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देश में फिलहाल दो चीजों की चर्चा है. एक इंडियन प्रीमियर लीग (IPL 2020) और दूसरा ‘बिहार प्रीमियर लीग’ यानी बिहार विधानसभा चुनाव 2020. दोनों में खिलाड़ी हैं, कप्तान हैं, सलामी बल्लेबाज हैं, पेसर हैं, पैसा है, स्ट्रैटजी है, टीम मैनेजर हैं, टीम ओनर हैं. आईपीएल भी डिजिटल है और बिहार चुनाव भी. IPL में आठ टीमे हैं. बिहार लीग में दो टीमें हैं. यहां आपको बताते हैं बिहार लीग की दोनों टीमों के प्लेइंग 11 के बारे में. बिहार में मुकाबला है ‘मोदी 11 vs तेजस्वी 11’ के बीच.
बीजेपी ने चुनाव से पहले ही इस बात का ऐलान कर दिया था कि वो नीतीश कुमार की कप्तानी में चुनाव लड़ेगी.
कप्तान तो मोदी हैं लेकिन माहौल ऐसा है कि ओपनिंग बैट्समैन आउट तो पूरी टीम बिखर जाएगी. जब बाकी पार्टियां प्रैक्टिस मैच का सोच रही थी तब पीएम मोदी मैदान में आकर बल्ले की जगह लिट्टी चोखा खाते हुए पिच का मुआएना कर रहे थे.
अमित शाह मोदी 11 के थिंकटैंक. टीम को क्या और किस तरह की स्ट्रैटेजी पर काम करना होता है वो अमित शाह के हाथों में है. किसको किस नंबर पर बैटिंग करानी है, किससे कब बॉलिंग करानी है, कौन सी गेंद डलवानी है, ये सब वो तय करते हैं. सामने वाली टीम की कमजोर नब्ज क्या है, ये पकड़ना भी उन्हें आता है. किसी वजह से टीम हार भी गई तो उन्हें हारी हुई बाजी भी जीतना आता है.
सुशील मोदी करीब 13 साल से बिहार के डिप्टी सीएम रहे हैं. इन्हें आप टीम ओनर और कप्तान के बीच की कड़ी भी कह सकते हैं. बैटिंग से ज्यादा फील्डिंग में भरोसा. लपकने का कोई मौका नहीं छोड़ते. जैसे 20 महीने की महागठबंधन सरकार को लपका. नीतीश के साथ आए, नई सरकार बनाई और फिर डिप्टी सीएम भी बने.
बिहार हो या केंद्र की राजनीति पासवान फैमली विनिंग टीम में रहना जानती है. इनकी गेंद कब किधर घूम जाए ये गेंद को भी नहीं पता रहता. कभी यूपीए, कभी एनडीए की तरफ. इन दिनों अपनी ही इनकी फिरकी देखकर कप्तान का कलेजा ही मुंह को आया हुआ है.
2015 में जब नीतीश ने मांझी को पार्टी से बाहर किया तब मांझी ने अपनी पार्टी बनाकर एनडीए में फिक्स हो गए. 2019 में भले ही मांझी ने महागठबंधन में जगह बनाई हो लेकिन अब वो वापस NDA में आ चुके हैं और एनडीए के दूसरे दलित चेहरे चिराग पर अटैक कर नीतीश के लिए दलित वोटबैंक फिक्स करने में लगे हैं.
टीम मोदी में आईटी सेल का भी अहम रोल है. पानी पिलाने से लेकर विकेट के पीछे स्लिप्स में शोरकर विरोधी पार्टियों के बल्लेबाज पर प्रेशर बनाना हो, ये कभी नहीं चूकता. वैसे ये कभी-कभी खुद भी सिली प्वाइंट पर खड़ा नजर आता है.
बीजेपी के अध्यक्ष और टीम मोदी के मिडिल ऑर्डर को संभालने के लिए अभी हाल ही में जिम्मेदारी मिली है. बिहार की राजनीतिक जमीन को अपने कॉलेज के जमाने से समझते हैं क्योंकि यहीं से राजनीति की शुरुआत की थी.
पटना से ही सांसद. बिहार चुनाव लीग में होमग्राउंड का फायदा उठाने के लिए भी काम आएंगे. फास्ट बॉलर वाला गुस्सैल तेवर. विपक्षियों पर हमेशा हमलावर.
कप्तान नीतीश कुमार खेमे के आरसीपी सिंह जेडीयू में नीतीश के बाद सबसे ताकतवार नेता हैं. आखिरी ओवरों में कब अचानक चौके छक्के मार दें कह नहीं सकते. नीतीश और आरसीपी एक ही जगह से आते हैं. नालंदा से.
टीम मोदी में एक अदृश्य प्लेयर भी है. वो है 2019 लोकसभा चुनाव का रिजल्ट. जिसमें एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 सीटें जीत ली थी. ये वैसा ही प्रेशर है जैसे सिली प्वाइंट पर खड़ा फील्डर, सामने विरोधी बल्लेबाज को बार-बार डराता रहता है कि संभल कर रहना.
मुस्लिम और यादवों का कॉम्बिनेशन लेकर मैच में उतरने वाले लालू फिलहाल ‘चोटिल’ हैं. उन्हें पैवेलियन (रांची जेल) से मैदान में आने की इजाजत नहीं है. लेकिन जेल से ही खेल पर नजर बनाए हुए हैं. लालू की कप्तानी में आरजेडी ने 3 बिहार कप जीते. 2015 विधानसभा चुनाव में भी लालू ने नीतीश के साथ ‘गठबंधन की पारी’ खेलकर अपने दोनों बेटों की खेल में जगह बनाई और अब वो दोनों मेन टीम संभाल रहे हैं.
अपनी टीम में तेजस्वी सबसे अहम खिलाड़ी हैं. जब विकेट के पीछे होते हैं तो बल्लेबाज के कान में धारदार आवाज में शोर करते हैं जिससे सामने वाला गलती करे. खुद ही ओपनिंग के लिए भी आते हैं, क्योंकि और कोई ‘ओपनर’ नहीं है. हालांकि छोटे मोटे उपचुनाव टाइप मैच में अच्छा कर चुके हैं, लेकिन बिहार कप बुरी तरह हारे थे. इसलिए इस बार उन्हें संभल कर रणनीति बनानी होगी, और टीम के प्लेयर भी समझकर चुनने होंगे. अगर 2019 लोकसभा चुनाव वाली गलती हुई तो टीम फिर ढेर हो सकती है.
बड़े हिट नहीं लगाते लेकिन एक-एक टीम के लिए बनाते रहते हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी उन नेताओं में से हैं जो लगातार पीएम मोदी और बीजेपी पर हमलावर रहे हैं, चाहे कोरोना को लेकर सरकार को पहले ही आगाह करना हो या लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के पलायन का मामला हो.
राबड़ी देवी वैसे तो अब मैच में नहीं उतरती हैं लेकिन मेंटल सपोर्ट और टीम को बांध कर चलने का काम करेंगी तो तेजस्वी को विरोधी टीम पर फोकस करने का ज्यादा मौका मिलेगा.
तेजस्वी की टीम के पास मिडिल ऑर्डर संभालने के लिए गठबंधन की पार्टियों का सहारा है. उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी भी टीम का हिस्सा हैं. लेकिन उनकी बैटिंग ऑर्डर, कितने ओवर उनसे करवाने हैं मतलब कितने सीटें शेयर करनी है ये सब जीत और हार में बड़ा फैक्टर साबित होंगी.
राज्यसभा सांसद मनोज झा को अगर टीम तेजस्वी का सबसे ज्यादा भरोसेमंद खिलाड़ी कहें तो गलत नहीं होगा. संसद के मैदान से लेकर दूसरी टीमों के साथ रणनीति सेट करने में माहिर. पिछड़ों की पॉलिटिक्स करने वाले लालू के टीम में अगड़ों की अगुआई करने मे भी माहिर. समाजवाद की स्पिन गेंद पर विरोधियों को लपेट सकते हैं.
चौकिए मत, टीम तेजस्वी में नीतीश भी खिलाड़ी हैं. क्योंकि 15 साल से बिहार की टीम पर कब्जा जमाए हैं. बिहार के विकास में कोरोना, बेरोजगारी, बाढ़, क्राइम जैसे ‘रुकावट के लिए खेद’ वाले मुद्दे को ठीक न कर पाने का इलजाम है. ऐसे में तेजस्वी इसी बात का फायदा उठा सकते हैं.
भले ही तेजप्रताप अबतक कुछ खास नहीं कर पाए हों लेकिन अगर सही ट्रेनिंग और नेट प्रैक्टिस करेंगे तो भाई और कप्तान के लिए चुनाव प्रचार में मदद हो सकता है. पिता का ‘हेलिकॉप्टर शॉट’ वाला अंदाज इनके पास है, बस इस शॉट को सीखने के लिए मेहनत की जरूरत है. पूरी तरह से धार्मिक और शंकर के भक्त. जनता नेता में धर्म ढूंढ रही है. ऐसे में तेजस्वी टीम के पास ‘धर्म का बाउंसर’ भी विरोधियों पर फेंकने का रास्ता है.
लालू यादव अपनी ‘एम-वाय’ मतलब मुसलमान और यादव वोट बैंक के लिए जाने जाते रहे हैं. दोनों ‘प्लेयर’ को साथ ले आए तो खेल पलट सकता है. दोनों को सही इलाके में फील्डिंग दी जाए, बल्लेबाजी सही ऑर्डर में दी जाए तो बॉल मिस होने का चांस कम रहेगा. साथ ही तेजस्वी यादव ‘मुस्लिम-यादव’ स्ट्रैटेजी के अलावा अगड़ी जाति और बाकी समाज के प्लेयर पर भी फोकस कर रहे हैं जिसका फायदा मिल सकता है.
भले ही टीम तेजस्वी में बहुत ज्यादा जगह मीसा को न मिली हो या मीसा ने भी खुद अच्छा परफॉर्म न किया हो लेकिन जीत के लिए हर प्लेयर के साथ की जरूरत होती है. फिलहाल मीसा थर्ड मैन एरिया में फिल्डिंग कर रही हैं, दौड़ लगाएं तो क्या पता एक दो बल्लेबाजों को लपक भी सकती हैं.
एक जमाने में खूब स्कोर करते थे. आज पिच पर पकड़ ढीली पड़ गई है. लेकिन इस पुराने खिलाड़ी के टीम में होने से घाटा तो कम से कम नहीं है. और कुछ नहीं परसेप्शन ही बनता है. हालांकि पुराने प्रदर्शन के बूते टीम में ज्यादा अहमियत चाहते हैं. और खटपट भी हो रही है.
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