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कोरोना महामारी के बीच बिहार ऐसा पहला राज्य होगा जहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. बिहार में इसी साल अक्टूबर या नवंबर की शुरुआत में चुनाव होने हैं. इस बार भी जेडीयू, बीजेपी और एलजेपी के सामने विपक्ष का महागठबंधन है. लेकिन दोनों तरफ से कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा ये अब तक साफ नहीं हुआ है. लेकिन इसे लेकर चर्चा खूब तेज है.
सबसे पहले बात करते हैं बिहार की सत्ता में काबिज बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी की. एनडीए में शामिल इन दलों ने चुनाव की पूरी तैयारी कर ली है, लेकिन अब तक सीट शेयरिंग को लेकर बात नहीं बन पाई है.
2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने बीजेपी और एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ा था. तब उन्होंने लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन में चुनाव लड़ा था. लेकिन चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. बीजेपी ने भी नीतीश को गले लगाया और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया. अब पहले ये देख लेते हैं कि पिछले चुनाव में बीजेपी और नीतीश की पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ी थी. साथ ही एनडीए में शामिल चिराग पासवान की एलजेपी के आंकड़े भी देखेंगे.
अब हमने आपको बताया कि पिछले चुनावों में इन तीनों पार्टियों ने कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा और कितनी सीटें जीतीं. लेकिन फिर से याद दिला दें कि पहले नीतीश एनडीए से अलग थे. इस बार समीकरण थोड़े बदले हैं. कहा जा रहा है कि इस बार 243 सीटों में से नीतीश की जेडीयू 122 से ज्यादा सीटों की मांग कर रही है. लेकिन बीजेपी नेता इसके लिए कतई तैयार नहीं हैं. बीजेपी फिलहाल जेडीयू को 100 सीटें देने पर विचार कर रही है. हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ये साफ कर चुके हैं कि उनके गठबंधन का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे.
इसके अलावा चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी 43 सीटों की मांग कर रही है, लेकिन उनके खाते में से अब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी कुछ सीटें ले सकते हैं. क्योंकि मांझी के भी एनडीए और नीतीश कुमार से जुड़ने की खबरें सामने आ रही हैं. हालांकि इसका ऐलान भी सीट शेयरिंग के बाद ही होना तय है.
हालांकि अगर एलजेपी की सीटें कम होती हैं तो एनडीए में दरार आने की भी आशंका है. क्योंकि चिराग पासवान और नीतीश कुमार के बीच तनातनी की खबरें पिछले दिनों खूब चर्चा में रहीं. एलजेपी ने कई मामलों में जेडीयू को घेरा है. ऐसे में मांझी का एनडीए में आना इस दरार को और बढ़ाने का काम कर सकता है.
अब बात बिहार के विपक्षी दलों की करते हैं, जिसमें लालू यादव की पार्टी आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआई(एम) और आरएलएसपी जैसे दल शामिल हैं. हाल ही में इन सभी दलों का नाम सीपीआई के प्रदेश सचिव रामनरेश पांडे ने मीडिया को बताए. फिलहाल इन पार्टियों में भी सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत का दौर शुरू हो चुका है. हालांकि कुछ दलों की आरजेडी नेता तेजस्वी यादव से नाराजगी बताई जा रही है. इसी नाराजगी को वजह बताकर जीतराम मांझी ने महागठबंधन का हाथ छोड़ दिया है. वहीं आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा ने भी हाल ही में आरजेडी के खिलाफ अपनी नाराजगी जताई. उधर खुद आरजेडी के पांच विधायक पहले ही नीतीश का दामन थाम चुके हैं. हाल ही में बिहार के पूर्व डीजीपी सुनील कुमार और आरजेडी नेता हर्षवर्धन सिंह ने भी जेडीयू ज्वाइन कर ली है. अब देखते हैं कि विपक्ष के इन दलों ने पिछली बार कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि तब महागठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी शामिल थी.
बताया जा रहा है कि CPI (ML) ने भी महागठबंधन से जुड़ने का फैसला किया है. CPI (ML) ने पिछले चुनावों में 99 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और तीन सीटें जीतकर लाई थी.
अब महागठबंधन की सीट शेयरिंग की बात करें तो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी आरडेजी के 150 सीटों पर लड़ने की चर्चा है, वहीं कांग्रेस को करीब 50 सीटें दी जा सकती हैं. उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को 10-15 सीटें, लेफ्ट को करीब 20 और वीआईपी को 7-10 सीटें दिए जाने के समीकरण बन रहे हैं. हालांकि अब तक सीट शेयरिंग को लेकर किसी भी नेता ने कुछ साफ नहीं कहा है.
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