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अमृतपाल सिंह और राशिद जेल से जीते चुनाव, क्या अब लेंगे शपथ; जानें क्या कहता है नियम?

अमृतपाल सिंह और इंजीनियर अब्दुल राशिद शेख कौन हैं. दोनों चर्चा में कैसे आए?

क्विंट हिंदी
चुनाव
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<div class="paragraphs"><p>अमृतपाल सिंह और राशिद जेल से जीते चुनाव, क्या अब लेंगे शपथ; जानें क्या कहता है नियम?</p></div>
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अमृतपाल सिंह और राशिद जेल से जीते चुनाव, क्या अब लेंगे शपथ; जानें क्या कहता है नियम?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के नतीजों में दो असामान्य विजेता सामने आए हैं - पंजाब के खडूर साहिब से "वारिस पंजाब दे" के प्रमुख अमृतपाल सिंह और जम्मू-कश्मीर के बारामूला से इंजीनियर अब्दुल राशिद शेख- दोनों ही वर्तमान में गंभीर आरोपों के कारण जेल में हैं जिनकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NSA) कर रही है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि दोनों कौन हैं, इन पर क्या आरोप है और क्या ये संसद में शपथ लेंगे?

अमृतपाल सिंह कौन है?

अमृतपाल का पूरा नाम अमृतपाल सिंह संधू है जिसका जन्म 17 जनवरी 1993 में हुआ था. एक दशक तक दुबई में रहने के बाद, वह सितंबर 2022 में पंजाब लौट आया और विवादास्पद रूप से 'वारिस पंजाब दे' ("पंजाब के वारिस") नाम का एक अभियान शुरू किया जिसने युवाओं को ड्रग्स से परहेज करने, सिख धर्म के एक पारंपरिक रूप को अपनाने और एक संप्रभु सिख राज्य (खालिस्तान) की वकालत करने के लिए प्रोत्साहित किया.

अमृतपाल सिंह फरवरी 2023 में अपने एक समर्थक की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस स्टेशन पर भीड़ द्वारा हमला किए जाने के बाद चर्चा में आया. इसके बाद पिछले साल एक बड़े अभियान के बाद उसे गिरफ्तार किया गया था क्योंकि वे कई महीनों तक फरार रहे और फिर उन्होंने सरेंडर कर दिया.

31 वर्षीय अमृतपाल सिंह ने अपने पिता तरसेम सिंह और स्थानीय समर्थकों के नेतृत्व में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा.

हालिया चुनाव में अमृतपाल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार को 1, 97, 120 वोटों से हराया है. अमृतपाल सिंह को 4,04,430 वोट मिले जबकि कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा को 2,07,310 वोट मिले और आम आदमी पार्टी (आप) के लालजीत सिंह भुल्लर 1,94,836 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.

अब्दुल राशिद शेख कौन हैं?

इंजीनियर अब्दुल राशिद शेख 4 जून को लोकसभा चुनाव 2024 के आए परिणाम के दिन चर्चा में आए, जब उन्होंने बारामूला लोकसभा सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हरा दिया.

निर्दलीय प्रत्याशी राशिद शेख ने पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को 2 लाख 4 हजार 142 वोटों से हराया है. राशिद शेख को 4 लाख 72 हजार 481 वोट मिले हैं जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार उमर अब्दुल्ला को 2 लाख 68, 339 वोट मिले हैं. इसी सीट पर सज्जाद लोन को 1 लाख 73 हजार 239 वोट मिले हैं.

हालांकि, राशिद वहां से दो बार एमएलए रह चुके हैं. लेकिन पिछले पांच सालों से वे यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट) के चार्ज में तिहाड़ जेल में सजा काट रहे हैं. जानकारी के अनुसार, राशिद अवामी इत्तेहाद पार्टी से हुआ करते थे लेकिन इस चुनाव में वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे. उन्होंने साल 2019 के आम चुनाव में भी स्वतंत्र दावेदार के तौर पर चुनाव लड़ा था लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुहम्मद अकबर लोन से हार गए थे.

अमृतपाल और शेख पर क्या हैं आरोप?

अमृतपाल सिंह मार्च 2023 से राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत असम के डिब्रूगढ़ की जेल में हैं. NSA एक निवारक निरोध कानून है जो सरकार को औपचारिक आरोप लगाए बिना 12 महीने तक व्यक्तियों को हिरासत में रखने की अनुमति देता है.

राशिद 9 अगस्त, 2019 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में हैं और उन पर कथित आतंकी फंडिंग मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं.

 क्या दोनों लेंगे शपथ?

दोनों की चुनावी जीत का मतलब है कि अब उन्हें जेल में रहने के बावजूद संसद सदस्य के रूप में संवैधानिक जनादेश प्राप्त है.

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शपथ लेना संसद सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभाने की दिशा में पहला कदम है. हालांकि संविधान में इसका स्पष्ट जिक्र नहीं है लेकिन अतीत में ऐसे कई उदाहरण रहे हैं जिनमें जेल में बंद सांसदों को शपथ लेने के लिए अस्थायी पैरोल दी गई है.

मार्च में, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह, जो उस समय मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद थे, को एक अदालत ने दूसरे कार्यकाल (राज्यसभा) के लिए राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ लेने की अनुमति दी थी. एक ट्रायल कोर्ट ने जेल अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उन्हें पर्याप्त सुरक्षा के साथ संसद ले जाया जाए और वापस जेल लाया जाए.

2021 में, असम के सिबसागर से जीतने के बाद, एनआईए कोर्ट ने अखिल गोगोई को असम विधानसभा के सदस्य के रूप में शपथ लेने के लिए अस्थायी रूप से जेल से बाहर आने की अनुमति दी.

हालांकि, जेल से सबसे प्रसिद्ध चुनावी जीत 1977 में हुई, जब ट्रेड यूनियनिस्ट जॉर्ज फर्नांडिस आपातकाल के दौरान जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर सीट से चुने गए थे. शपथ समारोह से पहले उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था.

क्या है नियम?

शपथ लेने की अनुमति मिलना जमानत पर रिहा होने जैसा नहीं है. यह एक दिन के लिए विशेष पैरोल के समान है.

जेल में बंद सांसद को स्पीकर को लिखना होगा कि वह कार्यवाही में शामिल नहीं हो पाएगा. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 101(4) में कहा गया है कि यदि कोई सांसद बिना अनुमति के सभी बैठकों से 60 दिनों से अधिक समय तक अनुपस्थित रहता है, तो उसकी सीट खाली घोषित कर दी जाएगी.

संसद सत्र में भाग लेने या संसद में वोट डालने के लिए, सांसद को अनुमति के लिए अदालत जाना होगा. हालांकि, अगर इंजीनियर राशिद या सिंह को दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल की जेल होती है, तो वे तुरंत लोकसभा में अपनी सीट खो देंगे, जैसा कि 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि ऐसे मामलों में सांसदों और विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. इस फैसले ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को हटा दिया, जिसके तहत दोषी सांसदों और विधायकों को अपने अभियोग के खिलाफ अपील करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाता है.

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