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गरीबों और बिजनेस को नोटबंदी ने बहुत गहरी चोट पहुंचाई है, जिसका अंदाजा आर्थिक आंकड़ों या इंडेक्स या इंडिकेटर से नहीं लगाया जा सकता. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी सरकार की नोटबंदी की पहली सालगिरह पर दिए इंटरव्यू में यह बात कही.
साल भर पहले सरकार ने 500 और1,000 रुपये के सभी नोटों को अमान्य घोषित कर दिया था.
ब्लूमबर्गक्विंट के कंट्रीब्यूटिंग एडिटर प्रवीण चक्रवर्ती को दिए इंटरव्यू में मनमोहन सिंह ने कहा कि नोटबंदी से स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (एसएमई) में बड़े पैमाने पर रोजगार खत्म हुए हैं. वह इससे फिक्रमंद दिखे.
उन्होंने कहा कि नोटबंदी से समाज में शायद गैर-बराबरी भी बढ़ रही है. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ''...आर्थिक विकास का हमारा जो मॉडल है, उसमें गैर-बराबरी बढ़ने का डर हमेशा रहा है. नोटबंदी ने शायद इसे बढ़ावा दिया है, जिसे भविष्य में खत्म करना मुश्किल होगा. भारत में काफी विविधता है. इसलिए हमारे यहां आर्थिक गैर-बराबरी कहीं बड़ी सामाजिक समस्या साबित हो सकती है.''
मनमोहन सिंह ने माना कि ये मकसद अच्छे हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा, ''हमें अपनी इकनॉमिक प्रायरिटी को ठीक करना होगा. क्या कैशलेस इकोनॉमी से छोटी कंपनियों को बड़ा बनाने में मदद मिलेगी? इसका जवाब हमारे पास नहीं है. हमें छोटी कंपनियों को बड़ा बनाने वाली नीतियों पर ध्यान देना चाहिए.''
पूर्व प्रधानमंत्री जाने-माने अर्थशास्त्री भी हैं. नोटबंदी और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के जरिये देश के विशाल असंगठित क्षेत्र को टैक्स के दायरे में लाने की कोशिश के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए सिर्फ अच्छी नीयत से काम नहीं चलेगा, मकसद भी हासिल होना चाहिए.
सिंह ने कहा, ''यह काम दबाव डालकर या धमकी देकर या छापे मारकर नहीं होना चाहिए. ऐसा होगा तो उसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे.''
कुछ अनुमानों में कहा गया है कि देश की अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र का योगदान 40 पर्सेंट से अधिक है.
मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार से आपसी सहमति के साथ काम करने की अपील की. उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि नोटबंदी पर अब सियासत खत्म हो जानी चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी को इस पर अपनी भूल माननी चाहिए और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सबका सहयोग लेना चाहिए.''
(स्रोत: bloombergquint.com)
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