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हिमाचल प्रदेश (Himanchal Pradesh) में 12 नवंबर को चुनाव है, 68 विधानसभा सीटों पर एक ही चरण में चुनाव होगा. बीजेपी एक बार फिर सत्ता में वापसी के लिए जोर लगा रही है तो वहीं कांग्रेस और आप भी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में हैं. इस बार हिमाचल प्रदेश में पेंशन सबसे बड़ा सियासी मुद्दा बना हुआ है, आखिर क्यों पेंशन को लेकर परेशान हैं लोग? इसके अलावा इस राज्य में क्या और चुनावी मुद्दे हैं, जो चुनाव में खासतौर पर लोगों के लिए अहम हैं, उन्हें पार्टियों ने कैसे साधने की कोशिश की है.
पेंशन क्यों बना सियासी मुद्दा? हिमाचल प्रदेश में NPS में आने वाले सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना ओपीएस (OPS) की बहाली की मांग कर रहे हैं. हिमाचल में ये इस बार बड़ा मुद्दा बना हुआ है, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही सत्ता में आने के बाद ओपीएस लागू करने का दावा कर रहे हैं. राज्य के लोकल लोगों को मानना है कि महंगाई तेज रफ्तार से बढ़ रही है और एनपीएस के तहत मिलने वाला पेंशन काफी कम होता है, इसलिए लोग अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं.
कांग्रेस के घोषणापत्र में भी पेंशन योजना- कांग्रेस के घोषणापत्र में पुरानी पेंशन को बहाल करने का वादा किया गया है. वहीं साथ में 5 लाख नौकरी देने का वादा है.
नई पेंशन स्कीम कब लागू हुई?
2004 से पहले सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक फिक्स पेंशन मिलती थी, जो उनके रिटायमेंट के वक्त के सैलरी पर बेस्ड होती थी, इस स्कीम के तहत रिटायर कर्मचारी की मौत के बाद उसके घरवालों को पेंशन मिलती थी, अटल बिहारी सरकार ने 2005 के बाद निय़ुक्त कर्मचारियों के लिए पुरानी स्कीम को बंद कर दिया. उसकी जगह नई पेंशन योजना लागू की गई.
बेरोजगारी- इस पहाड़ी राज्य में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. लाखों युवा रोजगार की तलाश में हैं, रोजगार कार्यलायों में 10 लाख से ज्यादा युवाओं ने रजिस्ट्रेशन करा रखा है. युवाओं को काम की तलाश में राज्य से बाहर जाना पड़ रहा है, ऐसे में इस चुनाव में रोजगार का मुद्दा काफी अहम है, कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में 5 लाख नौकरी देने का वादा भी किया है.
सड़क की समस्या? हिमाचल प्रदेश के कई इलाके ऐसे हैं, जहां की सड़कें भगवान भरोसे हैं, शिमला नेशनल हाईवे की हालत तो और भी बद्तर है, बारिश हो या बर्फबारी दोनों में ही एक इलाके से दूसरे इलाके पहुंचना मुश्किल हो जाता है. कई गांवों से तो संपर्क करना भी मुश्किल हो जाता है.
महंगाई की मार- हिमाचल के लोगों के लिए महंगाई भी अहम मुद्दा है. दूध, सब्जियां, सिलेंडर महंगे होने से लोगों के लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है.
किसान भी परेशान- हिमाचल की पहचान वहां के सेबों से भी होती है. करीब 10 लाख किसान सेबों पर निर्भर हैं. लेकिन किसानों को सेब के वो दाम नहीं मिलते जिसकी उनको उम्मीद है. जुलाई से लेकर अक्टूबर तक का सीजन सेबों का होता है, लेकिन पैकेजिंग सामग्री पर GST दर बढ़ने से लोगों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है.
कोविड के बाद टूरिज्म पर पड़ा असर- हिमाचल टूरिज्म का हब माना जाता है, लेकिन कोरोना के बाद सबसे बड़ा असर टूरिज्म पर पड़ा. कई होटल और दुकानें बंद करनी पड़ी, हालांकि कोरोना के बाद हालात तो सुधरे, लेकिन अब भी पहले वाली बात नहीं रही. अलग-अलग पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में टूरिज्म को लेकर कई वादे किए हैं.
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