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पीएम से लेकर सीएम की बेटी तक को किसान आने वाले आम चुनावों में सीधी चुनौती दे रहे हैं. लेकिन इनका मकसद सांसद या मंत्री बनना नहीं बल्कि अपनी मांगें मनवाना है. एक के बाद एक सरकारों की अनदेखी से आजिज आकर किसानों ने अपनी बात कहने का ये लोकतांत्रिक तरीका चुना है.
अपनी मांगों को लेकर पिछले कुछ सालों से लगातार अलग-अलग तरीके से प्रदर्शन करते आए तमिलनाडु के किसानों ने अब चुनाव लड़ने का फैसला किया है. कुल 111 किसान चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं. लेकिन ये किसान तमिलनाडु से नहीं बल्कि पीएम मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी से चुनाव लड़ने वाले हैं. हालांकि किसानों ने कहा है कि अगर बीजेपी अपने मैनिफेस्टो में हमारी मांगों को शामिल करती है और आश्वासन देती है तो वो चुनाव लड़ने का फैसला टाल सकते हैं.
वाराणसी की तरह ही तेलंगाना में भी किसान नाराज होकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. तेलंगाना के सीएम केसीआर की बेटी के. कविता के खिलाफ कुल 250 नाराज किसानों ने पर्चा दाखिल किया है. ये किसान हल्दी के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. किसानों ने निजामाबाद लोकसभा सीट से पर्चा दाखिल कर दिया है.
भारत ने पिछले कुछ सालों में कई बड़े किसान आंदोलनों को देखा है. हजारों-लाखों की संख्या में किसानों ने सड़कों पर उतरकर अपनी मांगों की गूंज सरकार के कानों तक पहुंचाने की कोशिश की है. लेकिन हर बार आश्वासन देकर उन्हें लौटा दिया जाता है. ये हैं पिछले साल के कुछ बड़े किसान आंदोलन
कांग्रेस किसानों के मुद्दे पर पहले से ही फ्रंट फुट पर है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार बनते ही कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी की घोषणा कर दी थी. जिसके बाद राहुल गांधी किसानों के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते आए हैं. राहुल गांधी अपनी कई रैलियों में पूरे देश के किसानों का कर्जमाफ करने की बात भी कह चुके हैं. अब कर्जमाफी का यह दांव लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कितने काम आता है यह देखना दिलचस्प होगा. किसान कर्जमाफी को लेकर राहुल के वादों पर कितना यकीन करते हैं, ये रिजल्ट के बाद ही पता लग पाएगा.
किसानों को लेकर बीजेपी ने भी योजनाएं शुरू की हैं. भले ही कुछ देरी से और चुनाव नजदीक आते ही ये योजनाएं जमीन पर उतरी हैं, लेकिन इससे कहीं न कहीं कुछ किसानों को राहत मिल सकती है. हालांकि कुछ किसान नेता इसे चुनावी लॉलीपॉप भी बता रहे हैं. अंतरिम बजट में किसानों के लिए सरकार ने अपना लक्ष्य बताया और कहा कि हम चाहते हैं 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाए. बजट 2019 में किसानों के लिए कुछ घोषणाएं हुईं.
अब कांग्रेस और बीजेपी के घोषणा पत्रों में किसानों के कौन से मुद्दे सबसे पहले जगह लेते हैं, इस पर सबकी नजरें हैं. किसानों को भी राजनीतिक पार्टियों से उम्मीदे हैं. कई किसान संगठन अपनी मांगों को घोषणा पत्र में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.
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