Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Coronavirus Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019पहली वेव में 3.6% कोविड मरीजों को हुआ फंगल और बैक्टीरियल इनफेक्शन

पहली वेव में 3.6% कोविड मरीजों को हुआ फंगल और बैक्टीरियल इनफेक्शन

रोगियों को फंगल इनफेक्शन होने की वजह ये भी हो सकती है कि अस्पतालों ने इनफेक्शन संबंधी नीतियों का पालन न किया हो

क्विंट हिंदी
कोरोनावायरस
Updated:
<div class="paragraphs"><p>ICMR की स्टडी के मुताबिक 3.6 प्रतिशत मरीजों को हुआ था फंगल इनफेक्शन</p></div>
i

ICMR की स्टडी के मुताबिक 3.6 प्रतिशत मरीजों को हुआ था फंगल इनफेक्शन

(फोटो: Altered by The Quint)

advertisement

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान इससे पीड़ित रोगियों में ब्लैक फंगस के मामले सामने आ रहे हैं. ICMR ने सोमवार को एक स्डडी प्रकाशित की. इस स्टडी के मुताबिक, पिछली लहर के दौरान अस्पताल में भर्ती रोगियों में करीब 3.6 प्रतिशत को सेकंड्री बैक्टीरियल और फंगल इन्फेक्शन हुआ था. ये प्रतिशत अलग-अलग हॉस्पिटल में भर्ती रोगियों में 1.7 प्रतिशत से लेकर 28 प्रतिशत तक था.

कोरोना के बाद मृत्युदर में बढ़ोतरी

कोविड के बाद हुए इन इनफेक्शन्स से रोगियों में मृत्यु दर 10.6 प्रतिशत से बढ़कर 56.7 प्रतिशत हो गई. ये डेटा उन 10 हॉस्पिटल का है जहां भर्ती मरीजों का डेटा इकट्ठा किया गया था. आंकड़ों से पता चलता है कि सेकेंड्री इंफेक्शन वाले लोगों में 10 हॉस्पिटल में से एक में मृत्यु दर 78.9 प्रतिशत तक थी.

ICMR में एपिडेमियोलॉडी एवं संचारी रोग विभाग की वैज्ञानिक और पेपर की करिस्पॉन्डिंग ऑथर, डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि,

‘’हमने स्टडी में पाया कि इनमें से ज्यादातर सेकेंड्री इनफेक्शन में से 78%, अस्पताल में हुए थे. इनफेक्शन के लक्षण हॉस्पिटल में भर्ती होने के 2 दिन बाद शुरु हुए. इनमें से ज्यादातर नमूनों में ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया थे, जो हॉस्पिटल बेस्ड थे. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि महामारी के बीच अस्पतालों में इनफेक्शन से जुड़ी नीतियां ठीक से लागू नहीं की गईं. डबल ग्लव्स पहनने की वजह से हाथों की हाइजीन उतनी अच्छी नहीं थी. इसके अलावा गर्म मौसम में पीपीई किट पहनना भी इसकी वजह हो सकती है.’’

क्यों खतरनाक हैं ये इनफेक्शन?

उन्होंने आगे कहा, ''इनफेक्शन होने की सबसे आम वजह क्लेबसिएला निमोनिया और एसिनेटोबैक्टर बाउमेनिया रोगाणु थे. पिछली ICMR रिपोर्ट के मुताबिक, आमतौर पर, ई कोली नाम का बैक्टीरिया सबसे आम पाया जाने वाला रोगजनक है. दोनों तरह के इनफेक्शन का इलाज काफी मुश्किल है. क्योंकि समय के साथ इन बैक्टीरिया ने बहुत सारे प्रतिरोधी जीन विकसित कर लिए हैं. कोविड होने के बाद इनका इलाज और मुश्किल हो जाता है. अस्पतालों को इनफेक्शन कंट्रोल पर ध्यान देना चाहिए और रोगाणुरोधी प्रिस्क्रिप्शन पर फिर से ध्यान देना चाहिए.''

ध्यान देने वाली बात ये है कि अस्पतालों ने दूसरी लहर के दौरान बढ़े फंगल इनफेक्शन म्यूकर माइकोसिस के मामलों की जानकारी नहीं दी.

कोविड 19 के साथ फंगल इनफेक्शन यानी दोहरी समस्या

सर गंगाराम हॉस्पिटल में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड, डॉ. चांद वत्तल ने बताया कि ये एक दोहरी समस्या है यानी कोविड 19 के साथ सेकेंड्री इनफेक्शन. इससे मृत्यु दर में काफी बढ़ोतरी हुई है. दूसरी लहर में जिन म्यूकर माइकोसिस संबंधित मामलों की जानकारी आई है, उनमें से ज्यादातर स्टेरॉयड के ज्यादा इस्तेमाल से जुड़े हैं. दूसरी लहर की पीक के दौरान, स्टेरॉयड बाजार से खत्म हो गए थे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. ये बाजार में उपलब्ध सबसे आम दवाओं में से एक है. बता दें कि सर गंगाराम हॉस्पिटल उन 10 अस्पतालों में से एक है जिसे इस स्टडी में शामिल किया गया है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ध्यान देने वाली बात ये है कि ये स्टडी आने वाले सालों में हैवी दवाओं के ज्यादा सेवन की वजह से वायरस के ज्यादा प्रतिरोधी होने की समस्या के प्रति आगाह करती है. अस्पतालों में निर्धारित सभी वायरसरोधी दवाओं में से करीब 74.4% दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ‘वॉच एंड रिजर्व’ कैटेगरी की थीं.

WHO की एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर तीन कैटेगरी

WHO सभी एंटीबायोटिक दवाओं को तीन कैटेगरी में बांटता है - पहली हैं ऐक्सेस ड्रग्स जो आमतौर पर होने वाले बैक्टीरिया संबंधित रोगों पर काम करती हैं और कम पोटेंशी की होती हैं. दूसरी हैं वॉच ड्रग्स जो हाई पोटेंशी की होती हैं और इलाज के लिए जरूरी हैं. इसके अलावा, रिजर्व ड्रग्स जिन्हें दवा के लिए अंतिम उपाय के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. ये दवाएं प्रतिरोधी रोगाणुओं और इनफेक्शन की पुष्टि होने के बाद ही दी जाती हैं.

डॉ. वालिया ने कहा, ''लगभग 47 प्रतिशत इनफेक्शन मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट पाए गए. हालांकि, प्रेस्क्राइब की गईं 74 प्रतिशत दवाएं 'वॉच एंड रिजर्व' कैटेगरी की थीं. जिन 10 अस्पतालों से डेटा इकट्ठा किया गया है वे ICMR के नेटवर्क में हैं. इन अस्पतालों को इनफेक्शन कंट्रोल और रोगाणुरोधी प्रबंधन के लिए ट्रेनिंग भी दी गई है. हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं कि बाकी के अस्पतालों में क्या हो रहा है.''

उन्होंने कहा, ''इन अस्पतालों में अच्छी लैब सुविधाएं हैं और इनमें से ज्यादातर एंटीबायोटिक तब ही प्रेस्क्राइब की जानी चाहिए जब कल्चर टेस्ट पॉजिटिव आता है. हालांकि, माइक्रोबायल कल्चर के लिए बहुत कम संख्या में नमूने एकत्र किए गए थे.

1 जून, 2020 से 30 अगस्त, 2020 के बीच दस अस्पतालों में भर्ती किए गए कोविड 19 के 17,534 रोगियों में से केवल 7,163 नमूने माइक्रोबायल कल्चर टेस्ट के लिए भेजे गए थे. इनमें से ज्यादातर नमूने ऐसे थे जो किसी एक ही रोगी के थे. कम नमूना इकट्ठा किए जाने की पीछे की वजह के बारे में डॉक्टरों ने कहा कि ऐसा व्यावहारिक समस्याओं के कारण था. पहली लहर के दौरान जब बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, तब बहुत से हेल्थ वर्कर्स इन नमूनों को इकट्ठा नहीं करना चाहते थे.

डॉ. वत्तल ने कहा कि नमूने लेना काफी कम इसलिए हो गया क्योंकि लोग नमूने लेने से डरते थे. हालांकि, लोग अब खुद को बचाने के तरीकों के बारे में जाकरूक हैं इसलिए सैंपलिंग बढ़ गई है.

ICMR की ओर से कोविड 19 रोगियों में रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग को लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 24 May 2021,09:58 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT