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विदेशों से सहायता न लेना की नीति को भारत ने बदला. कोविड संकट में उसे बदलना पड़ा. लेकिन इसके बाद विदेशों से आई मदद की हैंडलिंग पर सरकार को तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. एक मसला है कि राहत सामग्री के देर से जरूरतमंदों तक पहुंचने का और दूसरा मुद्दा है कि राहत सामग्री के बंटवारे में भेदभाव को लेकर.
इन आलोचनाओं के केंद्र में महत्वपूर्ण विदेशी राहत सहायता- जिसमें क्रिटिकल केयर उपकरण भी हैं -के वितरण की प्रक्रिया के 'ब्लैक होल' होने की चिंता है ,जहां मोदी सरकार की तरफ से नाम मात्र या शून्य जवाबदेही और पारदर्शिता है .
यह स्थिति तब थी जब मीडिया रिपोर्टों के अनुसार एयरपोर्ट पर प्रशासनिक लालफीताशाही के कारण लगभग 300 टन इमरजेंसी कोविड-19 सप्लाई कई दिनों से फंसी पड़ी थी.
3 मई तक आयी विदेशी राहत सामग्री की सप्लाई यह है:
इसमें शामिल थे:
यह सब ऊपर लिखे और अन्य देशों के अलावा आये शिपमेंट का हिस्सा हैं.
अंतरराष्ट्रीय शिपमेंट को दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दूतावास अधिकारियों तथा नीति आयोग, विदेश मंत्रालय, इंडियन रेड क्रॉस, स्वास्थ्य मंत्रालय और कस्टम के अधिकारियों की उपस्थिति में प्राप्त किया जाता है .
5 मई को एक सरकारी प्रेस वक्तव्य ने यह स्पष्ट किया कि,
उनके अनुसार "अगर कंसाइनमेंट मिलिट्री हवाईअड्डे पर आता है या ऑक्सीजन प्लांट जैसे बड़े उपकरण आते हैं तब DMA(डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स) भी HLL की मदद करता है.
5 दिन का यह क्रिटिकल अंतराल ,जिस में ऑक्सीजन की कमी के कारण गई बहुत सी जानों को बचाया जा सकता था, क्योंकि उपकरण गोदाम में फंसे रहे.
नीति आयोग के ट्वीट के अनुसार 3 मई को जाकर मीटिंग में राज्य सरकारों से यह निवेदन किया गया था कि "वे तुरंत नोडल ऑफिसर की नियुक्ति करें ताकि मुफ्त वितरण के लिए कोविड राहत सामग्री के आयात के इच्छुक राज्य उन तक पहुंच सके और सर्टिफिकेट ले सके". यहां तक कि कोविड-19 राहत सामग्री के विदेश से आयात पर IGST से राहत देने का जरूरी निर्णय भी 3 मई को लिया गया.
सेंट्रल बोर्ड आफ इनडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम ने स्पष्ट किया कि 'वर्तमान' में कोई भी कंसाइनमेंट ( 3000 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर का) कस्टम अथॉरिटी के पास पेंडिंग नहीं है. यह सफाई मीडिया में हंगामे और गोदामों से कंसाइनमेंट को निकालने के बाद ही दी गई.
हालांकि राहत वितरण प्रक्रिया से जुड़े निजी एजेंसी की सूत्रों के अनुसार अभी भी राज्यों में राहत सप्लाई के प्रबंधन के लिए नोडल ऑफिसर या एजेंसी को लेकर स्पष्टता नहीं है- जिसकी मांग केंद्रीय अथॉरिटी ने 3 मई को ही की थी -ताकि विभिन्न राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों के निवेदन के आधार पर वितरण किया जा सके और वितरण के टाइमलाइन का भी प्रबंधन किया जा सके.
बाद में अपडेटेड प्रेस रिलीज के माध्यम से इसमें सुधार करते हुए इसे 31 राज्यों के 38 संस्थानों में बदला गया.
राज्यों की अपने लिस्ट के हिसाब से कुछ अस्पताल जिन्हें सप्लाई मिली है उनमें LHMC, सफदरजंग,RML,AIIMS,DRDO,ITBP,NITRD और दिल्ली के मोती नगर और पूथ कलां में दो अस्पताल शामिल है-जो कि केंद्र सरकार के अंदर आते हैं .PGI चंडीगढ़, विभिन्न राज्यों के AIIMS और DRDO, JIPMER पुडुचेरी, रेलवे,ICMR,CGHS अस्पतालों को भी इसका वितरण हुआ है. लेकिन सबसे बुरे प्रभावित राज्य जैसे महाराष्ट्र के एक भी बड़े अस्पताल का नाम इसमें नहीं है ,जबकि महाराष्ट्र को लाभार्थी राज्यों की सूची में रखा गया है.
राज्यसभा सांसद और शिवसेना की डिप्टी लीडर प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि "क्या मुझे पता है कि क्या संसाधन आवंटित हो रहे हैं और कब से? नहीं मुझे नहीं पता .क्योंकि भारत सरकार की तरफ से कोई पारदर्शिता नहीं है"
आंध्र प्रदेश सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि 4 मई की शाम तक वहां कोई भी केंद्रीय सहायता नहीं पहुंची थी, जबकि राज्य ने विशेष रुप से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर ,ऑक्सीजन डिलीवरी उपकरण (बाईपास, ट्यूब ,वॉल्व, वेंटिलेटर ,N-95 मास्क) और सबसे जरूरी और ज्यादा वैक्सीन डोज की मांग की थी .
एक दूसरे अधिकारी ने (नाम ना उजागर करने की शर्त पर) कहा कि "अब तक हमें कोई भी विदेशी सहायता सप्लाई नहीं मिली है .अब तक आंध्रप्रदेश की ओर कुछ नहीं आया है. अब तो हम केंद्र को बाईपास करते हुए सीधे विदेशी संगठनों से बातचीत करने लगे हैं"
न्यूयॉर्क से USISPF( US-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम) के अध्यक्ष और सीईओ मुकेश अघि ने बताया कि वे अपनी सारी राहत सहायता रेड क्रॉस के माध्यम से भेज रहे हैं. लेकिन साथ ही वे भारत में NGOs और स्थानीय पार्टनर खोज रहे हैं जिनका मजबूत वितरण तंत्र हो,ताकि सहायता की मांग कर रहे राज्यों तक सीधे राहत सामग्री पहुंचाया जा सके.
कुछ मामलों में जैसे जर्मनी से आए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के उपकरण को RML,दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल,AIIMS झज्जर भेजा गया है. फ्रांस से आए 8 बड़े ऑक्सीजन जेनरेशन प्लांट के केस में ,जिसके लिए अस्पताल में 15 स्क्वायर मीटर का रूम चाहिए ताकि 250 बेड़ों तक ऑक्सीजन सप्लाई हो सके, फ्रांस दूतावास निर्माता कंपनी और संबंधित अस्पतालों के बीच संपर्क स्थापित करवा रही है ,जहां 1 सप्ताह के अंदर यह उपकरण लग जाएंगे .
"अगर आवंटन अभी शुरू भी नहीं हुआ है तो यह आपराधिक कार्य है"USAID के साथ नजदीकी से काम करने वाले शख्स ने कहा,, उसने यह भी बताया कि राहत एजेंसी आधिकारिक रूप से तो मौन है पर इसको लेकर 'सावधान' है कि वास्तविक प्राप्तकर्ता कौन है.
US टैक्सपेयर्स के पैसे से भारत को भेजी जा रही सहायता के लिए किसी ट्रैकिंग वेबसाइट के प्रश्न पर स्टेट डिपार्टमेंट की डिप्टी प्रवक्ता Jalina Porter ने पिछले सप्ताह सधा हुआ जवाब दिया कि "जहां तक किसी विशेष वेबसाइट की बात है ,ट्रैकिंग के मसले पर अभी हमारे पास कुछ भी बताने या घोषणा करने के लिए नहीं है"
दिल्ली में नियुक्त एक डोनर देश के राजदूत ने कहा कि "इंफ्रास्ट्रक्चर तथा संगठन स्थापित करना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है और अभी तालमेल बैठाना महत्वपूर्ण है. आगे का सोचना चाहिए ,आपके पास क्या है उसकी सूची बनाइए. अच्छा होता है अगर विदेशी सहायता पाने और वितरण करने के लिए एक केंद्रीकृत तंत्र होता."
" यह एक नाजुक समय है. पारदर्शिता की कमी, बढ़ती कालाबाजारी- यह कुछ जरूरी मुद्दे हैं जो भारत की प्रतिष्ठा से जुड़े हैं" एक राजदूत ने जोर देते हुए कहा.
( स्मिता शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार है. उनका ट्विटर हैंडल है @Smita_Sharma. यह एक रिपोर्ट-एनालिसिस है. यहां लिखे विचार लेखिका के अपने हैं. द क्विंट का उससे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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