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पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रैली में हुई हिंसा के बाद चुनाव आयोग के प्रचार घंटों पहले रोकने के फैसले की ट्विटर पर काफी आलोचना हो रही है. मंगलवार को अमित शाह की रैली में बीजेपी और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा हो गई थी, जिसपर कार्रवाई करते हुए चुनाव आयोग ने बुधवार को बंगाल में चुनाव प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने का फैसला किया.
हालांकि चुनाव आयोग ने रोक तुरंत न लगाते हुए गुरुवार रात 10 बजे से लगाई है. इसे लेकर अब सोशल मीडिया पर सवाल खड़े हो गए हैं. तमाम नेताओं समेत ट्विटर यूजर्स ने चुनाव आयोग पर बीजेपी का साथ देने का आरोप लगाया है. यूजर्स ने पूछा है कि प्रचार पर तत्काल रोक न लगाते हुए बंगाल में पीएम मोदी की रैलियां खत्म होने का इंतजार क्यों किया गया?
चुनाव आयोग की रोक पर CPI(M) के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया, 'अगर ये रोक 72 घंटे के लिए है, तो ये कल रात 10 बजे क्यों शुरू हो रही है? क्या इससे पहले पीएम की दो रैलियों को अनुमति देना है?'
अखिलेश यादव ने लिखा कि चुनाव आयोग का ये फैसला लोकतंत्र के आदर्शों के खिलाफ है.
उमर अब्दुल्लाह ने आयोग पर तंज कसते हुए लिखा कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी चुनाव आयोग के साथ मिलकर काम कर सकती है, लेकिन 23 मई को कुछ मायने नहीं रखेगा, क्योंकि ममता बनर्जी बंगाल में जीतेंगी.
पूर्व केंद्रीय मंत्री नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि चुनाव आयोग ने फिर एक बार साबित कर दिया है कि वो मोदी के नौकर के अलावा कुछ नहीं है. ‘चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद पूरे आयोग को इस्तीफा दे देना चाहिए.’
कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने भी चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल खड़ा किया.
चुनाव आयोग की रोक के बाद पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग पर बीजेपी और पीएम मोदी का साथ देने का आरोप लगाया.
कई ट्विटर यूजर्स ने भी चुनाव आयोग को निशाने पर लेते हुए कहा कि वो बीजेपी का साथ दे रही है.
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