला सर्विस टैक्स अब जीएसटी जैसा है. शराब के जीएसटी से बाहर होने पर राज्य सरकारें लगभग 18 फीसदी टैक्स वैट के जरिए वसूल रही हैं.
मुंबई के चार्टर्ड एकाउंटेंट दर्शन मेहता का कहना है, "कोचिंग और निजी ट्यूशन पढ़ने जाने वाले छात्रों से 18 प्रतिशत सेवा कर की वसूली किसी भी सूरत में अच्छी नहीं है. एक तो सरकार बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रही है, दूसरी ओर छात्र कहीं कोचिंग या ट्यूशन पढ़ने जाता है तो उसकी शिक्षा सेवा कर (अब जीएसटी) के चलते और महंगी हो जाती है."
मध्य प्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने सूचना के अधिकार के तहत केंद्रीय राजस्व विभाग के डीजीएसडीएम से जो जानकारी हासिल की है, वह चौंकाने वाली है. यह बताती है कि केंद्र सरकार को कोचिंग और निजी ट्यूशन से मिलने वाला सर्विस टैक्स का राजस्व चार साल में लगभग तीन गुना हो गया है. वर्ष 2012-13 में 757 करोड़ का राजस्व मिला था, जो बढ़कर 2016-17 में 2041 करोड़ हो गया है.
देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय इंदौर के पूर्व कुलपति भरत छापरवाल का कहना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकारों की है, मगर उसने दोनों ही क्षेत्र में हाथ डाल दिए हैं. उन्होंने कहा कि निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, कोचिंग और प्राइवेट ट्यूशन पर सर्विस टैक्स बढ़ाकर सरकार ने इनडायरेक्ट रूप से निजी संस्थानों को ही संरक्षण दिया है.
उन्होंने कहा, "मुसीबत में तो गरीब छात्र होंगे, पहले तो उनके लिए फीस का इंतजाम आसान नहीं, ऊपर से सर्विस टैक्स की दोहरी मार. हां, अमीर घरों के बच्चों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता."
सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ सवाल करते हैं कि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में यह कैसे होना चाहिए कि बार में शराब पीने और गुरु के चरणों में बैठकर ज्ञान हासिल करने पर लगने वाला 'टैक्स' एक समान हो. सरकार को तो कोचिंग और निजी ट्यूशन पर लगने वाले टैक्स को कम से कम रखना चाहिए या खत्म कर देना चाहिए.
मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अधिकारी जय मैथ्यू का कहना है कि पहले निगम के होटल और बार में 10 प्रतिशत वैट और छह प्रतिशत सर्विस चार्ज लगता था.
सवाल उठता है कि अगर आपको अपना ज्ञान बढ़ाना है, मगर सरकारी स्कूल और कॉलेज में कारगर इंतजाम नहीं है, तो आप क्या करेंगे? ऐसे में सिर्फ एक ही रास्ता है. वह है कोचिंग और ट्यूशन का सहारा लेना. यह काम भी उतना आसान नहीं है, क्योंकि सरकार एक तरफ जरूरतों को पूरा नहीं कर रही है और दूसरी ओर छात्रों व उनके परिजनों पर टैक्स का बोझ बढ़ा रही है. सरकार का यह कदम कल्याणकारी और लोकहितकारी सरकारों की परिभाषा के उल्टा ही माना जाएगा.
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