Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Elections Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Gujarat election  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019'डैम को दी थी जमीन, पर्यटन के लिए नहीं'-स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास 6 गांव का दर्द

'डैम को दी थी जमीन, पर्यटन के लिए नहीं'-स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास 6 गांव का दर्द

Gujarat Chunav 2022: स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास 6 गांव के लोग अपनी जमीन वापस पाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं

ईश्वर
गुजरात चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>Statue of Unity के पास रहने वाली आदिवासी शकुंतलाबेन पूछती हैं -ये कैसा विकास है?</p><p></p></div>
i

Statue of Unity के पास रहने वाली आदिवासी शकुंतलाबेन पूछती हैं -ये कैसा विकास है?

(फोटो:क्विंट हिंदी)

advertisement

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की कीमत क्या थी? आप गूगल पर इस सवाल का जवाब ढूंढेंगे तो जवाब मिलेगा ₹2,989 करोड़, लेकिन स्टैच्यू के बगल के छह आदिवासी गांवों के लिए इसकी कीमत है- उनकी रोजी रोटी. गुजरात चुनाव 2022 से पहले क्विंट रिपोर्टर ईश्वर ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास आदिवासी गांवों का दौरा किया तो पता चला कि जो स्टैच्यू गुजरात का गर्व माना जाता है उसके पास रहने वाले लोगों का जीवन अंधकारमय हो गया है.

इन 6 गांव केवड़िया, वाघड़िया, लिमड़ी, नवगाम, गोरा, कोठी के लोग 1961-62 में नर्मदा डैम के लिए उनसे ली गई 927 एकड़ जमीन को वापस पाने के लिए सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (SSNNL) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. SSNNL गुजरात सरकार के स्वामित्व वाली पब्लिक लिमिटिड कंपनी है और सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का प्रबंधन देखती है.

31 अक्टूबर, 2013 को गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेन्द्र मोदी ने इसका शिलान्यास किया. सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ 182 मीटर ऊंची है, जो दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है. ये 2,989 करोड़ रूपये की लागत से बनी है.

शकुंतलना बेन तड़वी केवड़िया निवासी हैं. इन्होंने भी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए अपनी जमीन खो दिया.

हमारी 30-35 एकड़ जमीन थी. हम ज्वार, बाजरा उगाते और खाते थे. हमारे पास गाय, भैंस और बाकी मवेशी थे. अब हमें दूसरे रोजगार देखने पड़ रहे हैं और हम मजदूर बन गए हैं. दूसरे की खेतों में काम करते हैं. हमारी एक जमीन पर अब होटल है. दूसरी पर सड़क बन गई. उसके लिए हमें कोई मुआवजा नहीं मिला. हमारी जमीन पर बाड़ लगा दी गई है. कानूनी लड़ाई के दौरान वो हमसे दस्तावेजी सबूत मांगते हैं, लेकिन हमारे पूर्वजों के पास कोई दस्तावेज नहीं थे
शकुंतलना बेन तड़वी केवड़िया निवासी

कोठी गांव के आशीष तड़वी इस आंदोलन के अग्रणी नेता हैं. आशीष पास के स्कूल में ही टीचर थे, लेकिन आरोप है कि प्रदर्शन करने के कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया.

साल 2018 में जब स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बननी शुरू हुई उस समय मैं बहुत खुश था कि मेरे गांव के आस-पास विकास होगा. हमलोगों ने सरदार सरोबर नर्मदा प्रोजेक्ट के लिए भी जमीन दी. मैं इससे खुश था कि जमीन देने से गुजरात के साथ-साथ आसपास के राज्यों का भी विकास होगा. लेकिन अब पर्यटन के लिए हमारी जमीन ली जा रही है जो ठीक नहीं है.
आशीष तड़वी कोठी गांव के निवासी

सरकार प्रदर्शनकारियों से बातचीत कर रही है और विस्थापन के लिए मुआवजा देने का प्रस्ताव दे रही है. गुजरात हाई कोर्ट से 2020 में रद्द एक याचिका के जवाब में SSNNL ने इन 6 गांवों के लोगों को मुआवजे की जानकारी दी थी और उसे सार्वजनिक किया थाय

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

विस्थापन मुआवजे के मुख्य बिंदू ये हैं-

  • नवंबर 1989 को 18 साल के हो चुके पुरुष वारिसों को दो हेक्टेयर या ली गई जमीन के बराबर, दोनों में जो अधिक हो, जमीन दी जाएगी.

  • 250 वर्गफीट जमीन मवेशी पालने के लिए दी जाएगी.

  • नया घर बनाने के लिए 4 लाख रुपये दिए जाएंगे, जिसमें से ढाई लाख SSNNL देगी और डेढ़ लाख गुजरात सरकार देगी.

  • 1,000 परिवारों को गोरा गांव में बन रहे 'आदर्श वसाहत' में बसाया जाएगा.

  • स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के करीब शॉपिंग कॉम्पलेक्स में दुकानें दी जाएंगी, इसमें मुआवजे की शुरुआती लिस्ट में जो शामिल नहीं थे, उन्हें भी लाभ मिलेगा.

हालांकि मुआवजा पैकेज की कई चीजें ग्रामीणों को मंजूर नहीं है.

राजेंद्र तड़वी पेशे से ग्राफिक्स डिजाइनर हैं और एक MNC में काम करते हैं, लेकिन आंदोलनकारियों को मदद करने के लिए उन्होंने नौकरी के साथ-साथ LLB की पढ़ाई की. उन्होंने आशीष के साथ गुजरात हाई कोर्ट में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के खिलाफ एक याचिका दायर की है. उनका आरोप है कि यहां आदिवासियों से जुड़े कानूनों का उल्लंघन हुआ है.

आदिवासी का जो स्पेशल अधिकार है उसका यहां उल्लंघन हो रहा है. गवर्मेंट और सरदार सरोबर निगम आदिवासियों से जुड़े कानूनों को दरकिनार कर यहां पर प्रोजेक्ट ला रहे हैं.
राजेंद्र तड़वी, सामाजिक कार्यकर्ता

60 के दशक में नर्मदा पर बांध के लिए इलाके के आदिवासियों से जमीन ली गई थी. अब तक इन जमीनों पर कुछ नहीं बना लेकिन 2013 में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की योजना आई और अब इसे पर्यटन के लिए विकसित किया जा रहा है. आदिवासियों की मूल मांग यही है कि बांध के लिए जमीन लेना ठीक है, लेकिन पर्यटन के लिए उनकी रोजी रोटी छीनना ठीक नहीं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT