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MP: पूर्व संघ प्रचारकों ने BJP के खिलाफ बनाई पार्टी, 2 फैक्टर पहुंचा रहे नुकसान

MP Election: सिंधिया फैक्टर और 18 सालों की उपेक्षा से बीजेपी के कई नेताओं ने कांग्रेस का दामन थाम लिया?

विष्णुकांत तिवारी
मध्य प्रदेश चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>MP: पूर्व संघ प्रचारकों ने BJP के खिलाफ बनाई पार्टी</p></div>
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MP: पूर्व संघ प्रचारकों ने BJP के खिलाफ बनाई पार्टी

(फोटो- अल्टर्ड बाई क्विंट हिंदी)

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मध्य प्रदेश में विधानसभा का चुनाव (Madhya Pradesh Elections) होने वाला है. नेताओं का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में आना-जाना भी शुरू हो चुका है. इस बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के पूर्व प्रचारकों अपनी एक नई पार्टी बनाई है. हैरान करने वाली बात ये है कि इस पार्टी ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ऐसे में समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर प्रदेश में ऐसा क्यों हुआ? इसके पीछे क्या वजह है और परिणाम क्या हो सकते हैं?

'जनहित पार्टी' के नाम से पार्टी लॉन्च की

पूर्व प्रचारक अभय जैन ने लगभग 2 दशकों तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में सेवा दी है. उनके साथ महेश काले, विशाल बिंदल, राजा राम और मनीष काले ने मिलकर 'जनहित पार्टी' के नाम से अपनी पार्टी लॉन्च की है. पार्टी ने सबसे पहला आरोप यह लगाया कि जो लोग संघ की सोच से वास्ता रखते हैं, उनके लिए बीजेपी में जगह नहीं बची है.

ये सभी मध्य प्रदेश और अन्य प्रांतों में दशकों तक संघ के प्रचारक रहे हैं, लेकिन अब इनका कहना है कि इन्हें उचित स्थान नहीं मिल रहा है.

नई पार्टी BJP का नया प्लान?

राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह भी संघ की एक राजनीतिक चाल है, जिसके तहत वो उन वोटर्स और कार्यकर्ताओं को बांधे रखना चाह रहे हैं जो बीजेपी के 18 सालों के कार्यकाल से नाखुश हैं और पार्टी से बगावत करके कांग्रेस को सपोर्ट कर सकते हैं.

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जनहित पार्टी के संस्थापकों का कहना है कि, 'उनका बीजेपी से मोहभंग हो गया है. इसके पीछे उनका तर्क यह है कि पार्टी और संघ दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों से भटक गई है जो अभिन्न मानवतावाद की विचारधारा के समर्थक थे. हालांकि बीजेपी प्रवक्ता यशपाल सिसोदिया ने मीडिया से कहा कि वो इस पर कमेंट नहीं कर सकते कि अभय जैन और अन्य लोगों का बीजेपी के लिए ये रवैया क्यों और कैसे बना.

नई पार्टी का कहां-कितना प्रभाव ?

ग्वालियर चंबल, मालवा और विंध्य के क्षेत्रों से लगभग 200 संघ के पूर्व कार्यकर्ताओं ने भोपाल में बैठक के बाद पार्टी की नींव पर हामी भरी. राज्य के वरिष्ठ पत्रकारों की मानें तो 2023 के विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हो रहा है कि संघ से बिखरे लोगों ने पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने की घोषणा की है.

(फोटो- क्विंट हिंदी)

क्विंट हिंदी से बातचीत के दौरान वरिष्ठ पत्रकार सुधीर दंडोतिया ने कहा कि ऐसी पार्टियों का चुनाव में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

"ये तो साफ है कि जनहित पार्टी बनाने वाले लोग बीजेपी संघ में उपेक्षित थे और इसी से तंग आकर उन्होंने अपनी पार्टी बनाई और चुनाव लड़ने का ऐलान किया. लेकिन इसमें समस्या ये है कि इस पार्टी का कोई जनादेश नहीं है. मैदानी पकड़ नहीं है. उपेक्षित कार्यकर्ताओं की पार्टी बड़े ढांचों से लोहा नहीं ले सकती है"
सुधीर दंडोतिया

सुधीर दंडोतिया ने आगे कहा कि ऐसी पार्टियों का गठन मुख्य तौर पर चुनावी माहौल में संदेह पैदा करने के लिए होता है.

"कांग्रेस पसंद नहीं, लेकिन बीजेपी से कुछ लोग रूठे हैं"

राज्य के एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अगर हम इस पार्टी के निचोड़ की बात करें तो यह पार्टी बहुत ज्यादा अगर कुछ कर पाएगी तो कुछ बीजेपी के रूठों को कांग्रेस में जाने से रोक पाएगी.

"अभी तो पार्टी का रजिस्ट्रेशन भी नहीं हुआ है. कुल मिलाकर महौल बनाया जा रहा है, जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. मसलन एक यह भी कि तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी को मैदानी परिवर्तन कम दिख रहा है. बजाय इसके कि लोग कांग्रेस को पसंद कर रहे हैं, वे बीजेपी से रूठे ज्यादा हैं. इस परिस्थिति को बीजेपी लाडली बहना और अन्य योजनाओं से कुछ हद तो बेहतर कर पाई है. लेकिन पूरी तरह से उसने रूठों को मना लिया है, यह कहना अतिशयोक्ति होगी. इन्हीं रूठों का ध्यान भटकाने के लिए जनहित पार्टी और अन्य ऐसे दल काम कर रहे हैं".

सिंधिया फैक्टर और 18 सालों की उपेक्षा से बीजेपी नेता छोड़ रहे पार्टी

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेताओं का खास तौर पर स्थानीय नेताओं का पार्टी छोड़ना भी बीजेपी के लिए सर दर्द बना हुआ है. पिछले पांच महीनों में मध्य प्रदेश में एक मौजूदा विधायक, एक पूर्व सांसद और छह पूर्व विधायकों सहित कम से कम 30 बीजेपी पदाधिकारी और नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं.

कांग्रेस पार्टी के सूत्रों के मानें तो बीजेपी के नेताओं को सिंधिया समर्थकों और उनके खास लोगों के खिलाफ खड़ा किया जाएगा, जिस से बीजपी vs बीजेपी की लड़ाई में कांग्रेस को फायदा मिल सके.

(फोटो- क्विंट हिंदी)

बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए प्रमुख नामों में एक नाम तीन बार के पूर्व विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी का है, जिन्होंने बीजेपी पर अपने मूल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने का आरोप लगाया था और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

जोशी के अलावा बीजेपी से विधायक प्रदीप लारिया के भाई हेमंत लारिया ने निकाय चुनावों में टिकट न मिलने के कारण पार्टी छोड़ दी. वहां शिवपुरी के कोलारस निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बीरेंद्र रघुवंशी ने पार्टी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए अलविदा कह दिया.

"बीजेपी को 2 स्तर पर नुकसान हो रहा है"

राज्य की राजनीति पर समझ रखने वाले पत्रकारों का दावा है कि ये सारे लोग जो बीजेपी छोड़कर जा रहे हैं इनसे पार्टी को दो स्तर पर नुकसान हो रहा है.

"सबसे पहले तो ये चुनावी समय में इस विचार को लोगों तक पहुंचाता है कि पार्टी हार रही है इस कारण विधायक और नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, दूसरी समस्या जो ज्यादा बड़ी है- वह है क्षेत्रीय स्तर पर समीकरणों का बिगड़ना. इन्हीं को साधने के लिए बीजेपी बहुआयामी योजनाएं बना रही है जैसे कि जातिगत कल्याण समितियों का गठन या वर्गवार योजनों की घोषणा. लेकिन अगर ये स्थिति ऐसी ही बनी रही तो बीजेपी एक तरफ क्षेत्रीय समीकरण साधने में उलझी रहेगी, दूसरी तरफ पार्टी हार रही है इस विचार से लड़ाई लड़ेगी,"
राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा.

मौजूदा समय में लड़ाई रोचक है, ये कहते हुए राज्य के राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि बीजेपी के लिए चुनाव और कठिन होते जा रहे है. उन्होंने कहा, "नाव में कई जगह से पानी रिस रहा है. एक तरफ नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. दूसरे तरफ बीते 18 सालों के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड कुछ खास रहा नहीं दिख रहा. एंटी इनकंबेंसी बहुत हावी है. मुख्यमंत्री पद के लिए भी लड़ाई चल रही है. अंतर्कलह भी है और भी अन्य समस्याएं हैं. ऐसे में लड़ाई बीजेपी के लोग ही बीजेपी के लिए कठिनाई पैदा कर रहे हैं."

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