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देश के अन्य हिस्सों की तरह मध्य प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की चली आंधी के बीच राजनीतिक रियासतें भी उखड़ गईं. जनता ने रियासतों के प्रतिनिधियों को पूरी तरह नकार दिया. चार प्रमुख राजघरानों से नाता रखने वाले उम्मीदवारों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. राज्य की सियासत में अरसे बाद ऐसा हुआ है.
राज्य की 29 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है. बाकी 28 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कराई है. राज्य की चार सीटों गुना, भोपाल, खजुराहो और सीधी से राजघरानों से नाता रखने वाले नेता उम्मीदवार थे. इन चारों उम्मीदवारों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है.
कांग्रेस के लिए सबसे चौंकाने वाली हार गुना से मिली है. ग्वालियर के सिंधिया राजघराने से नाता रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा है. सिंधिया के कभी करीबी और सांसद प्रतिनिधि रहे डॉ. के. पी. यादव ने उन्हें एक लाख 14 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से शिकस्त दी है. सिंधिया राजघराने के प्रतिनिधि इस संसदीय सीट से 14 बार जीत चुके हैं.
गुना संसदीय क्षेत्र से ज्योतिरादित्य की दादी विजयराजे सिंधिया छह बार, पिता माधवराव सिंधिया चार बार और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया चार बार जीत चुके हैं. एक बार सिंधिया राजघराने के करीबी महेंद्र सिंह कालूखेड़ा ने यहां से जीत दर्ज कराई थी. यह पहला मौका है, जब ज्योतिरादित्य को हार का सामना करना पड़ा है.
राजघरानों के लिहाज से भोपाल सीट महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यहां से कांग्रेस ने राघौगढ़ राजघराने के दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा था. इस सीट पर सिंह का मुकाबला मालेगांव बम विस्फोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से था. यहां का चुनाव पूरी तरह हिंदुत्व के रंग में रंग गया और ठाकुर ने दिग्विजय सिंह को तीन लाख 64 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया है.
राज्य की खजुराहो संसदीय सीट पर छतरपुर राजघराने से नाता रखने वाली कांग्रेस उम्मीदवार कविता सिंह का मुकाबला बीजेपी के विष्णु दत्त शर्मा से था. इस चुनाव को स्थानीय बनाम बाहरी, बहू बनाम जमाई बनाया गया, मगर शर्मा ने सिंह को चार लाख 90 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया.
शर्मा ने इस जीत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों, जनहित में लिए गए फैसलों की जीत बताई है. उन्होंने कहा, "मैं तो किसान का बेटा हूं और खजुराहो से पार्टी ने चुनाव लड़ने का निर्देश दिया, जिसे मैंने पूरा किया. जनता को राजा या महाराजा नहीं, बल्कि सेवक चाहिए, इसीलिए उसने मुझ जैसे साधारण व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुना है. अब जनता की आकांक्षा पूरी करना मेरी पहली जिम्मेदारी है."
इसी तरह सीधी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार और चुरहट राजघराने के अजय सिंह को हार का सामना करना पड़ा है. सिंह को बीजेपी की रीति पाठक ने दो लाख 88 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया है. सिंह पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे हैं. सिंह इसके पहले विधानसभा चुनाव भी हार गए थे.
राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र व्यास के अनुसार, "देश हो या मध्य प्रदेश, हर जगह जनता का मूड बदल रहा है. यह संदेश इस बार के चुनावी नतीजों ने दिया है. युवा और पिछड़े वर्ग के लोग किसी भी नेता की चमक-दमक को बर्दाश्त नहीं करते. राजघरानों का प्रभाव कम हुआ है, मगर इन परिवारों से नाता रखने वाले प्रतिनिधियों के अंदाज नहीं बदले हैं. इसी का नतीजा है कि राज्य में रियासतों से नाता रखने वाले प्रतिनिधियों को शिकस्त मिली है."
राज्य के 29 लोकसभा क्षेत्रों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था. इसमें बीजेपी ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा में जीत हासिल कर सकी. पिछले चुनाव में राज्य की 29 सीटों में से 27 सीटों पर बीजेपी और दो पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. बाद में एक उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी.
राजस्थान के अलवर राजघराने के वारिस जितेंद्र सिंह भी मोदी लहर में चुनाव हार गए हैं. कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को बीजेपी उम्मीदवार बाबा बालकनाथ ने करीब 3 लाख से ज्यादा वोटों से हराया है.
जितेंद्र सिंह अलवर राजघराने से ताल्लुक रखते हैं. वह अलवर के युवराज प्रताप सिंह और महेंद्र कुमार के बेटे हैं. उनके दादा तेज सिंह प्रभाकर बहादुर अलवर के महाराज थे.
कालाकांकर शाही परिवार से आने वाली राजकुमारी रत्ना सिंह प्रतापगढ़ से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं. इस चुनाव में वह बीजेपी के संगम लाल गुप्ता से हार गईं. प्रतापगढ़ संसदीय सीट पर बीजेपी उम्मीदवार संगमलाल गुप्ता ने बीएसपी-एसपी गठबंधन उम्मीदवार अशोक त्रिपाठी को एक लाख 17 हजार 952 मतों से हराया. कांग्रेस उम्मीदवार राजकुमारी रत्ना सिंह तीसरे स्थान पर रहीं.
राजकुमारी रत्ना सिंह कालाकांकर के राजा दिनेश सिंह की बेटी हैं.
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Published: 24 May 2019,07:38 PM IST