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किसकी वजह से अटक रहा है भारत का सबसे बड़ा टैक्स सुधार. GST काउंसिल की एक के बाद एक बैठकें हो रही हैं, लेकिन केंद्र और राज्यों के बीच कमाई के बंटवारे और नियमों के विवाद खत्म ही नहीं हो रहे हैं. एक चीज पर बात बनती है, तो दूसरी पर फंस जाती है.
सहमति न बन पाने की वजह आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक है. सत्ताधारी बीजेपी और विपक्ष के बीच भरोसे की खाई इतनी गहरी हो गई है कि लगता है GST जैसा बड़ा टैक्स सुधार मुश्किल में फंस गया है.
1. विलेन नंबर एक नोटबंदी: बीजेपी और विपक्ष इस पर आमने सामने हैं. विपक्ष की सरकारों को लगता है कि अचानक आई नोटबंदी ने उनके टैक्स की ग्रोथ को रोक दिया है.
2. राज्यों के मुताबिक ग्रोथ बनाए रखने के लिए राज्यों को होने वाले टैक्स नुकसान के एवज में बने मुआवजे के फंड में 70 परसेंट बढ़ोतरी करके उसे 90,000 करोड़ रुपये करना होगा.
3. ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल समेत 11 राज्य इस बात पर अड़ गए हैं कि नोटबंदी के बाद मुआवजा तय करने का फॉर्मूला नए सिरे से तैयार किया जाए और ज्यादा मुआवजा दिया जाए क्योंकि नोटबंदी से भारी वित्तीय नुकसान राज्यों को हुआ है.
4. नोटबंदी होने से पहले मुआवजे के लिए 55,000 करोड़ का फंड बनाया गया था. लेकिन पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा के मुताबिक नोटबंदी से टैक्स कलेक्शन में 30 परसेंट की कमी आई है. इसलिए मुआवजा बढ़ाना होगा.
5. राज्यों की नई मांग से केंद्र परेशान है. GST पर एक कदम आगे और दो कदम पीछे जैसे हालात बन गए हैं. अक्टूबर में GST काउंसिल की बैठक में बने फॉर्मूले के मुताबिक राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई 5 साल तक की जानी है और 2015-16 को बेस ईयर माना गया था.
6. टैक्स में ग्रोथ की दर 14 परसेंट के हिसाब से तय हुई थी, लेकिन अब राज्यों को लगता है कि नोटबंदी के बाद इतनी ग्रोथ हासिल करने के लिए मुआवजे का फंड बढ़ाना होगा.
7. केंद्र का कहना नोटबंदी से टैक्स कलेक्शन में कमी सिर्फ अपवाद है, लेकिन अगर मुआवजे बढ़ाने की मांग मानी गई, तो फिर ज्यादा सेस लगाकर उसकी वसूली करनी होगी.
8. विवाद की दूसरी बड़ी वजह है राज्यों की स्वायत्तता का मसला. राज्यों की मांग है कि 1.5 करोड़ तक के टर्नओवर वाले कारोबार पर लगने वाले GST पर पूरी तरह सिर्फ उनका कंट्रोल होना चाहिए. लेकिन केंद्र इसके लिए तैयार नहीं. यहां तक कि बीजेपी की सहयोगी आंध्रप्रदेश की TDP भी राज्यों को ज्यादा स्वायत्तता देने की मांग पर अड़ी है.
9. केंद्र की दुविधा ये है कि वक्त तेजी से निकल रहा है और 1 अप्रैल की डेडलाइन के पहले आम सहमति बनने की उम्मीद खत्म होती जा रही है. बजट सत्र 28 फरवरी के बजाए 1 फरवरी के आसपास शुरू होगा, यानी 1 माह पहले और इसमें GST संबंधी संशोधन सरकार को हर हालत में पास कराने ही होंगे.
10. केरल के वित्तमंत्री थॉमस इसाक ने तो अभी से हाथ ही खड़े कर दिए हैं. उनके मुताबिक 1 अप्रैल 2017 को जीएसटी लागू हो पाना बहुत मुश्किल है. अब सरकार को जून या अगस्त में GST लागू करने की कोशिश करनी चाहिए.
सरकार को इस साल 16 सितंबर के पहले जीएसटी लागू करना ही होगा. अगर ऐसा न हुआ, तो 16 सितंबर के बाद देश में कोई टैक्स कानून ही नहीं रह जाएगा. इसकी वजह है पिछले साल जो GST संविधान संशोधन विधेयक 1 साल तक ही वैध है. 16 सितंबर के बाद उसकी वैधता खत्म हो जाएगी. ऐसे में सरकार को दोबारा GST संविधान संशोधन विधेयक पास कराना होगा.
इंडस्ट्री की दलील है कि एक वित्तीय साल में दो तरह के टैक्स सिस्टम से बहुत दिक्कत होगी, इसलिए अगर सरकार 1 अप्रैल, 2017 को GST लागू नहीं करा पाती, तो उसे फिर 1 अप्रैल 2018 से इसे लागू करना चाहिए.
सबसे बड़ा नुकसान भारत की विश्वसनीयता को होगा, क्योंकि देश ही नहीं दुनियाभर के निवेशकों की नजर भारत के इस सबसे बड़े टैक्स सुधार पर हैं. अगर इस साल GST लागू नहीं हुआ तो
GST काउंसिल में सहमति न बन पाने के आर्थिक से ज्यादा बड़ी वजह राजनीतिक है. दरअसल बीजेपी और विपक्ष के बीच संपर्क के तमाम रास्ते बंद हैं. खास तौर पर नोटबंदी के बाद सरकार और विपक्ष के ज्यादातर दलों ने एक दूसरे के खिलाफ आक्रामक तेवर बना रखे हैं. गुस्सा इतना ज्यादा है कि विपक्ष ने अब सरकार को किसी भी तरह का सहयोग नहीं देने का रुख अपना लिया है. जाहिर है ऐसे में GST जैसा सबसे बड़ा सुधार को इसकी कुर्बानी चुकानी पड़ सकती है.
GST लागू होने के रास्ते का सबसे बड़ा विलेन नोटबंदी साबित हो रहा है. एक वक्त GST हर हालत में 1 अप्रैल 2017 में लागू करा लेने का भरोसा देने वाली केंद्र और राज्य सरकारों का एजेंडा ही बदल गया है. देश के आर्थिक सुधारों के ब्रह्मास्त्र लागू करने में एकसाथ होने का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टियां अब आर्थिक विकास के बजाए अपने चुनावी फायदे के चक्कर में पड़ गई हैं और GST इस भंवर में घिर गया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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