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सबसे पहले तो ये समझने की जरूरत है कि आईआरपी की नियुक्ति का ये मतलब नहीं है कि जेपी इंफ्राटेक दिवालिया घोषित हो रही है. एनसीएलटी यानी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने आईडीबीआई बैंक की याचिका पर आईआरपी की नियुक्ति की है, जिसका काम ये पता लगाना है कि क्या जेपी इंफ्रा को रिवाइव किया जा सकता है. आईआरपी को इसके लिए अधिकतम 270 दिन दिए गए हैं जिस अवधि में उसे जेपी इंफ्रा का रिवाइवल प्लान एनसीएलटी को सौंपना है. तो फिर इस अवधि में जेपी इंफ्रा के प्रोजेक्ट में घर बुक कराए लोगों को क्या करना चाहिए? उनके कानूनी अधिकार क्या हैं?
पहले आईआरपी ने सभी घर खरीदारों को 24 अगस्त तक अपना दावा पेश करने को कहा था. लेकिन अब उन्हें राहत दी जा रही है और अब घर खरीदारों को कोई फॉर्म नहीं भरना है. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय, आईआरपी अनुज जैन और जेपी इंफ्रा के मैनेजमेंट की एक बैठक में ये फैसला हुआ. अब जेपी इंफ्रा अपने रिकॉर्ड्स से होमबायर्स के पेमेंट स्टेटमेंट निकालेगी और उन्हें हर घर खरीदार के पास पुष्टि के लिए भेजेगी ताकि विवाद की कोई गुंजाइश ना रहे. जिन लोगों ने क्लेम फॉर्म भर दिए हैं, उन्हें चिंता की कोई जरूरत नहीं है. हालांकि इस फैसले के बावजूद इस मुद्दे पर कोई सफाई नहीं मिली है कि क्या घर खरीदारों की हैसियत सिक्योर्ड या ऑपरेशनल क्रेडिटर्स के बराबर की मानी जाएगी.
आप अपने होम लोन की ईएमआई बिलकुल ना रोकें, क्योंकि ये आपके और बैंक के बीच का एग्रीमेंट है. इसमें बिल्डर की कोई भूमिका नहीं है. अगर आप ईएमआई रोकेंगे तो आपकी क्रेडिट रेटिंग खराब होगी और आगे आपको किसी तरह का लोन या क्रेडिट कार्ड लेने में दिक्कत आएगी. साथ ही बैंक आप पर डिफॉल्ट करने की सूरत में कानूनी कार्रवाई भी कर सकता है.
इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 के नियमों के मुताबिक अगर जेपी इंफ्रा दिवालिया होती है तो उसकी जायदाद बेचकर पहले सिक्योर्ड क्रेडिटर्स यानी बैंकों का बकाया चुकाया जाएगा. घर खरीदार अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स की कैटेगरी में गिने जाएंगे और उन्हें सिक्योर्ड क्रेडिटर्स को चुकाने के बाद बची रकम ही बांटी जाएगी.
हालांकि इस बारे में जो भी फैसला होगा, वो एनसीएलटी लेगा. कानूनी जानकारों के मुताबिक, अगर घर खरीदार एनसीएलटी के फैसले से संतुष्ट नहीं हों तो वो इसके खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलएटी में अपील कर सकते हैं. एनसीएलएटी से भी उन्हें अगर इंसाफ नहीं मिलता तो वो सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं. ये बात ध्यान रखें कि जब तक एनसीएलटी की इन्सॉल्वेंसी की प्रक्रिया चल रही है, जेपी इंफ्रा के खिलाफ कोर्ट में रिकवरी या रिफंड का कोई मामला सुना नहीं जा सकता. जो मामले पहले से दायर हुए हैं, उनकी भी आगे की सुनवाई रूकी रहेगी.
इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल जो रिवाइवल प्लान एनसीएलटी के सामने रखेगा, उस पर अमल की निगरानी भी ट्रिब्यूनल करेगा. जेपी इंफ्रा के मामले में क्रेडिटर्स की तादाद बहुत ज्यादा है, इसलिए हो सकता है कि रिवाइवल की प्रक्रिया जटिल हो. हालांकि घर खरीदारों को इसी बात की उम्मीद करनी चाहिए कि आईआरपी एक रिवाइवल प्लान सौंपे क्योंकि इसी सूरत में उनके अधूरे पड़े घरों का काम पूरा होने की संभावना सबसे ज्यादा होगी.
दूसरी संभावना ये भी है कि कंपनी को पुनर्जीवित करने की कोशिश नाकाम होने के बावजूद बैंक जेपी इंफ्रा की जायदाद बेचने के बजाय कंपनी का टेकओवर करने या उसमें इक्विटी हिस्सेदारी खरीदने का फैसला करें. इससे घर खरीदारों को ये उम्मीद रहेगी कि बैंक अधूरे पड़े प्रोजेक्ट को पूरा करने में दिलचस्पी लेंगे.
जेपी इंफ्रा का मामला अपनी तरह का पहला मामला है, जिसमें कंपनी के दिवालिया होने पर हजारों घर खरीदारों के हित प्रभावित हो सकते हैं. इसलिए जानकार मानते हैं कि ट्रिब्यूनल और कोर्ट भी इसमें फैसले देते वक्त सहानुभूति भरा रवैया रखेंगे. केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से ऐसे बयान भी आए हैं जिनमें घर खरीदारों के हित को ध्यान में रखकर कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बात कही गई है. ऐसे में जेपी इंफ्रा के घर खरीदारों के लिए बेहतर यही है कि वो इस मामले पर नजर बनाए रखें और इंतजार करें कि आईआरपी किस तरह का रिवाइवल प्लान लेकर सामने आता है.
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