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2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) का घमासान– जिसे दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रैक्टिस कहा जा रहा है– अब मंजिल पर पहुंचने को है, और इसके साथ ही नतीजों को लेकर स्टेकहोल्डर्स की रुचि भी चरम पर है. लेकिन चुनाव आयोग (EC) द्वारा 4 जून को नतीजे घोषित किए जाने से पहले, एग्जिट पोल (Exit Polls 2024) बड़े मतदान रुझानों पर रौशनी डालेंगे. दूसरे सवालों के अलावा यह सवाल सबकी जुबान पर हैं– क्या BJP की अगुवाई वाली NDA सरकार तीसरी बार जीतेगी, क्या हवा INDIA गठबंधन के पक्ष में है, देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (CSDS) के सह-निदेशक संजय कुमार बताते हैं, “मतदान के दिन पोलिंग बूथ से बाहर निकलने वाले मतदाताओं का सर्वे करके एग्जिट पोल किया जाता है. इसीलिए इसे एग्जिट पोल कहा जाता है.”
उनका यह भी कहना है कि एग्जिट पोल (exit poll) ’ओपिनियन पोल’ (opinion poll) या यहां तक कि पोस्ट-पोल सर्वे (post-poll survey) से अलग होता है. एग्जिट पोल कैसे किया जाता है, इन्हें करने की क्या जरूरत है, इनकी सटीकता कैसे तय होती है– हमारे गहरे विश्लेषण में चुनाव विश्लेषक आपके लिए इन सवालों के जवाब दे रहे हैं: चुनाव 2024: एक अच्छे एग्जिट पोल का राज क्या है? विशेषज्ञों के जवाब
एग्जिट पोल करने की क्या जरूरत है?
एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में क्या अंतर है?
भारत में एग्जिट पोल का इतिहास
सर्वे के लिए निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव कैसे किया जाता है?
डेटा कैसे जुटाया जाता है?
कौन सा एग्जिट पोल ज्यादा सटीक और भरोसेमंद हैं?
सभी के मन में यह सवाल आता होगा कि जब चुनाव आयोग मतदान खत्म होने के 3-4 दिन बाद नतीजे घोषित करता ही है तो एग्जिट पोल से भला कौन सा मकसद पूरा होता है?
चुनाव विश्लेषक और डेटा एक्शन लैब फॉर इमर्जिंग सोसायटीज (DALES) के सह-संस्थापक आशीष रंजन का कहना है,
आशीष रंजन बताते हैं कि चुनाव आयोग ऐसे डेटा को साझा नहीं करता है जो बताता हो कि समाज के किस वर्ग ने किस पार्टी का समर्थन किया. वह केवल ये बताता है कि हर राजनीतिक दल ने कितनी सीटें जीतीं और मतदान में पुरुष:महिला का अनुपात क्या रहा.वैसे संजय कुमार का कहना कि एग्जिट पोल का मकसद सिर्फ चुनाव लड़ने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों की “जिज्ञासा को शांत करना” है.
चुनावों से पहले होने सर्वे को प्री-पोल सर्वे कहा जा सकता है, जो चुनाव से पहले किसी भी समय किए जाते हैं. पोस्ट-पोल सर्वे में चुनाव खत्म होने के बाद मतदाताओं से उनके घरों या उनके इलाके में बात की जाती है.
संजय कुमार बताते हैं, “एग्जिट पोल हमेशा मतदान के दिन किए जाते हैं, जिस समय मतदाता मतदान केंद्र से बाहर निकल रहा होता है. लेकिन ओपिनियन पोल चुनाव से पहले किसी भी समय किया जा सकता है– चाहे वह चुनाव से दो महीने या 10 दिन पहले हो– और इसमें राजनीतिक रुझान का पता लगाया जाता है.”
उनका कहना है कि ओपिनियन पोल एक राजनीतिक सर्वे है जिसमें बहुत सारे सवाल होते हैं जो लोगों की राजनीतिक/आर्थिक/सामाजिक राय जानने के लिए होते हैं. यह ज्यादा उपयोगी है क्योंकि डेटा मतदाताओं की सोच की एक तस्वीर पेश करता है और उम्मीदवारों को अपने चुनाव अभियान की रणनीति बनाने में मदद कर सकता है.
मतदान खत्म होने के बाद किए गए पोस्ट पोल में भी कई सवाल होते हैं जो वोट डालते समय एक मतदाता के दिमाग में आने वाले मुद्दों को समझने में मदद करते हैं. संजय कुमार इसकी वजह समझाते हैं, “चूंकि एक एग्जिट पोल मतदान केंद्र के बाहर किया जाता है, इसलिए पूछे जाने वाले सवालों की संख्या की एक स्वाभाविक सीमा होती है. लेकिन यह सवाल तो पूछा ही जाता है कि उन्होंने किस उम्मीदवार या पार्टी को वोट दिया, जिससे हमें वोट और सीट का अंदाजा मिलता है.” इसके उलट, ओपिनियन पोल और पोस्ट-पोल सर्वे ज्यादा बड़े होते हैं और मतदाताओं के घर पर किए जाते हैं.
पश्चिमी देशों में एग्जिट पोल लंबे समय से किए जा रहे हैं, लेकिन भारत में पहली बार 1957 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन (IIPO) की मदद से किया गया था. इस संस्थान की स्थापना ऑक्सफोर्ड से पढ़े अर्थशास्त्री एरिक दा कोस्टा ने की थी, जो “फादर ऑफ इंडियन पोलिंग” के नाम से मशहूर हैं.
आशीष रंजन बताते हैं कि बड़े मकसद के साथ लोगों के मुद्दों को समझने के लिए भारत में पहला वैज्ञानिक सर्वे 1967 में CSDS के संस्थापक प्रोफेसर रजनी कोठारी द्वारा किया गया था.
प्रणय रॉय और अशोक लाहिड़ी ने 1980 में इंडिया टुडे पत्रिका के लिए एक जनमत सर्वे किया था, जो भारत में जनमत सर्वे की शुरुआत था.
संजय कुमार बताते हैं, “1996 के लोकसभा चुनाव के बाद से यह नियमित रूप से होने लगा है और तब से विधानसभा और संसदीय चुनावों के बाद कई एग्जिट पोल प्रकाशित/ब्रॉडकास्ट किए गए हैं.”
राजनीतिक विश्लेषक राजन पांडे, जो सर्वे एजेंसी पीपुल्स पल्स से भी जुड़े हैं, का कहना है कि, “सर्वे के लिए बहुत बड़ा सर्वे होना जरूरी नहीं है. सटीक सर्वे की गारंटी सैंपल का आकार नहीं बल्कि यह है कि सैंपल कितना ज्यादा प्रतिनिधित्व करता है.”
राजन पांडे एक उदाहरण के जरिये इस प्रक्रिया को स्पष्ट करते हैं: आइए 1 लाख मतदाताओं वाला एक विधानसभा क्षेत्र लेते हैं. इस क्षेत्र में दो ब्लॉक हैं– A और B, और दो शहर हैं– C और D. अब, सैंपल के आकार पर ज्यादा ध्यान देने वाली एक एजेंसी ने 10 फीसद मतदाताओं, यानी 10,000 मतदाताओं पर एक सर्वे किया.
लेकिन एजेंसी ने सिर्फ C शहर में सभी मतदाताओं का सर्वे किया. एक दूसरी एजेंसी, जिसने ज्यादा प्रतिनिधित्व वाले सैंपल चुनने पर जोर दिया, ने पहले ब्लॉक A और B के साथ-साथ शहर C और D की आबादी को चुना. अगर A विधानसभा क्षेत्र की आबादी का 25 फीसद है, तो सैंपल में A से 25 फीसद मतदाता होने चाहिए. इसी तरह, अगर विधानसभा क्षेत्र की 50 फीसद आबादी मुस्लिम है, तो सैंपल का 50 फीसद मुस्लिम मतदाता होना चाहिए.
राजन पांडे समझाते हैं, “भले ही दूसरी एजेंसी ने सिर्फ 1,000 मतदाताओं का सर्वे किया हो, यह पहले वाले के मुकाबले कहीं ज्यादा सटीक होगा क्योंकि सैंपल ज्यादा प्रतिनिधित्व करने वाला है; यह असल निर्वाचन क्षेत्र की नुमाइंदगी करता है.” भारत में पूरे देश भर 543 निर्वाचन क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव होते हैं.
राजन पांडे बताते हैं, “लेकिन आमतौर पर सभी 543 सीटों पर सर्वे नहीं किए जाते हैं. हम क्षेत्रों के आधार पर भी सीटों का सैंपल लेते हैं. उदाहरण के लिए, अगर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में 25 सीटें हैं, तो हम उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली पांच सीटों का सैंपल लेंगे. इसी तरह, अगर बुंदेलखंड क्षेत्र में छह सीटें हैं, तो हम एक का सैंपल लेंगे”
डेटा कैसे जुटाया जाता है? प्री-पोल (चुनाव-पूर्व) और पोस्ट-पोल (चुनाव-पश्चात) सर्वे कई तरीकों से किए जा सकते हैं– फोन पर, ऐप के जरिये, क्वालिटेटिव, क्वांटिटेटिव वगैरह.
राजन पांडे बताते हैं कि रियल टाइम में डेटा रिकॉर्ड करने के लिए ऐप का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. संजय कुमार बताते हैं कि पहले एग्जिट पोल के सर्वे करने के लिए सीक्रेट बैलेट का इस्तेमाल होता था, लेकिन धीरे-धीरे इसका चलन खत्म होता जा रहा है. इस सवाल पर कि क्या सीट शेयर का रुझान वोट शेयर से ज्यादा महत्वपूर्ण है या इसके विपरीत होता, वह समझाते हैं:
किसी पोल की सटीकता कई कारकों से तय होती है– सैंपलिंग, प्रश्नावली डिजाइन, फील्डवर्क, कोई व्यक्ति किस तरह डेटा जमा करता है और उसकी व्याख्या करता है, आदि– किसी भी पोलिंग एजेंसी के लिए डेटा और पोल के सभी ब्योरे जारी करना जरूरी है.
अगर एग्जिट पोल आपको केवल सीटों के बारे में डेटा देता है, तो आप कैसे जान सकते हैं कि कौन सा ज्यादा भरोसेमंद है?"
आशीष रंजन का दावा है कि पिछले दस वर्षों में एग्जिट पोल का ध्यान केवल किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा जीती जा रही सीटों की संख्या पर केंद्रित हो गया है, उसके बाद उनके वोट शेयर पर ध्यान दिया जाता है. उन्होंने कहा, “इससे एग्जिट पोल का असल मकसद कमजोर हो जाता है.”
आशीष रंजन कहते हैं कि एक और बड़ी खामी यह है कि एजेंसियां यह नहीं बताती हैं कि उनका सैंपल कितना प्रतिनिधि वाला है, जो पोल की सटीकता का एक प्रमुख संकेतक होता है.
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Published: 01 Jun 2024,09:27 AM IST