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शेयर बाजार में आतिशबाजी, क्या करें निवेशक?: सौरभ मुखर्जी Exclusive

तेज बाजार में निवेश क्या करें और क्या एकदम ना करें?

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तेज बाजार में निवेश क्या करें और क्या एकदम ना करें?
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तेज बाजार में निवेश क्या करें और क्या एकदम ना करें?
(फोटो: Quint)

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अमेरिका में बाइडेन की रिकॉडतोड़ जीत और इधर भारत में शेयर बाजार की रिकॉड़तोड़ बढ़त. आखिर माजरा क्या है? इस तेज बाजार में निवेश क्या करें और क्या एकदम ना करें? कमाई के मौके कहां हैं? इस बढ़त के पीछे कितनी हमारी इकनॉमी की बुनियादी मजबूती है और कितना इंटरनेशनल असर...इन्हीं सवालों को लेकर क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगालिया ने स्टॉक मार्केट एक्सपर्ट और मार्सेलसइन्वेस्टर मैनेजर्स के फाउंडर और चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर सौरभ मुखर्जी से बात की.

संजय पुगालिया - बाजार में तेजी की अहम वजह क्या है?

सौरभ मुखर्जी - भारत के बाजारों में तेजी के दो महत्वपूर्ण कारण है. पहला, फंडामेंटल तौर पर देखने से कोविड का अंधेरा छंटता दिख रहा है और इकनॉमिक रिकवरी की झलक दिख रही है. कोरोना के मामलों में लगातार गिरावट देखी जा रही है. दूसरा, विदेशी निवेशकों की सोच है कि लिक्विडिटी का जो सिलसिला कोरोना के प्रभाव से निपटने के लिए सेंट्रल बैंकों द्वारा शुरू किया गया था, वो जारी रहने वाला है. निवेशक साथ ही यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि बाइडेन की नीतियां इमर्जिंग मार्केटों के लिए फेवरेबल रहेगी और इन दोनों परिस्थितियों का साथ आना फायदेमंद हो सकता है.

संजय पुगालिया- जो बाइडेन क्या ऐसा करने वाले हैं जिसका इमर्जिंग बाजारों का फायदा होगा? उनकी नीतियों से डॉलर के कमजोर हो जाने की बात किस हद तक सही है?

सौरभ मुखर्जी- हम हमेशा लीडर्स से उम्मीद करते हैं कि वह शायद इकनॉमी में बड़ा सकारात्मक बदलाव लाएगा, लेकिन ऐसा पिछले 15-20 सालों में नहीं हुआ है. इसके नहीं हो पाने का एक कारण है कि नेता समझता है कि जजबाती मुद्दे बेहतर काम करते हैं जिसमें मजहब, द्वेष और दूसरे देशों को कोसना जैसे काम आते हैं. जो बाइडेन का इस बारे में क्या रुख रहेगा अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन संकेतों के अनुसार वो शायद चीन से रिश्ते नरम रखें, इमर्जिंग मार्केट को ट्रंप प्रशासन की तरह नहीं ट्रीट करेंगे. अगर ऐसा सच में होता है तो ग्लोबल इकनॉमी में लोगों का विश्वास बढ़ सकता है और इसी उम्मीद से भी इन्वेस्टर्स थोड़े बुलिश है. लेकिन मेरे ख्याल से कोई नेता इकनॉमी सुधार देगा, वाली सोच पुरानी है और इसका कोई खासा असर नहीं पड़ता सिवाय सेंटीमेंटल असर के.

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संजय पुगालिया- बाइडेन की किन नीतियों से भारत का फायदा हो सकता है और ऐसे में निवेशकों को किन सेक्टरों पर नजर रखनी चाहिए?

सौरभ मुखर्जी-सुनने में आ रहा है कि इमीग्रेशन के लिए H1B वीजा नियमों में थोड़ी ढ़िलाई हो सकती है और इससे IT सेवा कंपनियों को थोड़ा फायदा हो सकता है. IT सेवाओं के मामलों में हालांकि भारत पहले से भी अच्छा है और ऐसा नहीं है कि H1B वीजा के बिना काम रुक जाएगा. अगर ये बदलाव होता है तो इसका सेंटीमेंट के स्तर पर IT को फायदा होगा.

दूसरा ये देखना है कि चीन का जो जियोपॉलिटिकल खतरा उभर कर आया है, उसको लेकर अमेरिका की नीति कैसी रहती है. अगर क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) चीन को नियंत्रण में रखने की कोशिश करता है तो फिर भारत की डिफेंस पॉलिसी और मैन्युफैक्चरिंग पर बड़ा प्रभाव पर सकता है.

तीसरा क्षेत्र मेरे ख्याल से भारत से अमेरिका को मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट्स का रहेगा. ट्रंप प्रशासन के दौरान ऐसे मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट पर काफी टैरिफ लगाए गए थे. अगर बाइडेन भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट से ट्रेड पर नरम रुख अपनाते हैं तो इसका निश्चित तौर पर फायदा होगा, खासकर कृषि उत्पादों पर जिसपर अब तक काफी टैरिफ लगाया गया है.

संजय पुगालिया- फार्मा सेक्टर के बारे में क्या कहेंगे?

सौरभ मुखर्जी- मेरे ख्याल से US FDA की तरफ से पहले की तरह ही भारतीय फार्मा के लिए आक्रमक  रुख बरकरार रहेगा. फार्मा क्षेत्र में सबसे बड़ा रोल एक्टिव फार्मासियुटिकल इंग्रीडिएंट (API) का रहेगा जो कि अब एक स्ट्रेटेजिक महत्त्व की भी चीज बन चुकी है. चीन का API मार्केट में हिस्सा 90% के आसपास है. भारत में भी इसका  उत्पादन है लेकिन यहां भी चाइना से इसका कुछ हद तक  इम्पोर्ट किया जाता है. उम्मीद जताई जा रही है कि अमेरिका और भारत के संयुक्त प्रयास से कुछ हद तक इसका चीन से रिलोकेशन हो सकता है.

संजय पुगालिया-अभी आने वाले दिनों तक अमेरिका से भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट को फायदा होने की बातों के चलने की उम्मीद है. अभी भारत की रियल इकनॉमी की हालत को देखते हुए आने वाले दिनों में हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

सौरभ मुखर्जी- इंडिया की इकनॉमी में पिछले 10-15 सालों में एक ट्रेंड दिखा है कि हर सेक्टर में कुछ 'बाहुबली' कंपनियां हैं, जिनको 80-90% प्रॉफिट चली जाती है. कोविड ने इस डायनामिक को और भी मजबूत किया है. स्मॉलकैप में पैसा लगाकर ज्यादा मुनाफे की उम्मीद रखने वालों को थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि अब बाहुबली युग आ गया है. इसके उदाहरण के तौर पर अगर हम बैंकिंग सेक्टर को लें तो 4-5 बैंक जैसे HDFC बैंक, कोटक महिंद्रा इत्यादि को छोड़ दें तो इसके अलावा सारे छोटे बैंकों को दिक्कतेंआएंगी. मेरे ख्याल से कोविड का नेगेटिव असर छोटे NBFC और बैंकों पर भारी पड़ेगा.

संजय पुगालिया- कोविड के दौरान और इसके बाद हम देख रहे हैं कि यंग लोग अब इन्वेस्टमेंट की तरफ देख रहे हैं. आपकी ऐसे निवेशकों को क्या सलाह है? कोविड के बाद निवेश के व्यवहार में किस तरह का बदलाव करना चाहिए?

सौरभ मुखर्जी- आजकल हर उम्र के लोगों को ये पता चल गया है कि फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) या इंश्योरंस से कुछ नहीं होने वाला. म्यूच्यूअल फंड ने भी अंतिम 10 सालों में कोई अच्छा मुनाफा नहीं दिया है जिसकी वजह से लोग इक्विटी में अच्छे स्टॉक्स की तरफ आना चाहते हैं. मेरी सलाह होगी की रौनक के पीछे ना जाते हुए सावधान रहते हुए इन तीन चीजों का ख्याल रखे-

  • प्रोमोटर के बारे में अच्छे से रिसर्च करें कि कहीं कुछ फर्जी तो नहीं.
  • कंपनी का प्रोडक्ट जरूरी है या नहीं. लोगों की कम आय को ध्यान में रखते हुए जरुरी प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी में निवेश करना बेहतर है.
  • कंपनी 'बाहुबली' हो यानी अपने सेक्टर की टॉप कंपनियों में से हो. बैरियर टू एंट्री काफी ज्यादा होनी चाहिए.

संजय पुगालिया- आखिरी सवाल के तौर पर मैं आपसे पूछूंगा की अब जब निफ्टी 12000 के पार है और सेंसेक्स भी 42000 पहुंच गया है तो लोग कभी कभी ऐसी स्तिथि में ट्रैप हो जाते हैं . आपके ख्याल से क्या ज्यादा अहम है- लिक्विडिटी या फंडामेंटल्स?

सौरभ मुखर्जी- मेरे अपने 12 साल के अनुभव में मैंने देखा है कि अगर कंपनी क्लीन हो, अच्छे प्रोडक्ट्स बनाती हो और बैरियर्स टू एंट्री है तो अच्छे पैसे बनेंगे ही.

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Published: 09 Nov 2020,10:57 PM IST

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