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कोरोना महामारी के चलते भारत ने 16 साल पुरानी अपनी नीति में बदलाव किए हैं. यूपीए सरकार के समय बनाई गई इस नीति के तहत भारत ने किसी भी देश से किसी भी तरह के दान, उपहार या सहायता स्वीकार करना बंद कर दिया था. लेकिन अब भारत ने ये बदलाव महामारी की वजह से ऑक्सीजन, दवाओं और मेडिकल इक्विपमेंट में कमी के चलते किया है.
भारत को अब चीन से ऑक्सीजन इक्विपमेंट्स और जीवन रक्षक दवाओं की खरीद करने में कोई वैचारिक समस्या नहीं है. सूत्रों के मुताबिक केंद्र ने अभी पाकिस्तान को लेकर ऐसा मन नहीं बनाया है कि सहायता स्वीकार करनी है या नहीं.
इसके अलावा, राज्य सरकारें भी विदेशी एजेंसियों से जीवन रक्षक उपकरणों और दवाओं की खरीद के लिए स्वतंत्र हैं और केंद्र सरकार राज्य सरकार के इस तरह के किसी भी फैसले के रास्ते में नहीं आएगी.
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने भारत सरकार के रुख में आए इस बदलाव का बचाव किया है. उन्होंने कहा है कि मुश्किल समय में लोगों की मदद के लिए भारत से जो बन पड़ेगा भारत वो सब करेगा. उन्होंने चीन से आपातकालीन चिकित्सा आपूर्ति खरीदने के भारत के रणनीतिक कदम का बचाव किया है.
श्रृंगला ने गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हम इसे एक ऐसी स्थिति के रूप में देख रहे हैं जो बहुत असामान्य है. ये अभूतपूर्व और असाधारण स्थिति है. और ऐसे समय में भारत अपने लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए जो कुछ हो सकेगा, वो सब करेगा.
उन्होंने कहा कि बाहरी देश भारत की मदद के लिए आगे आए हैं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि भारत ने उनकी मदद की अब उन्हें मदद करनी चाहिए. उन्होंने 16 साल पहले नीति को लेकर कहा कि हमें नहीं लगता कि हम इस नीति के संदर्भ में इन चीजों को देख रहे हैं.
भारत पहले ही दुनियाभर में कई देशों को हाइडॉक्सीक्लोरोक्विन मुहैया करा चुका है. भारत ने 80 से ज्यादा देशों को वैक्सीन भी भेजी है.
भारत विदेशों से दान या मदद की शुरुआत को लेकर अपनी 16 साल पुरानी नीति में किसी भी तरह के बदलाव को नहीं मानता है. भारत का मानना है कि भारत ने दान या मदद के लिए अपील नहीं की है और ये कि ये आपूर्ति से जुड़े फैसले हैं. एक सूत्र ने बताया कि अगर कुछ सरकारें या निजी संस्थाएं उपहार के रूप में दान करना चाहती हैं, तो हम इसे कृतज्ञता से स्वीकार करते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के सूत्रों के मुताबिक, भारत को अमेरिका की तरफ से एस्ट्राजेनेका टीकों की 2 करोड़ डोज मिलने वाली है. इसके अलावा, अगले कुछ ही दिनों में अमेरिका से एंटीवायरल ड्रग रेमडिसिविर का 20 हजार ट्रीटमेंट कोर्स भारत आने वाला है.
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ये बताया है कि अमेरिका का बाइडेन प्रशासन भारत को 36 मिलीपोर फिल्टर भी मुहैया कराएगा जिससे भारत को कोविशील्ड वैक्सीन की 5 लाख खुराक बनाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा अमेरिका भारत में 17 ऑक्सीजन प्लांट की भी आपूर्ति करना चाहता है.
मनमोहन सिंह ने पीएम रहते हुए कहा था कि हम अपने दम पर आपदा वाले हालात से निपटने में सक्षम हैं और हमें बाहरी देशों से मदद की जरूरत नहीं है. भारत अपनी आत्मनिर्भरता और उभरती हुई शक्ति वाली छवि पर जोर देता रहा है. इसी वजह से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने विदेशी मदद नहीं लेने का फैसला किया था.
इस नीति के बनने से पहले भारत विदेशी सरकारों से मदद लेता रहा है. जैसे कि उत्तरकाशी में आया भूकंप (साल 1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल में आई बाढ़ (2002) और साल 2004 में आई बिहार बाढ़ में भारत ने विदेशी मदद स्वीकारी थी.
साल 2004 सुनामी आपदा के बाद मनमोहन सिंह ने चर्चित बयान दिया था.
भारत इस नीति पर अमल करता रहा है. भारत ने 2005 में आए कश्मीर भूकंप, 2013 की उत्तराखंड बाढ़ और 2014 में कश्मीर बाढ़ त्रासदी में विदेशी सहायता से इनकार करता रहा है. मोदी सरकार भी इस फैसले को अमल में ला रही थी. लेकिन, महामारी के इस दौर में भारत को अपनी नीति में बदलाव करने पड़ रहे हैं.
2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान जब यूएई ने 700 करोड़ की मदद की पेशकश की थी, तो भारत ने इस मदद से इनकार करते हुए कहा था कि हम घरेलू प्रयासों के जरिए राहत और पुनर्वास की आवश्यकता को पूरा कर लेंगे. इस बात पर केंद्र और केरल के बीच मनमुटाव भी हुआ था.
फिलहाल भारत सरकार सभी विदेशी सरकारी और एजेंसियों से इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी को दान करने के लिए कह रही है. जिसके बाद एंपॉवर्ड ग्रुप तरीका बताएगा कि मदद को आगे कैसे भेजा जाए.
श्रंगला ने बताया है कि हमारे पास निश्चित तौर पर ऐसे आइटम हैं जो प्राथमिकता वाले हैं और जिनकी हमें बेहद जरूरत है. हमें कई देशों से ये मदद मिल रही है और कई देश अपनी तरफ से इस तरह की मदद के लिए आगे आए हैं.
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