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मायावती और अखिलेश यादव का मुकाबला बीजेपी से है तो दोनों कांग्रेस पर क्यों भड़के हैं? हम बताते हैं इसकी वजह से उत्तर प्रदेश इन दिनों ऐसी प्रयोगशाला बन गया है जहां 5 तरह के राजनीतिक फॉर्मूले एक साथ चल रहे हैं, और अगर आपको चुनाव समझना है तो इन पेंच को समझ डालिए.
बीजेपी के पास अखिलेश और मायावती का गठबंधन की क्या काट है? अब सारे राजनीतिक विश्लेषक अपने पूरे अनुभव की जमापूंजी से इसी माथापच्ची में लगे हैं.
एक और एक मिलकर दो होते हैं लेकिन बीजेपी के नेताओं के मुताबिकउनकी पार्टी में गोपनीय फॉर्मूले पर काम चल रहा है.
गठबंधन ने प्रदेशभर में बीजेपी को घेरने की तैयारी की है. लेकिन गठबंधन की असली चुनौती आपस में तालमेल को लेकर है. सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर होगा और बीजेपी इसी कोशिश में है कि किसी भी तरह इस ट्रांसफर को रोका जाए.
प्रियंका गांधी के तेवरों ने एसपी-बीएसपी गठबंधन को टेंशन दे डाला है. कांग्रेस अपना वजूद बचाने के लिए पार्टी ने प्रियंका गांधी के रूप में अपना ट्रंप कार्ड खेल दिया. प्रियंका गांधी में इंदिरा का अक्स देखते हैं और उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस प्रियंका की अगुवाई में वही करिश्मा दोहरा सकती है, जो इंदिरा के वक्त में हुआ था.
चुनावी प्रबंधन के नजरिए से देखें तो कांग्रेस अभी रेस में काफी पीछे है. शुरुआत में आक्रामक रुख दिखाने वाली कांग्रेस के तेवर भी कुछ नरम हुए हैं, उन्होंने यूपी में गठबंधन के लिए सात सीटें छोड़ने का ऐलान किया है. लेकिन मायावती ने कांग्रेस से कहा है कि ऐसा अहसान करने की कोई जरूरत नहीं है.
भीम आर्मी के उभार ने बीएसपी की नींद उड़ा दी हैं. अब ये तय है कि में सभी सियासी दलों की एक ही चाह है कि उन्हें दलितों के दिल में जगह मिले. इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि यूपी की 17 लोकसभा रिजर्व सीटों के अलावा कई अन्य सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में हैं.
मायावती की परेशानी ये है कि कांग्रेस भी भीम आर्मी के सहारे दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश में है. प्रियंका गांधी ने मेरठ जाकर चंद्रशेखर से मुलाकात की थी. हालांकि भीम आर्मी ने साफ कर दिया है कि वो इन चुनावों में कांग्रेस का समर्थन नहीं करेगी.
रोचक बात ये है कि भीम आर्मी जिस दल (बीएसपी) का समर्थन करना चाहती है, वो समर्थन लेने के लिए मना कर रही है. कांग्रेस, समर्थन चाहती है, लेकिन भीम आर्मी उसे समर्थन देने को तैयार नहीं.
मतलब भारी कंफ्यूजन है कि दलित किसको वोट करेंगे?
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी नई पार्टी बनाकर इस चुनाव में ताल ठोंक रहे हैं. शिवपाल इस चुनाव में फिरोजाबाद लोकसभा सीट से अपने ही भतीजे और समाजवादी पार्टी से मौजूदा सांसद अक्षय यादव को चुनौती देने जा रहे हैं.
शिवपाल पहले एसपी-बीएसपी गठबंधन में शामिल होने का इंतजार करते रहे, लेकिन जब गठबंधन ने उन्हें भाव नहीं दिया तो उन्होंने कांग्रेस से उम्मीद लगा ली. लेकिन अब खबर है कि कांग्रेस भी उन्हें भाव नहीं दे रही है.
लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 80 में से 71 और सहयोगी अपना दल को 2 यानी कुल 73 सीटें मिली थीं. हालांकि, उपचुनाव में बीजेपी ने गोरखपुर, फूलपुर और कैराना जैसी महत्वपूर्ण सीटें गंवा दी थीं.
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती ओबीसी वोट को संभालकर रखने की है. साल 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में इसी वोट की बदौलत पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी.
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Published: 18 Mar 2019,06:10 PM IST