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एक तो पहली बार किसी सियासतदान को समर्थन और वो भी कांग्रेस उम्मीदवार को. जब देश के सबसे अमीर शख्स और कारोबारी मुकेश अंबानी ने साउथ मुंबई से कांग्रेस उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा के लिए चुनाव प्रचार किया तो कयास लगने लगे. मिलिंद ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें मुकेश उनकी तारीफ कर रहे हैं.
हो सकता है कि मुकेश अंबानी एक वोटर के तौर पर अपने इलाके के उम्मीदवार को पसंद करते हों, इसलिए उनकी तारीफ कर दी. ये भी हो सकता है कि मुकेश अंबानी मिलिंद देवड़ा की तारीफ निजी रिश्तों के कारण कर रहे हों. लेकिन ये भी होगा कि ऐन लोकसभा चुनाव के बीच उनके इस कदम के मायने निकाले जाएंगे. सबसे बड़ी बात तो ये है कि देश सबसे प्रमुख कारोबारी मुकेश अंबानी विपक्ष के एक नेता की तारीफ करें, ये बीजेपी और एनडीए को पसंद नहीं आएगा. सोशल मीडिया पर इसके संकेत भी मिल रहे हैं.
किसी जमाने में सियासी गलियारों में मिलिंद के पिता मुरली देवड़ा और मुकेश अंबानी के बीच अच्छे रिश्तों की बात होती थी तो हो सकता है कि ये उसी नाते कर्टसी कॉल हो लेकिन चुनावों के बीच अगर उन्होंने एक कांग्रेसी को समर्थन करने का फैसला किया है तो उठने वाले सारे सवालों के बारे में भी सोचा जरूर होगा. फिर इसी वीडियो में कोटक महिंद्रा बैंक के एमडी और सीईओ उदय कोटक भी नजर आ रहे हैं. मुकेश अंबानी ने भी ऐसे मौके पर कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन किया है जब कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल डील को लेकर उनके भाई अनिल अंबानी पर लगातार हमले बोल रहे हैं. अब मिलिंद को अंबानी के समर्थन की वजह जो भी हो लेकिन इसके कारण खूब बातें हो रही हैं. सोशल मीडिया पर कोई पूछ रहा है कि क्या अंबानी ने हवा के बदलते रुख को भांप लिया है या दोनों तरफ दोस्त बनाकर रखना चाहते हैं?
जब बीजेपी ने मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह को भोपाल से उम्मीदवार बनाया तो महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला से लेकर ओवैसी तक ने सवाल उठाए. जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पूछा- क्या होता अगर उनकी पार्टी ने चुनाव में एक आतंकी आरोपी को उतारा होता? AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी बीजेपी से तीखे सवाल किए हैं.
इसी बीच एक कार्यक्रम में साध्वी फफक कर रो पड़ीं. फिर बताया - ‘किस तरह उन्हें NIA ने टॉर्चर किया. कहा कि पिटाई के कारण नौ साल बेड पर थीं. एनकाउंटर की भी कोशिश हुई.’ फिर उसी मंच से साध्वी ने अपने लिए वोट मांगे. बताया कि भगवा को आतंक कहने वालों से सावधान रहना होगा, देशद्रोहियों के कारण राष्ट्र संकट में है, ये भी बताया.
कारोबारी तहसीन पूनावाला ने भी चुनाव आयोग को एक चिट्ठी लिखकर प्रज्ञा की उम्मीदवारी रद्द करने की मांग की है. उन्होंने लिखा है कि जब हार्दिक पटेल को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है तो साध्वी को कैसे चुनाव लड़ने दिया जा सकता है. वो भी तब जब साध्वी इसे धर्म युद्ध बता रही हैं, जो कि आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है.
चुनाव आयोग और बीजेपी को इन सवालों के जवाब देने चाहिए. लेकिन सबसे बड़ा सवाल उठाया है ब्लास्ट से पीड़ित एक परिवार ने. परिवार ने कोर्ट में साध्वी की उम्मीदवारी को चुनौती दी है. परिवार ने पूछा है कि सेहत के नाम पर जमानत लेकर चुनाव लड़ना सही है क्या? बीजेपी ने इस परिवार के सवालों का जवाब तो नहीं दिया लेकिन बीजेपी के राम माधव ने उमर अब्दुल्ला और महबूबा के सवालों पर कहा है उन्हें तो सिर्फ आतंकवादियों की चिंता है. उन्हें देश के आम नागरिकों की चिंता नहीं है.
पहले और दूसरे चरण को मिलाकर अब 186 सीटों पर मतदान हो चुका है. यानी 543 में से एक तिहाई सीटों पर वोटर ने अपनी राय दे दी है. दूसरे फेज में 95 सीटों के लिए गुरुवार को करीब 12 करोड़ मतदाताओं ने वोट दिया. पश्चिम बंगाल में हिंसा की छिटपुट घटनाओं को लेकर आम तौर पर हर राज्य में मतदान शांतिपूर्ण हुए. राज्यों के हिसाब से वोटिंग परसेंटेज ये रहा
असम- 76%
बिहार - 62%
छत्तीसगढ़ - 71%
जम्मू-कश्मीर - 45%
कर्नाटक - 68%
महाराष्ट्र - 61%
मणिपुर- 67%
ओडिशा - 57%
पुडुचेरी- 76%
तमिलनाडु- 66%
उत्तर प्रदेश- 66%
पश्चिम बंगाल- 76%
दूसरे चरण के मतदान में तमिलनाडु और महाराष्ट्र में कम वोट पड़े हैं. इनमें बीजेपी या सहयोगी पार्टी की सरकार है. ऐसे में कम वोट पड़ने का नुकसान किसे होगा, ये देखना होगा. वैसे तमिलनाडु में बीजेपी की सहयोगी AIADMK के लिए 35 सीटों की परफॉर्मेंस दोहरा पाना मुश्किल लग रहा है. कर्नाटक में 6 सीटों पर ज्यादा तो 6 सीटों पर कम वोट पड़े हैं. दो सीटों पर 2014 जितने ही वोट पड़े. खास कर दक्षिण कर्नाटक जहां से बीजेपी ने अपने सबसे युवा उम्मीदवार तेजस्वी सूर्या को उतारा है, वहां एक फीसदी कम वोट पड़े हैं. इससे तो लग रहा है कि तेजस्वी को लेकर कोई भारी सपोर्ट नहीं है. वेस्टर्न यूपी में फर्स्ट फेज की तुलना में दूसरे फेज में कुछ बेहतर वोटिंग हुई. लेकिन 2014 से तुलना करें तो वोटिंग कुछ खास नहीं बढ़ी है. कुल मिलाकर वोट परसेंटेज में इजाफा न होना बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं है.
बात श्रीनगर की करें तो पिछली बार से आधे से कम वोटिंग हुई. 2014 में 25 फीसदी वोट पड़े थे लेकिन इस बार ये आंकड़ा 13% पर रुक गया. घाटी में पिछले चार-पांच सालों में जिस तरह का माहौल है उससे कम वोटिंग चौंकाने वाली बात नहीं है. कश्मीरियों को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशों के लिए ये कतई मददगार नहीं है.
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Published: 18 Apr 2019,09:05 PM IST