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अंबानी भाइयों के झगड़े के बाद सायरस मिस्त्री का टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाया जाना कॉरपोरेट लड़ाई की सबसे बड़ी खबर है. रतन टाटा ने सायरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाया है. हालांकि, औपचारिक फैसला टाटा संस के बोर्ड ने लिया. नौ मेंबरों के बोर्ड में रतन टाटा ने वोट नहीं किया. क्योंकि, बोर्ड को उन्हें ही अंतरिम चेयरमैन बनाना था. बाकी अाठ में से 6 सदस्यों ने मिस्त्री को हटाने के पक्ष में वोट दिया. दो मेंबरों ने वोट नहीं किया. यानी, प्रस्ताव का विरोध किसी ने नहीं किया.
ये दीपावली के पहले का इतना बड़ा धमाका है कि इसके कारणों और असर को समझने में वक्त लगेगा. सबसे पहले शेयर बाजार हो सकता है कि टाटा शेयरों पर फिलहाल दबाव रहे क्योंकि ट्रेडर अनिश्चय के माहौल से थोड़ा घबराएं. इसीलिए संभव है कि रतन टाटा बहुत जल्दी अपनी रणनीति की जानकारी दें. ये उनके लिए जरूरी होगा.
इस बहुत बड़े घटनाक्रम पर ये बड़ी बातें जाननी जरूरी है-
रतन टाटा कारोबार बढ़ते देखना चाहते थे, जबकि सायरस के राज में ग्रुप की ग्रोथ नहीं हो रही थी. सायरस ने टाटा के सुझाव गंभीरता से नहीं सुने. सुन कर कहा कि लागू करेंगे, लेकिन किए नहीं.
बॉम्बे हाउस से जो बातें बाहर आ रही हैं उसके मुताबिक सायरस कारोबारी दिक्कतों के लिए लीगेसी इश्यू को जिम्मेदार ठहराते रहते थे. यानी परोक्ष रूप से टाटा की आलोचना करते थे. सायरस ने कई बिजनेस बेचे लेकिन नया कुछ खड़ा नहीं कर पाए.
सायरस मिस्त्री की टीम कमजोर थी. नई चुनौतियों के लिए उसने तैयारी नहीं दिखाई. सूत्र बताते हैं कि कॉरपोरेट गवर्नेंस में कमजोरी का भी मुद्दा था. टाटा ग्रुप का जापान के डोकोमो से जिस तरह झगड़ा हुआ, उसको रतन टाटा ने खराब हैंडलिंग माना.
रतन टाटा रिटायरमेंट के बाद से नई इकोनॉमी के जवान उद्यमियों से मिल रहे थे. निजी तौर पर उनमें पैसा लगा रहे थे. वहीं, सायरस रोजमर्रा के कामों में भविष्य की तैयारी नहीं कर रहे थे. इसीलिए, टाटा संस का प्रेस नोट साफ कहता है कि ग्रुप को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए नया चेयरमैन जरूरी है.
इस कदम के पीछे चौथा कारण विचित्र है. वजह ये कि रतन टाटा जैसे विवेकवान व्यक्ति भी रिटायर नहीं हो सकते. राजनीति हो या कारोबार - कंट्रोल छोड़ना और उत्तराधिकारी को खुला छोड़ना - भारत में इसके दर्शन मुश्किल हैं. टाटा की छवि बनी रहे इसके लिए कई आलोचनाओं का जवाब उनको देना होगा. ये फिक्र दिख भी रही है, इसीलिए नया चेयरमैन तय करने के लिए चार महीनों की डेडलाइन रख दी गई है.
टाटा संस का अगला चेयरमैन ग्रुप के अंदर और बाहर से लाने के लिए दोनों रास्ते खुले छोड़े गए हैं. अंदर से पहला नाम टीसीएस के प्रमुख एन चंद्रशेखरन का हो सकता है. नई इकोनॉमी के कुछ बाहरी नामों पर भी विचार हो सकता है.
ये भी ध्यान देने की बात है कि पिछले महीनों में टाटा ने कई चौंकाने वाले नामों को टाटा संस के बोर्ड में लिया. इनमें अजय पिरामल, वेणु श्रीनिवासन और अमित चंद्रा शामिल हैं. सायरस इन नियुक्तियों का मैसेज पढ़ने से चूके तो नहीं होंगे. वो शायद कानूनी लड़ाई की सोचें, लेकिन शायद उससे कुछ हासिल न हो पाए. क्योंकि, टाटा संस पर टाटा ट्रस्ट का कब्जा है, जिसके पास 66 % शेयर हैं.
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