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हजारीबाग के सांसद और केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि उन्होंने मॉब लिचिंग करने वालों की आर्थिक मदद की. उधर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि रैलियों में वो 'बाबर की औलाद' जैसे बयान नहीं देंगे तो क्या करेंगे? इससे पहले भोपाल की बीजेपी प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर कह चुकी हैं कि वो अयोध्या में विवादित ढांचा तोड़ने वालों में शामिल थीं और इसपर उन्हें गर्व है. दरअसल झारखंड से लेकर यूपी और एमपी तक बीजेपी नेताओं के बयानों में एकरूपता दिखती है. शुरुआत करते हैं झारखंड से.
सियासत में उग्र हिंदुत्व के एक्सपेरिमेंट का असर देखना हो तो चले आइए झारखंड के इस अलसाए से इलाके में. यहां हिंदू-मुस्लिम दंगे न्यू नहीं ओल्ड नॉर्मल हैं. जरा सी बात हुई नहीं कि पथराव. पलक झपकते ही तलवारें निकल जाती हैं. यहां दंगों का लंबा इतिहास रहा है. रामनवमी की रौनक और मोहर्रम की जुलूसों पर राजनीति का रंग चढ़ चुका है. रामनवमी में तो सड़कों पर 'राम भक्तों' से ज्यादा रैपिड एक्शन फोर्स के जवान नजर आते हैं. दशमी की रात जो जुलूस निकलती है वो एकादशी की शाम जाकर खत्म होती है. जुलूस निकालने वाले इस बात पर अड़े रहते हैं कि जुलूस जामा मस्जिद रोड से निकलेगी. इस सड़क से जुलूस निकलते वक्त कोई हंगामा न खड़ा कर दे, इसलिए प्रशासन सड़क के मुहाने पर मचान लगाकर एक तोप लगाता है. सही सुना आपने....तोप मतलब कैनन.
इसी हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र के रामगढ़ में 29 जून,2017 को गोमांस ले जाने के शक में भीड़ ने अलीमुद्दीन अंसारी नाम के शख्स को मार डाला. इस मामले में रामगढ़ की फास्ट ट्रैक अदालत ने पिछले साल 21 मार्च को 12 आरोपियों में से 11 को उम्रकैद की सजा सुनायी थी. इनमें से 9 आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया था. लेकिन हाईकोर्ट में अभी मामला चल रहा है. यानी ये निर्दोष साबित नहीं हुए हैं.
केंद्रीय मंत्री और हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद जयंत सिन्हा ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में माना है कि उन्होंने इस वारदात के आरोपियों की मदद की थी. वो कोर्ट में केस लड़ सकें, इसके लिए उन्हें पैसे दिए थे.
अब बीबीसी को दिए इंटरव्यू में जयंत सिन्हा ने कहा है कि मामले के आरोपी निर्दोष थे फिर भी उन्हें एक साल तक जेल में रहना पड़ा था. सिन्हा ने कहा, "मैं मरियम खातून (पीड़ित की विधवा) और अलीमुद्दीन अंसारी के लिए बहुत हमदर्दी रखता हूं. लेकिन जो लोग मेरे घर आए, वे निर्दोष थे और बहुत गरीब थे. उनके परिवार के लोगों ने कहा कि अगर आपसे आर्थिक सहयोग हो सकता है तो करें. बहुत सारे लोगों ने उनको आर्थिक सहयोग दिया तो हमने भी दिया. पार्टी के हमारे एक सदस्य थे, जिनको सहयोग की जरूरत थी और वो गरीब थे, तो पार्टी के कई लोगों ने उनकी मदद की और वो आर्थिक मदद सीधे उनके वकील के फीस के तौर पर गई."
उस वोटर की जो बात थी उसका मतलब ये था कि चूंकि मॉब लिंचिंग करने वालों की बीजेपी ने मदद नहीं कि इसलिए बीजेपी हारी थी. उसका इशारा पिछले साल रामगढ़ नगर परिषद चुनाव से था, जिसमें आजसू के युगेश बेदिया अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर आजसू के ही मनोज कुमार महतो जीते थे. उस वोटर का कहना ये था कि अब चूंकि जयंत सिन्हा ने मदद की है तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी ही जीतेगी. जाहिर है ये एक बयान चुनाव के नतीजे बदलने की हैसियत नहीं रखता, लेकिन कम से कम वहां के पोलराइज्ड वोटर के मन की बात की ओर इशारा जरूर करता है. इससे इस बात का भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीच चुनाव आईआईटी और हार्वर्ड से पढ़कर आए जयंत सिन्हा ने ये बयान क्यों दिया और उनके इलाके के हिंदू वोटर पर किस तरह का असर हो रहा है. दरअसल जयंत सिन्हा अकेले नहीं हैं जो ये काम कर रहे हैं.
चुनाव आयोग ने यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी को उनके ‘बाबर की औलाद’ वाले बयान के लिए 2 मई को नोटिस भेजा था. सीएम योगी ने यह बयान उत्तर प्रदेश के सम्भल में 19 अप्रैल को एक रैली के दौरान दिया था. अब इसी बयान पर उन्होंने एक नया बयान दिया है.
योगी ने कहा है - ‘दो लोगों के बीच हुई बातचीत पर कार्रवाई करना चुनाव आयोग का काम नहीं है. अगर मैं अपनी चुनावी रैलियों में ऐसी चीजें नहीं बोलूंगा तो मैं और क्या करूंगा?’
इसी बीजेपी ने मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से टिकट दिया. जैसे यही काफी नहीं था. प्रज्ञा लगातार अपने भाषणों में हिंदुत्व कार्ड खेल रही हैं. एक भाषण में प्रज्ञा ने तो यहां तक कह दिया कि अयोध्या में विवादित ढांचा तोड़ने वालों में वो भी थीं, और इस पर उन्हें गर्व है. चुनाव आयोग ने उनके प्रचार करने पर तीन दिन की रोक लगाई है लेकिन वो ये बात जिन वोटर्स तक पहुंचाना चाहती थीं, वहां तक बात पहुंच गई है. रोक चंद घंटों के प्रचार पर लगी है,चुनाव लड़ने पर नहीं. जब चुनाव लड़ेंगी तो ये बयान उनके काम आएगा.
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Published: 03 May 2019,10:18 PM IST