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छत्तीसगढ़ में 'वैक्सीन आरक्षण', HC का आदेश और सरकार की दलील

पहले सिर्फ गरीबों को कोरोना वैक्सीन देने को हाईकोर्ट ने बताया गलत

क्विंट हिंदी
कोरोनावायरस
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<div class="paragraphs"><p>छत्तीसगढ़ सरकार पहले सिर्फ गरीबों को वैक्सीन दे रही थी</p></div>
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छत्तीसगढ़ सरकार पहले सिर्फ गरीबों को वैक्सीन दे रही थी

(फोटो:क्विंट)

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देशभर में कोविड की दूसरी लहर का भयावह प्रकोप देखने को मिल रहा है. हर तरफ कोरोना वैक्सीनेशन को बढ़ाने की मांग चल रही है, लेकिन इन सबके बीच छत्तीसगढ़ की "अंत्योदय वैक्सीनेशन नीति" जिसे आसान शब्दों में वैक्सीनेशन रिजर्वेशन भी कह सकते हैं पर कोर्ट की आपत्ति के बाद छत्तीसगढ़ सरकार को 18+ आयुवर्ग का टीकाकरण रोकना पड़ा है.

क्या थी छत्तीसगढ़ सरकार की नीति?

देशभर में कोरोना टीके की कमी चल रही है. छत्तीसगढ़ समेत कई राज्य वैक्सीन की कमी को लेकर अपनी मांगे केंद्र सरकार के सामने रख चुके हैं. बावजूद इसके केंद्र की ओर से पर्याप्त वैक्सीन राज्यों को मुहैया नहीं करायी जा रही हैं. वैक्सीन की कम उपलब्धता के चलते छत्तीसगढ़ सरकार ने टीकाकरण के लिए प्राथिमता वाले समूह तय किए थे. राज्य सरकार ने प्रदेश में पहले अंत्योदय कार्डधारी परिवारों के पात्र लोगों का टीकाकरण करने का फैसला किया था, इसके बाद बीपीएल और फिर एपीएल का टीकाकरण करने का निर्णय लिया था.

सरकार ने यह प्राथमिकता इसलिए तय की थी, क्योंकि ये ऐसे वर्ग में आते हैं जो सुविधाओं से दूर रहते हैं. इनके पास पर्याप्त साधन भी नहीं होते हैं. ये ऐसा वर्ग होता है जो तकनीकी पक्ष से कमजोर होता है. इनकी आमदनी दिहाड़ी मजूदरी और छोटे-मोटे व्यवसाय पर निर्भर करती है. ऐसे में सरकार का मानना था कि अगर ये वर्ग सुरक्षित रहा तो इन पर किसी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं बढ़ेगा और जैसे ही वैक्सीन की उपलब्धता होगी वैसे ही अन्य लोगों को लगती जाएंगी. सरकार की इसी नीति को वैक्सीन रिजर्वेशन नाम दिया गया.

सरकार नीति के खिलाफ याचिका

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा टीकाकरण में आरक्षण लागू करने के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके साथ ही टीकाकरण में आरक्षण को लेकर कोर्ट में पांच से अधिक अलग-अलग याचिकाएं दायर हुई थीं जिसमें कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया था.

  • याचिकाकर्ता किशोर भादुड़ी समेत अन्य अधिवक्ताओं ने टीकाकरण को लेकर शासन द्वारा आरक्षण लागू किए जाने पर आपत्ति जताई और कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी टीकाकरण को लेकर प्राथमिकताएं तय की हैं, लेकिन उसमें आरक्षण जैसी स्थिति नहीं है.

  • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश की जनता के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है. सभी ने शासन के इस आदेश को तत्काल निरस्त करने व नई नीति बनाने की मांग की थी.

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कोर्ट ने क्या कहा?

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा कि 'गरीबी रेखा से नीचे' अंत्योदय समूह और 'गरीबी रेखा से ऊपर' से संबंधित व्यक्तियों को संतुलन बनाकर टीका दें.

  • हाईकोर्ट ने टीकाकरण में आरक्षण लागू करने पर सख्त आपत्ति जतायी है.

  • कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि टीकाकरण में इस तरह का भेदभाव ठीक नहीं है.

  • हाईकोर्ट ने सरकार को दो दिन में नई नीति बनाने के निर्देश दिए हैं.

इस बीच गुजराज में ये हो रहा है

गुजरात में बाल अधिकार समूह ने हाईकोर्ट का रुख किया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक चाइल्ड राइट्स कलेक्टिव, गुजरात (CRCG) ने हाईकोर्ट से मांग की है कि हाशिए में रहने वाले जरुरतमंद लोग जैसे दिव्यांग बच्चे, किशोरगृह में रहने वाले बच्चे और राज्य की गर्भवती महिलाओं को कोविड-19 प्रबंधन में प्राथमिकता में रखने की आवश्यकता है. समूह ने अपनी याचिका में छह महीने तक अनाथ बच्चों को पालक घरों में रखने के अनिवार्यता के नियम में छूट मांगी है. इनका कहना है कि गुजरात में छह महीने तक एक बच्चे को घर में रखने की शर्त के साथ दूर करने के बारे में विचार किया जाना चाहिए.

सवाल ये भी है कि केंद्र सरकार ने जब शुरू में सिर्फ 45 साल से ऊपर के उम्र के लोगों को वैक्सीन देने की नीति बनाई तो क्या वो भी भेदभाव नहीं था? अब भी 18-44 उम्र के लोगों के लिए प्री रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करना भेदभाव नहीं है. और सवाल ये है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है. मूल सवाल यही है. वैक्सीन की किल्लत है इसलिए पहले किसको दें ये सोचने की जरूरत पड़ रही है.

अहमदाबाद स्थित अम्ब्रेला संगठन दिव्यांग बच्चों, प्रवासी कामगारों, यौनकर्मियों, निर्माण श्रमिकों और खेतिहर मजदूरों के बच्चों का प्रतिनिधित्व करता है. इस संगठन की मांग है कि वे लोग जो एचआईवी से प्रभावित या संक्रमित हैं और किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) के तहत हैं उनको देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है.

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