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चुनाव से तीन दिन पहले बीजेपी का घोषणापत्र! इसे पार्टी संकल्प पत्र कह रही है. संकल्प पत्र के जारी होने की तारीख और संकल्प पत्र की सजावट और इसके अंदर लिखे सारे 'संकल्प' एक ही ओर संकेत करते हैं. इसकी जरूरत किसे है? दूसरी बात ये कि 75 संकल्पों वाले घोषणापत्र में ज्यादातर संकल्प कम और गल्प ज्यादा हैं. चुनाव कौन जीतेगा, मालूम नहीं लेकिन अगर आज किसी को घोषणापत्र के आधार पर वोट करना हो (लोकतंत्र में तो यही होना चाहिए) तो जरूर कांग्रेस को वोट करेगा.
बीजेपी का घोषणापत्र तब आया जब पहले चरण के मतदान में महज तीन दिन बचे हैं. ये समझ में नहीं आता पार्टी कब तो इस घोषणापत्र की बातें वोटर तक पहुंचाएगी और कब मतदाता उसके वादों और इरादों को तौल कर फैसला करेगा कि बीजेपी को वोट दें या ना दें. ये सही है कि बीजेपी का प्रचार तंत्र मजबूत है, एक चैनल दिन रात इसी काम में लगा है, बाकी चैनल भी पूरा ‘सहयोग’ कर रहे हैं, फिर भी 75 संकल्पों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए तीन दिन का कम समय लगता है. लगता है इसे खुद बीजेपी भी गंभीरता से नहीं ले रही.
कवर पर मोदी की आभा से कोई बच भी जाए तो अंदर के कई पन्ने भी मोदीमय हैं. याद दिला दें कि 7 अप्रैल को बीजेपी ने चुनाव प्रचार के लिए जो थीम सॉन्ग जारी किया उसके वीडियो में भी मोदी 15 जगह नजर आए. ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ टैगलाइन के लोगो (Logo) में भी मोदी की तस्वीर है. लगता है पार्टी को इस बात का भरोसा है कि देश की जनता सरकार का काम नहीं मोदी का नाम देखेगी और वोट देगी. कोई ताज्जुब नहीं कि पूरे घोषणापत्र में ऊंगलियों पर गिनने लायक भी ठोस घोषणाएं नहीं हैं
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में रोजगार पर अलग से कोई सेक्शन तक नहीं रखा. घोषणापत्र के संकल्पों के बीच रोजगार का मुद्दा ऐसे ही गुम हो गया है जैसे देश में राष्ट्रवाद के हल्ले में बेरोजगारी का बड़ा मसला दबा हुआ है. घोषणापत्र में रोजगार का जिक्र कुछ इस तरह आया है.
ताज्जुब ये है कि पांच साल पहले हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का वादा करने वाली बीजेपी आज तक रोजगार देने वाले सेक्टरों की पहचान तक नहीं कर पाई है. याद दिला दें कि रोगजार पर कांग्रेस ने 2020 तक 34 लाख भर्तियों का वादा किया है.
1990 से ही बीजेपी ‘मंदिर वहीं बनाना है का नारा दे रही है. इस बार घोषणापत्र में कहा गया है कि मंदिर के लिए सभी संभावनाएं तलाशेंगे. कुछ पुख्ता यहां भी नहीं.
इंफ्रा सेक्टर में 100 लाख करोड़ के निवेश की बात है- रोडमैप क्या है मालूम नहीं, क्योंकि अभी तो ये घट ही रहा है.
एक वादा है - निर्यात को दोगुना करने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे. मेक इन इंडिया समेत तमाम बड़ी योजनाओं के बाद भी इस दिशा में कुछ खास हासिल नहीं हुआ.
बीजेपी के घोषणापत्र को लेकर 8 अप्रैल की सुबह तमाम न्यूज फ्लोर्स पर जोश का माहौल था. उम्मीद थी कि कांग्रेस के न्याय के वार पर पलटवार होगा. कुछ तो बड़ा होगा, लेकिन ये ऐसे आया जैसे खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, जैसे नाम बड़े और दर्शन छोटे. इसमें 2022 तक 75 संकल्प पूरा करने का भी वादा है. लेकिन इनमें से कई संकल्पों का विषय और उनकी भाषा से ये संकल्प कम और गल्प (गप्प) ज्यादा नजर आते हैं.
संकल्प- 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करेंगे
गल्प क्यों - इस दिशा में अब तक क्या किया? किसानों की हालत तो और खस्ता हो गई
संकल्प- हर किसान को पीएम सम्मान निधि योजना का लाभ
गल्प क्यों- अमीर किसानों को ये मदद देकर क्या होगा?
संकल्प-हर परिवार को पक्का मकान
गल्प क्यों- पुरानी योजना
संकल्प-अधिक से अधिक गरीब ग्रामीण परिवारों के लिए एलपीजी गैस कनेक्शन
गल्प क्यों - नया क्या है?
संकल्प- सभी घरों में बिजली
गल्प क्यों - आपने तो कहा था घर-घर पहुंचा दी है बिजली!
संकल्प- प्रत्येक नागरिक के लिए बैंक खाता
गल्प क्यों - जन-धन योजना क्या थी?
संकल्प- गांवों को हाई स्पीड ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ना
गल्प क्यों - ये भी पुराना संकल्प
संकल्प- 2022 तक सभी रेल पटरियों का बिजलीकरण के हर संभव प्रयास
गल्प क्यों - हर संभव मतलब कितना
संकल्प- सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर वाई-फाई
गल्प क्यों - ये पहले से ही हो रहा है
संकल्प- क्षय रोगों के मामलों में कमी लाना
गल्प क्यों - पहले की सरकारें जानें कब से ये कर रही हैं
संकल्प- निर्यात दोगुना करने की दिशा में काम
गल्प क्यों - घटते निर्यात के बीच ऐसी गोलमोल बात?
संकल्प- 2022 तक स्वच्छ गंगा का लक्ष्य
गल्प क्यों - नमामि गंगे में अब तक क्या किया?
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में गरीबी पर NYAY का वार किया है. यानी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को 72 हजार रुपए सालाना की मदद. बीजेपी ने किसान सम्मान निधि का फायदा 2 हेक्टेयर जमीन वाले किसानों की बजाय हर किसान को देने का वादा किया है. NYAY के लिए पैसा कहां से आएगा, ये सवाल पूछने वाली बीजेपी क्या ये बताएगी कि अमीर किसान को किसान सम्मान योजना के तहत 6 हजार सालाना की मदद देकर कौन सा न्याय करना चाहती है और इस फिजूलखर्ची के लिए पैसा कहां से आएगा? 34 लाख नौकरियों का वादा करके कांग्रेस बेरोजगारी के मोर्चे पर भी बीजेपी पर भारी पड़ी है.
कांग्रेस ने इस घोषणापत्र को झांसा करार दिया तो सोशल मीडिया पर भी इसका जमकर मजाक उड़ रहा है. किसी यूजर ने कहा - इसे संकल्प पत्र नहीं संबित पात्रा कहना चाहिए था. एक यूजर ने मंदिर पर संकल्प पर मजे लिए तो दूसरे ने कहा - बीजेपी ने 2014 में भी यही कहा था कांग्रेस ने 70 साल में कुछ नहीं किया, 2019 में भी यही कह रही हैं.
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