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ऑक्सीजन का टोटा है. सांसों पर बांधा गया कोटा है. दिल्ली की सांसें चोक न हों, इसके लिए रोज चाहिए 976 मीट्रिक टन ऑक्सीजन. लेकिन हुकूमत ने कोटा तय किया है 590 मीट्रिक टन का. बेड, वेंटिलेटर भी कम हैं. देश के टॉप सर्जन डॉक्टर देवी शेट्टी कह रहे हैं कि आने वाले हफ्तों में लोग आईसीयू में मरने लगेंगे क्योंकि इन कुछ हफ्तों में हमें 5 लाख ICU बेड चाहिए, हैं सिर्फ 90 हजार. बेड ले भी आए तो 1.5 लाख डॉक्टर और 2 लाख नर्स चाहिए. डरावनी तस्वीर है. कोरोना के ड्रैक्यूला से एक ही चीज बचा सकती है वैक्सीन. लेकिन वहां हालत और भी हताशा भरी है. लग रहा है कि देश की ज्यादातर आबादी को सरकार ने फेल कर दिया है. वैक्सीन पर सरकार का गड़बड़ गणित समझाते हैं.
हमारी ज्यादातर वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट से आ रही है. उसी सीरम ने बताया है कि उसे आजतक 26 करोड़ वैक्सीन डोज का ऑर्डर सरकार से मिला है. सरकार ने खुद बताया है कि उसने भारत बायोटेक को 7 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया है. कुल मिलाकर हुए 33 करोड़. डेक्कन हेराल्ड ने कॉमडोर लोकेश बत्रा की आरटीआई की हवाले से बताया है कि सरकार ने 35.1 करोड़ डोज वैक्सीन का ऑर्डर दिया है. दो डोज के हिसाब से 35 करोड़ डोज का मतलब हुआ 17.5 करोड़ लोगों के लिए वैक्सीन. सीरम ने अपने स्टेटमेंट में ही बताया है कि उसके पास 10 करोड़ डोज का अलग ऑर्डर राज्य सरकारों और अस्पतालों के लिए है. यानी 35 और 10 ....45 करोड़.
चूंकि अभी तक वैक्सीन 18 साल से ऊपर के लोगों को लगना है तो समझने के लिए मान लेते हैं कि 100 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगनी है. 100 करोड़ मतलब हमें 200 करोड़ वैक्सीन डोज चाहिए.
200 करोड़ के सामने हमने सिर्फ 45 करोड़ सिक्योर किया है.
यानी जितना चाहिए उसका महज 22.5%
45 करोड़ वैक्सीन डोज मतलब 22.5 करोड़ लोगों के लिए वैक्सीन
यानी 100 करोड़ में से सिर्फ 22.5% आबादी के लिए वैक्सीन का इंतजाम
इतनी मात्रा सिक्योर हुई है, मिली नहीं है. 45 करोड़ में से 26 करोड़ डोज अभी मिलने बाकी हैं. मई, जून और जुलाई में मिलने की उम्मीद है. विश्व को वैक्सीन सप्लाई करने का अरमान रखने वाली सरकार ने अब तक अपने देश के सिर्फ 22.5 फीसदी लोगों को वैक्सीनेट करने का प्लान बनाया है. ताज्जुब है.(ग्राफिक्स- अरूप मिश्रा)
दुनिया में कोविड के सबसे बड़े एक्सपर्ट्स में से एक अमेरिका के मशहूर डॉक्टर एंथनी फाउची का कहना है कि 60-70 फीसदी आबादी को वैक्सीन लगे तो ही कोरोना को काबू में किया जा सकता है. लेकिन हमारी तो योजना ही है जुलाई तक महज 16 फीसदी आबादी को वैक्सीन देने की.
सरकार ने जुलाई तक 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने का टारगेट रखा था, यानी 60 करोड़ डोज वैक्सीन. तो 3 मई तक सिर्फ 22.5 करोड़ लोगों के लिए वैक्सीन का ऑर्डर देकर क्यों बैठी है?
139 करोड़ की आबादी वाले देश की सरकार सिर्फ 22.5 फीसदी लोगों के लिए वैक्सीन का इंतजाम करके क्यों रुकी हुई है. उसे किस बात का इंतजार है? हम सेकंड वेव के भयंकर चपेट में हैं. लोग बिना इलाज मर रहे हैं. आगे की आबादी को वैक्सीनेट करने का क्या प्लान है? कहां है वो प्लान?(ग्राफिक्स- अरूप मिश्रा)
एक मई को जब 18+ के लिए भी वैक्सीनेशन के दरवाजे खोले गए तो सिर्फ इसी दिन सवा करोड़ के करीब लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. यानी पब्लिक अब वैक्सीन के लिए बेताब है. लेकिन सरकार उन्हें वैक्सीन के सपने बेच रही है. स्कूल, दफ्तर में वैक्सीनेशन सेंटर खोले जा रहे हैं. मुफ्त बांटने के ऐलान हो रहे हैं. वैक्सीन घर जाकर देंगे, ऐसा कहा जा रहा है. सच्चाई ये है कि नए लोगों को बहुत कम संख्या में वैक्सीन मिलनी है.
केंद्र, राज्यों और अस्पतालों को सीरम से जुलाई तक 21 करोड़ डोज मिलने वाले हैं और भारत बायोटेक से 5 करोड़. यानी कुल 26 करोड़. 3 मई को जारी सरकारी डेटा के मुताबिक कुल 15.72 करोड़ वैक्सीन के डोज दिए गए हैं. इनमें से 12.83 करोड़ लोगों को सिंगल डोज मिला है और 2.83 लोगों को डबल डोज. (ग्राफिक्स- अरूप मिश्रा)
हो सकता है सरकार स्पुतनिक को कोई बड़ा ऑर्डर दे दे. लेकिन उसकी जानकारी अभी नहीं है. और ये करार होता भी है तो क्या स्पुतनिक भारत जैसे बड़े देश की जरूरत पूरा करने की स्थिति में है. उसके 60 देशों में पहले से कमिटमेंट हैं.
ये किस तरह की रणनीति है? या अपने ही लोगों के साथ झूठ की राजनीति है? खाली आशा है ,भरोसा कुछ नहीं. जिम्मेदार कौन है?
समझने वाली बात है कि पूनावाला एक कारोबारी हैं. वो क्यों उस उत्पादन का क्षमता निर्माण करेंगे जिसका ऑर्डर उन्हें मिला ही नहीं. कल को सरकार चार दूसरे उत्पादकों से करार कर ले तो सीरम क्षमता निर्माण पर जो खर्च करेगा, उसकी भरपाई कौन करेगा?
पूनावाला ने पहली बार अपनी स्थिति नहीं साफ की है. 4 जनवरी, 2021 को हिंदुस्तान टाइम्स से एक इंटरव्यू में पूनावाला ने बताया था उन्हें अब भी सरकार से ऑर्डर का इंतजार है. यानी 16 जनवरी को जब सरकार ने वैक्सीनेशन कैंपेन शुरू किया था, उसके महज दो हफ्ते पहले तक सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता को ऑर्डर ही नहीं मिला था.
ये हाल तब है जब हमारे लिए वैक्सीन का मुख्य सोर्स ही सीरम है. स्पुतनिक को अब अप्रूवल मिला है. फाइजर और मॉडर्ना के लिए हम पलक पावड़े बिछाए बैठे हैं लेकिन वो आए नहीं हैं. और इस बीच आम आदमी बिन ऑक्सीजन, बिन बेड तड़प रहा है. अस्पतालों के अंदर और बाहर दम तोड़ रहा है. इधर वैक्सीन के लिए कतार लगी है उधर श्मशानों के बाहर कतार है. ये हालत तब है जब हमारे पास पैसे की किल्लत नहीं है. हम कोरोना के दुष्काल में भी सेंट्रल विस्टा के राजपथ पर सरपट भागे जा रहे हैं. नया पीएम आवास भी तेजी से बनाने की मंशा है.
अमेरिका ने किसी भी वैक्सीन के ईजाद से पहले सात कंपनियों से करार किया था. उन्हें एडवांस में पैसा दिया था. आज अमेरिका के पास जरूरत से ज्यादा वैक्सीन है और हम उनसे मांग रहे हैं. जुमलापसंद लोगों को सुनकर अच्छा नहीं लगेगा ये जुमला-हम वैक्सीन निर्यातक से आयातक और अब याचक बन गए हैं.
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