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राष्ट्रवाद से भ्रष्‍टाचार तक, इस लोकसभा चुनाव के 10 बड़े पहलू

हम आपको वो मुद्दे याद दिला रहे हैं जिन पर चुनाव 2019 पर खासा जोर दिया गया.

पवनप्रीत कौर
चुनाव
Updated:
Lok Sabha Chunav Result 10 Factors: आज आएंगे 542 लोकसभा सीटों के नतीजे 
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Lok Sabha Chunav Result 10 Factors: आज आएंगे 542 लोकसभा सीटों के नतीजे 
(फोटोः Kamran Akhter/Quint Hindi)

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लोकसभा चुनाव 2019 के रुझान और नतीजे लगातार आ रहे हैं. हर बार की तरह, इस बार के चुनाव में भी नेताओं ने कई अहम मुद्दे उठाए. लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के वादों को आगे कितना पूरा किया जाता है. इसलिए हम आपको वो मुद्दे याद दिला रहे हैं, जिन पर चुनाव 2019 में खासा जोर दिया गया.

राष्ट्रवाद

90 के दशक से ही चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद बड़े मुद्दों में शुमार रहा है. इस बार भी चुनाव से कुछ समय पहले हुए पुलवामा हमले पर भी खूब चर्चा की गई. पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों की शहादत और उसके बाद भारतीय वायुसेना की तरफ से पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक पर बात की गई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी ज्यादातर रैलियों में इस मुद्दे पर बात की और कहा कि आतंकवाद के खिलाफ सरकार की 'जीरो-टॉलरेंस' पॉलिसी है. वहीं विपक्षी पार्टियों ने भी पीएम पर कटाक्ष करने का कोई मौका नहीं छोड़ा और हर बार बालाकोट में आतंकियों की मौत का प्रमाण मांगा.

इस बारे में चुनाव आयोग ने एक निर्देश जारी करते हुए नेताओं से कहा कि वे अपने अभियानों में सशस्त्र बलों के बारे में टिप्‍पणी करने में सावधानी बरतें.

भ्रष्टाचार

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर जमकर निशाना साधा. वहीं पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिए बिना उन पर भ्रष्‍टाचार के गंभीर आरोप लगाए. इसके बाद राहुल और उनकी बहन प्रियंका गांधी ने पलटवार भी किया.

सोशल मीडिया से 'हल्‍ला बोल'

2014 के चुनाव में ही सोशल मीडिया के जरिए लड़ाई की शुरुआत हो गई थी. इस बार भी दोनों पार्टियों की तरफ से सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया गया. बात चाहे जवाबी हमले की हो या एक-दूसरे पर कटाक्ष की, सभी पार्टियों ने यहां पर जमकर अपनी भड़ास निकाली.

मजबूर बनाम मजबूत

पीएम मोदी ने इस चुनाव इस मुद्दे पर खूब बात की. दूसरी पार्टियों के गठबंधन पर जोर देते हुए मोदी ने कहा ये चुनाव मजबूत सरकार चुनने के लिए है, न कि मजबूर सरकार. विपक्षी दलों के गठबंधन को उन्होंने 'महामिलावट' और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 'स्पीड ब्रेकर' कहा. उनके इन सभी बयानों ने खूब चर्चा बटोरी.

सिख विरोधी दंगे

1984 में हुए सिख विरोधी दंगों पर कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने एक टिप्‍पणी कर दी, 'हुआ तो हुआ', जिसके बाद सियासी बवाल मच गया. जहां पीएम मोदी ने कांग्रेस की इस पर जमकर निंदा की, तो उनकी पार्टी ने भी पित्रोदा पर निशाना साधा.

हालांकि कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेताओं ने सैम पित्रोदा की इस टिप्पणी से किनारा कर लिया. उन्होंने ये कहते हुए माफी मांगी कि उनकी हिंदी खराब है.

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ध्रुवीकरण

पिछली बार की तरह इस बार के चुनावों में भी ध्रुवीकरण काफी देखने को मिला. ऐसा समझा जाता है कि 2014 में कांग्रेस को ध्रुवीकरण की वजह से बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. आम तौर पर इसका फायदा हिंदूवादी विचारधारा वाली बीजेपी को मिलता है.

वायनाड सीट पर सब की नजरें

अमेठी के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बार वायनाड सीट से चुनाव लड़ा, जो चर्चा का विषय बन गया. जहां कांग्रेस ने कहा कि इस कदम से दक्षिण भारत में पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा, वहीं केरल के सत्तारूढ़ वामपंथी नेताओं ने फैसले पर नाराजगी जताई.

नौकरी

बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के तरकश में 'रोजगार' का तीर सबसे अहम रहा. मोदी सरकार को 2014 में नौकरियों का वादा करने पर बड़ी सफलता मिली थी, लेकिन वह इस वादे को पूरा करने में सफल नहीं दिखी. सरकार ने ईपीएफओ नंबर बढ़ने और मुद्रा लोन की संख्या बढ़ने का हवाला देकर रोजगार का वादा पूरा करने के सबूत देने की कोशिश की, हकीकत इससे अलग रही.

मोदी फैक्टर

पिछली बार के चुनावों में मोदी की लहर देखी गई. इस बार बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद बीजेपी का उत्साह और बढ़ गया. वहीं कांग्रेस ये मान रही है कि मोदी का करिश्मा अब 2014 जैसा नहीं है, क्योंकि चुनावी वादे पूरे ही नहीं हुए. कांग्रेस की कैपेनिंग मोदी सरकार के पूरे न किए गए वादों पर रही.

युवा वोटर

इस बार के चुनावों में युवा वोटर्स की भूमिका पर भी जोर दिया गया. ऐसा माना गया कि सोशल मीडिया के जरिए मुद्दों पर बारीक नजर रख रहे युवा काफी समझदारी से अपना नेता चुनेंगे.

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Published: 23 May 2019,11:44 AM IST

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