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असम चुनाव : CAA विरोध के बाद भी बीजेपी की सरकार - जीत के 3 फैक्टर

कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन अच्छा वोट प्रतिशत लाने में कामयाब रहा पर बहुमत तक नहीं पहुंच पाया

आदित्य मेनन
असम चुनाव
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स्थानीय चेहरों ने बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई
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स्थानीय चेहरों ने बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई
फोटो : Arnica Kala/The Quint

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असम में बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ चुनावी किला फतह करने में कामयाब रही. देर शाम तक आए रुझानों के मुताबिक बीजेपी के नेतृत्व वाला अलायंस 80 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. चुनाव आयोग के आधिकारिक नतीजों के मुताबिक पहली दो सीटों पर जीत का खाता भी बीजेपी ने ही खोला है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अपने सहयोगी दलों AIUDF, BPF और लेफ्ट के साथ अब तक 46 सीटों पर ही बढ़त कायम रख पाई है.

बीजेपी की जीत के फैक्टर

1.केंद्र की मोदी सरकार का नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर इसी राज्य से काफी विरोध हुआ. हालांकि, विधानसभा चुनाव में हुई वोटिंग में इस विरोध का कोई खास असर नहीं दिखा.

वहीं CAA का मुद्दा उठाने वाली कांग्रेस पार्टी और सहयोगी दल इसका कोई खास राजनीतिक फायदा नहीं ले सके. अब तक आए रुझान यही कहते हैं कि बीजेपी सरकार की शुरू की गई Arunodoi जैसी कुछ जनहित की योजनाओं का लाभ पार्टी को मिला है.

2. असम के छोटे समुदायों में भी बीजेपी अपनी पकड़ बनाती दिख रही है. इन समुदायों में मोरान, मिसिंग, राभा और देवरी शामिल हैं. असम सरकार और खासतौर पर स्वास्थ्य मंत्री हिमंता बिस्वा सर्मा की कोरोना महामारी की परिस्थितियों को संभालने को लेकर काफी तारीफ हुई. लेकिन, ये कहना मुश्किल है कि NDA की जीत का यही एक कारण है.

3. सबसे बड़ा फैक्टर यही है कि दो बड़े स्थानीय चेहरों सर्बानंद सोनोवाल और हिमंता बिस्वा सरमा ने बीजेपी को चुनाव में सफलता दिलाने में अहम भूमिका निभाई.

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कांग्रेस से कहां गलती हुई?

वोट शेयर के लिहाज से देखें तो कांग्रेस और सहयोगियों का प्रदर्शन उतना भी खराब नहीं है. 42% वोट कांग्रेस और सहयोगियों को मिले हैं. NDA को मिले वोटों का कुछ ही प्रतिशत कम. ऐसा लगता है कि अलायंस मुस्लिम वोट हासिल करने में तो कामयाब रहा.लेकिन, बीजेपी वोटरों को अपने पक्ष में लाने में सफलता नहीं मिल पाई.

कांग्रेस के नेतृत्व वाले अलायंस ने लोअर असम और बरक घाटी वाले इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया.लेकिन अपर असम में सफल नहीं हो पाए. ये भी देखा गया है कि कांग्रेस ने चाय बगानों वाले आदिवासियों के बीच जमीन खोई है. इसी के चलते पार्टी को अपर असम में नुकसान उठाना पड़ा.

कांग्रेस ने बीजेपी को बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दों पर घेरने के लिए कैंपेन जरूर चलाया. लेकिन, सर्बानंद सोनोवाल और हिमंता बिस्वा के सामने एक मजबूत चेहरा नहीं ला पाई.  कांग्रेस ने अगर गौरव गोगोई और प्रद्युत बोर्दोलोई को चुनावी मैदान में उतारा होता तो शायद नतीजे कुछ और हो सकते थे.

बीजेपी के सामने सीएम चुनने की चुनौती

चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी के सामने अब मुख्यमंत्री पद के लिए एक चेहरा चुनना भी एक चुनौती है. सर्बानंद सोनावाल और हिमंता बिस्वा सर्मा, दोनों ही के समर्थन में पर्याप्त दलीलें हैं. सोनावाल अपर असम में लोकप्रिय हैं और छात्र संगठन AASU के बैकग्राउंड से आए लोगों में भी उनको लेकर स्वीकार्यता है.  वहीं हिमंता बिस्वा सर्मा बंगाली हिंदू और शहरी वोटर के बीच लोकप्रिय हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए ये समय अपने फैसलों पर मंथन करने का है.

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