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लोकसभा पहुंचे 24 मुस्लिम सांसद, जानिए 10 साल में कैसे गिरा प्रतिनिधित्व का ग्राफ?

Lok Sabha Election 2024: किस पार्टी के कितने मुस्लिम उम्मीदवारों को मिली जीत? ऐसे बड़े नामों से यहां मिलिए

अलीज़ा नूर
चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>यूपी में एसपी के इकरा चौधरी और अफजल अंसारी जीते,  बंगाल में टीएमसी के यूसुफ पठान जीते</p></div>
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यूपी में एसपी के इकरा चौधरी और अफजल अंसारी जीते, बंगाल में टीएमसी के यूसुफ पठान जीते

(फोटो: कामरान अख्तर/द क्विंट)

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Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में तमाम पार्टियों ने पिछली बार से कम मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. अब चुनाव के नतीजे सामने हैं. जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में 26 मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंचे थे वहीं यह आंकड़ा कम होकर 2024 में 24 हो गया है. यह अभी भी 2014 से अधिक है जब 23 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे.

सबसे प्रमुख विजेताओं में एक राजनीतिक परिवार से आने वाली 28 वर्षीय इकरा चौधरी हैं. उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना से जीत हासिल की है. उन्होंने बीजेपी के प्रदीप कुमार को 69,000 से अधिक वोटों के अंतर से हराया.

चुनावी मौसम में अपने प्रचार के दिनों में इकरा चौधरी

(फोटो- @Iqra_Munawwar_/X)

2019 में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने 115 मुसलमानों ने टिकट दिया था. हालांकि, इस बार यह संख्या घटकर 78 रह गई क्योंकि कई पार्टियां अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से कतरा रही थीं या अनिच्छुक थीं.

एक अन्य प्रमुख विजेता गाजीपुर के एसी उम्मीदवार अफजाल अंसारी हैं जिन्होंने 1.2 लाख से अधिक वोटों के साथ सीट जीती है.

क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यूपी और बिहार में कुछ जिले हैं जहां मुसलमानों को राजनीतिक भागीदारी मिलनी चाहिए जैसे कि सहारनपुर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, अमरोहा, संभल और रामपुर. हालांकि, उन्होंने अपनी जीत के साथ इस मिथक को तोड़ दिया कि एक मुस्लिम उम्मीदवार को केवल 'मुस्लिम-बहुल' क्षेत्र में ही खड़ा किया जाना चाहिए.

अफजाल अंसारी ने कहा, "गाजीपुर में, केवल 10% मुस्लिम हैं और मुझे यहां से मैदान में उतारा गया है. यहां, जनसांख्यिकी अलग है और यह 'मुस्लिम बहुल' जगह नहीं है, यहां लगभग 22% यादव हैं, अधिकांश भूमिहार यहां मौजूद हैं, हम धार्मिक और जातीय आधार पर सीमित होकर नहीं लड़ सकते.”

2024 के नतीजों के बाद कांग्रेस के पास सबसे ज्यादा सात मुस्लिम सांसद हैं, इसके बाद टीएमसी के पांच, एसपी के चार, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के तीन, नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो, दो निर्दलीय उम्मीदवार और AIMIM के असदुद्दीन औवेसी हैं.

पिछले साल और इस चुनावी मौसम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते रहे हैं कि 'पसमांदा मुसलमानों को अधिक अवसर मिलने चाहिए'. लेकिन इसके बावजूद सत्तारूढ़ बीजेपी ने केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया- केरल के मलप्पुरम से अब्दुल सलाम को. उनको हार का सामना करना पड़ा.

जीत और हार

इससे पहले कि हम मुस्लिम सांसदों की संख्या में गिरावट के संभावित कारणों पर गौर करें, आइए इस बार पार्टियों द्वारा मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों पर नजर डालें और देखें कि वे जीते या हारे.

एनडीए ने कुल मिलाकर चार मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, उनमें जेडीयू के उम्मीदवार मुजाहिद आलम और असम गण परिषद के जाबेद आलम शामिल थे. इनमें से कोई भी नहीं जीता.

इस बार जीतने वाले मुस्लिम उम्मीदवार इस प्रकार हैं:

कांग्रेस:

  • रकीबुल हुसैन, धुबरी, असम

  • ईशा खान चौधरी, मालदा दक्षिण, पश्चिम बंगाल

  • शफी परम्बिल, वडकारा, केरल

  • तारिक अनवर, कटिहार, बिहार

  • मोहम्मद जावेद, किशनगंज, बिहार

  • मुहम्मद हमदुल्लाह सईद, लक्षद्वीप

  • इमरान मसूद, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

समाजवादी पार्टी (सभी यूपी)

  • इकरा चौधरी, कैराना

  • मोहिबुल्लाह, रामपुर

  • जिया उर रहमान, संभल

  • अफजाल अंसारी, गाजीपुर

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टीएमसी (सभी पश्चिम बंगाल):

  • खलीलुर्रहमान, जंगीपुर

  • युसूफ पठान, बहरामपुर

  • अबू ताहेर खान, मुर्शिदाबाद

  • एसके नुरुल इस्लाम, बशीरहाट

  • साजदा अहमद, उलुबेरिया

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग:

  • ईटी मोहम्मद बशीर, मलप्पुरम, केरल

  • डॉ एमपी अब्दुस्समद समदानी, पोन्नानी, केरल

  • नवस्कनी के, रामनाथपुरम, तमिलनाडु

जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस:

  • आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी, श्रीनगर

  • मियां अल्ताफ अहमद, अनंतनाग-राजौरी

AIMIM:

  • असदुद्दीन औवेसी, हैदराबाद

निर्दलीय:

  • अब्दुल रशीद शेख, बारामूला

  • मोहम्मद हनीफा, लद्दाख

हारने वाले कुछ प्रमुख मुस्लिम उम्मीदवार थे: बारामूला में उमर अब्दुल्ला (जेकेएनसी), अमरोहा में दानिश अली (कांग्रेस), बेंगलुरु सेंट्रल में मंसूर अली खान (कांग्रेस), औरंगाबाद में सैयद इम्तियाज जलील (AIMIM).

जहां कांग्रेस के करीब 19 मुस्लिम उम्मीदवार थे, वहीं एसपी ने मुस्लिम समुदाय से चार और टीएमसी ने छह उम्मीदवार उतारे थे. छठे टीएमसी उम्मीदवार शाहनवाज अली रैहान मालदा दक्षिण में ईशा खान चौधरी से हार गए.

जब मुस्लिम उम्मीदवारों को पर्याप्त टिकट न देने के बारे में बात की जाती है तो 'जीतने की क्षमता' का तर्क अक्सर उठाया जाता है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) में असिस्टेंट प्रोफेसर हिलाल अहमद ने द क्विंट को बताया:

"पिछले एक दशक में हमारी चुनावी राजनीति अधिक पेशेवर हो गई है. इसलिए, जीतने की क्षमता को ही रेफरेंस प्वाइंट बना दिया गया है. दूसरा, हिंदुत्व राजनीति का प्रमुख नैरेटिव बन गया है. गैर-बीजेपी दल मुस्लिम समर्थक के रूप में नहीं दिखना चाहते हैं. यह बात भी मुसलमानों को टिकट देने या न देने में भी भूमिका निभाती है.”

'मुसलमान उम्मीदवार गैर-मुस्लिम बहुल इलाकों से भी चुनाव लड़ सकते हैं'

पिछले लोकसभा चुनावों में, यानी 2019 में लगभग 26 मुस्लिम उम्मीदवार सांसद चुने गए थे. उनमें से चार टीएमसी से, कांग्रेस, बीएसपी और एसपी से तीन-तीन और एनसीपी-सीपीआई (एम) से एक-एक थे. अन्य सांसद असम के एआईयूडीएफ, लोक जनशक्ति पासवान (अब दो गुटों में बंटा), आईयूएमएल और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस से थे. AIMIM के भी दो सांसद निर्वाचित हुए थे.

यह सच है कि राजनीतिक दल किसी को मैदान में उतारने से पहले किसी निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवार के कंट्रोल, उसके प्रभाव और उसके बैकग्राउंड पर विचार करते हैं. यहां पार्टी की विचारधारा भी मायने रखती है.

दूसरी ओर, बीएसपी ने 2024 के चुनाव में 35 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जो सभी पार्टियों में सबसे अधिक है. इनमें से आधे से अधिक (17) उत्तर प्रदेश में हैं. हालांकि, पार्टी कोई भी सीट जीतने में नाकाम रही है.

कांग्रेस और उनके मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 2019 में 34 से घटकर इस बार 19 हो गई.

मुस्लिम उम्मीदवारों का निर्दलीय खड़ा होना भी एक और पैटर्न है जो उभर कर सामने आया है. जैसे गुजरात में, जहां मैदान में कुल 266 उम्मीदवारों में से 32 मुस्लिम उम्मीदवार थे और इनमें से अधिकांश निर्दलीय चुनाव लड़े हैं.

इसी तरह, रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में चुनावी मैदान में 79 मुस्लिम स्वतंत्र उम्मीदवार थे जबकि 2019 में यह संख्या 55 थी.

अहमद ने कहा कि संरचनात्मक स्तर पर बदलाव के लिए तीन चीजों की आवश्यकता है:

  • "प्रतिनिधित्व के विचार के लोकतंत्रीकरण यानी आंतरिक लोकतंत्र और राजनीतिक दलों के समावेशी चरित्र पर सवाल उठाया जाना चाहिए.

  • मुस्लिम पसमांदा सहित सभी हाशिये पर रहने वाले समुदायों का जमीनी स्तर का गठबंधन.

  • पंचायत और नगर पालिका स्तर की राजनीति में अधिक सक्रिय भागीदारी.”

मोदी के कार्यकाल में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कैसे बदल गया?

पिछले दो आम चुनावों पर नजर डालें तो, 2014 में, बीजेपी ने कुल 482 में से सात मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. लेकिन, उनमें से सभी हार गए, जिनमें शाहनवाज हुसैन भी शामिल थे जो उस समय मौजूदा सांसद थे.

2019 में, भगवा पार्टी ने छह मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था - तीन जम्मू-कश्मीर में, दो पश्चिम बंगाल में और एक लक्षद्वीप में - लेकिन फिर, उनमें से कोई भी नहीं जीता.

मोदी के 2014 में सत्ता संभालने से पहले लोकसभा में 30 मुस्लिम सांसद थे, उसमें से सिर्फ एक बीजेपी से था. वर्तमान संसद में, 543 में से 25 मुस्लिम सांसद है. यानी संसद की 5-6% से भी कम सीटों पर मुस्लिम सांसद है. इनमें से एक भी बीजेपी का नहीं.

राज्य स्तर पर भी, भारत के 28 राज्यों की राज्य विधानसभाओं में 4,000 से अधिक विधायक हैं और मुस्लिम विधायकों के पास इनमें से लगभग 6% सीटें हैं.

1980 के दशक के मध्य में, मुस्लिम भारत की आबादी का 11% थे, और संसद में 9% सीटों पर मुस्लिम सांसद थे. 1980 में लोकसभा में 49 मुस्लिम सांसद थे. 1984 में 46 मुस्लिम सांसद थे.

संयोग से, हम देख रहे हैं कि भले ही इस बार मुसलमान उम्मीदवारों के रूप में उतने दिखाई नहीं दे रहे हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे चुनावी मौसम के दौरान सुर्खियों से गायब रहे हैं. कुछ बीजेपी नेताओं और यहां तक ​​कि पीएम मोदी ने मुसलमानों के लिए कोटा के बारे में बात करके, मुसलमानों को 'घुसपैठिया' कहकर डर पैदा करने की कोशिश की, और यह बहुत वायरल दावा किया गया कि 'अगर एक हिंदू के पास दो भैंस हैं तो कांग्रेस एक भैंस मुस्लिमों को देना चाहती है.'

पीएम मोदी ने एक कदम आगे बढ़कर लोगों से 'राम राज्य' और 'वोट जिहाद' में से किसी एक को चुनने को कहा.

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