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वसीम बरेलवी के शेर की एक लाइन है कि मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा. ये लाइन जम्मू-कश्मीर चुनाव में बीजेपी के लिए कुछ हद तक फिट बैठती हैं. ये बात इसलिए कही जा सकती है क्योंकि चुनाव में बीजेपी को जम्मू में सबसे बढ़िया प्रदर्शन और सीटों पर बढ़त लेने की उम्मीद थी.......उम्मीद इस बात की भी थी कि जम्मू से सीटों का मार्जिन मिल जाएगा कि कश्मीर से मिलने वाले डेंट को पाट लेंगे और सरकार बन जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. रुझानों में बीजेपी की हार होती दिख रही है. ऐसे में बताते हैं कि आखिर बीजेपी के साथ ऐसा क्यों हुआ? बीजेपी ने कौन सी रणनीति अपनाई जो फेल हो गई?
जम्मू की 43 सीटों में से बीजेपी ने 29 पर पर जीत हासिल की है. जबकि, कश्मीर में बीजेपी एक भी सीट पर आगे नहीं है. वहीं 10 साल पहले जब 2014 में चुनाव हुए थे तक जम्मू में 37 सीटें थीं, जिसमें बीजेपी ने 25 सीटों पर जीत दर्ज की. जबकि कश्मीर में एक भी सीट नहीं मिली. यानी अबकी बार जम्मू में बीजेपी के लिए सीटों की संख्या बहुत कुछ नहीं बदली. बदलने की उम्मीद क्यों की जा रही थी. क्योंकि यहां सीटों की संख्या से लेकर धारा 370 और कई सीटों पर बदलाव किए गए थे. लेकिन ये सभी चुनाव जिताने में मददगार साबित नहीं हुए.
आर्टिकल 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीने जाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जब यह कदम उठाया तो कई चुनावी रणनीतिकारों ने माना कि कहीं न कहीं बीजेपी इस कदम से जम्मू-कश्मीर में चुनावी बढ़त भी ले रही है, खासकर जम्मू में जहां उसकी पकड़ पहले से मजबूत थी. लेकिन जम्मू में मिलती सीटों को देखकर लगता है कि बीजेपी को जम्मू से सीटों का बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ.
2022 में किए गए परिसीमन (डीलिमिटेशन) ने जम्मू और कश्मीर विधानसभा की सीटों को 87 से बढ़ाकर 90 कर दिया. अब लद्दाख एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गया था जो 2014 के विधानसभा चुनावों के समय जम्मू-कश्मीर में ही था. यानी लद्दाख की चार सीटें अब जम्मू-कश्मीर विधायिका का हिस्सा नहीं हैं. यानी देखें तो वास्तव में, सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई है. छह सीटें जम्मू और एक सीट मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में जोड़ी गई हैं.
कुल विधानसभा सीटों में जम्मू की सीटों का अनुपात 42.5% से बढ़कर 47.8% हो गया है. वहीं, कश्मीर की सीटें 52.9% से घटकर 52.2% पर आ गयी है. यही वजह है कि इस केंद्र शासित प्रदेश में बीजेपी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. माना गया कि जम्मू की 6 बढ़ी हुई सीटें बीजेपी को और मजबूत करेंगी. लेकिन बहुत ज्यादा मजबूती नहीं मिली. इन 6 सीटों में से बीजेपी 4 पर जीत रही है. लेकिन ओवरऑल इसका पार्टी को बहुत फायदा होता नहीं दिख रहा है.
जम्मू-कश्मीर में अब पहली बार 9 एसटी रिजर्व सीटें थीं- तीन कश्मीर घाटी में और छह जम्मू में. जम्मू वाला 6 एसटी रिजर्व सीटों में से पांच राजौरी और पुंछ के मुस्लिम बहुल जिलों में हैं. बीजेपी को उम्मीद थी कि वह यहां के पहाड़ों में रहने वाले पहाड़ी लोगों को लुभा सकेगी और इन सीटों पर जीत हासिल कर सकेगी. वजह थी कि पार्टी ने इसी साल की शुरुआत में उनकी दशकों पुरानी मांग को पूरा करते हुए उन्हें एसटी सूची में शामिल किया था.
लेकिन ऐसा कुछ होता दिखा नहीं. रुझानों में राजौरी और पुंछ की पांचों एसटी सीटों पर बीजेपी हार का सामना करती दिख रही है.
बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में कुल 25 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें जम्मू से 7 उम्मीदवार थे. रुझानों को देखें तो ये सभी सातों उम्मीदवार चुनाव हारते हुए नजर आ रहे हैं. यानी अन्य राज्यों के चुनाव में जो बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट देते हुए दिखती है उसने जम्मू-कश्मीर में 25 उम्मीदवार उतारे लेकिन पार्टी का ये प्रयोग भी फेल होता दिखा.
यानी चार फैक्टर. पहला 370 हटाना, परिसीमन के जरिए जम्मू में 6 सीट बढ़ना, सीटें रिजर्व और मुस्लिम उम्मीदवार उतारने जैसे कथित मास्टरट्रोक फेल साबित होते हुए दिखे. शायद यही वजह है कि बीजेपी जिस जम्मू से उम्मीद लगाए बैठी थी वहीं पर हल्का झटका मिला.
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