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आरके सिंह ने बताया कि कोयले की कमी से करीब 5-6 महीने तक जूझना पड़ेगा. उन्होंने ये भी बताया कि अगले एक हफ्ते से तो हालात और भी खराब हैं, यहां क 40-50 गीगावाट का बिजली प्रोडक्शन करने वाले थर्मल पॉवर स्टेशन में सिर्फ तीन दिन का स्टॉक बचा हुआ है.
क्यों हुई है कोयले कमी?
सितंबर में भारी बारिश की वजह से कोयला खदानों का उत्तपादन प्रभावित हुआ
विदेश से आने वाले कोयले के दामों में भी बढ़ोतरी हुई.
बारिश से पहले कोयले का स्टॉक नहीं किया गया
एक अक्टूबर 2021 को जो हालात थे उसके मुताबिक 135 ऐसे प्लांट हैं, जहां महज तीन दिन का कोयला बचा है. वहीं 50 प्लांट में 5 से 10 दिन का स्टॉक है. भारत के बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी लगभग 70% है, और अगले कुछ सालों में खपत बढ़ने का अनुमान है. भारत बिजली की मांग में तेज उछाल, घरेलू खदान उत्पादन पर दबाव और समुद्री कोयले की बढ़ती कीमतों के प्रभावों से पीड़ित है.
कोयला आधारित बिजली पर ज्यादा निर्भरता को देखते हुए बिजली के लगभग सभी अन्य स्रोतों को पहले से ही चालू स्थिति में होना चाहिए, अगस्त 2021 में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों का प्लांट लोड फैक्टर बढ़कर 59.27 प्रतिशत हो गया.
"अगस्त 2021 में कुल बिजली में थर्मल उत्पादन ने लगभग 80 प्रतिशत का योगदान दिया"
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