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नीतीश कुमार का स्ट्राइक रेट BJP से बढ़िया, ऐसा क्या हुआ कि BJP से आगे निकली JDU?

Bihar Lok Sabha Election Result 2024: नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 2019 लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीती थी.

मोहन कुमार
चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>Nitish Kumar: 'सुशासन बाबू' का जादू बरकरार, बिहार में BJP से बेहतर स्ट्राइक रेट</p></div>
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Nitish Kumar: 'सुशासन बाबू' का जादू बरकरार, बिहार में BJP से बेहतर स्ट्राइक रेट

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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बिहार लोकसभा चुनाव (Bihar Lok Sabha Election Result 2024) में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक बार फिर सभी को चौंका दिया है. जनता दल यूनाइटेड (JDU) प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती हुई दिख रही है. अब तक के रुझानों के मुताबिक, NDA 33 सीटों पर आगे है. 16 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली जेडीयू 14 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. वहीं बीजेपी 13 सीटों पर लीड कर रही है. चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अपनी सभी पांचों सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. इंडिया गुट की बात करें तो आरजेडी- 3, कांग्रेस और CPIML 2-2 सीट पर आगे चल रही है.

चलिए आपको 5 प्वाइंट में बताते हैं कि कैसे सत्ता विरोधी लहर, राजनीतिक विश्वसनीयता को लेकर उठते सवाल और बीजेपी से कम सीट पर चुनाव लड़ने के बावजूद नीतीश कुमार का जादू चला है?

नीतीश अब भी 'बड़े भाई'!

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन छोड़कर NDA में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार को लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे थे. इसके साथ ही चुनाव के दौरान कयास लगाए जा रहे थे कि बिहार में नीतीश कहीं छोटे भाई बनकर ही न रह जाएं. लेकिन लोकसभा चुनाव परिणामों में जेडीयू का स्ट्राइक रेट बीजेपी से बेहतर दिख रहा है. ये नतीजे नीतीश की क्रेडिबिलिटी को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब की तरह भी देखे जा रहे हैं.

NDA गठबंधन में ऐसा पहली बार था, जब जेडीयू, बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. बीजेपी ने 40 में से 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जबकि जेडीयू के हिस्से में 16 सीटें आई थीं. 5 सीटों पर चिराग पासवान और एक सीट से हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने उम्मीदवार उतारे थे. वही 1 सीट उपेंद्र कुशवाहा को मिली थी.

बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव लड़कर भी जेडीयू गठबंधन में सबसे अधिक सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. अगर ये रुझान नतीजों में बदलते हैं तो यह नीतीश कुमार के लिए संजीवनी की तरह होगा. गौरतलब है कि एग्जिट पोल अनुमानों में नीतीश कुमार की पार्टी को नुकसान के अनुमान जताए गए थे.

'सुशासन बाबू' पर जनता का भरोसा

नीतीश कुमार बिहार सहित देश में 'सुशासन बाबू' के नाम से भी मशहूर हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजे दर्शाते हैं कि जनता ने एक बार फिर नीतीश कुमार के सुशासन मॉडल पर मुहर लगाई है.

बता दें कि नीतीश कुमार पिछले 19 सालों से बिहार की सत्ता में काबिज हैं. उनके खिलाफ सबसे ज्यादा सत्ता विरोधी लहर की बात कही जा रही थी. हालांकि, चुनाव के नतीजों ने इन बातों को खारिज कर दिया है.

क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं,

"नीतीश कुमार जिस तरफ रहते हैं वो पलड़ा भारी रहता है. लोग कह रहे थे कि नतीश कुमार की 2005 वाली छवि अब नहीं रही है, लेकिन मेरा मानना है कि नीतीश कुमार अब भी बिहार की राजनीति में दबदबा है. यही वजह है कि उन्हें बीजेपी और आरजेडी हमेशा उन्हें अपने साथ रखना चाहती है."
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टिकट बंटवारे में जातीय समीकरण का ध्यान

लोकसभा चुनाव में जेडीयू के प्रदर्शन के पीछे टिकट बंटवारे को भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है. नीतीश कुमार ने टिकट बांटते समय बिहार की कास्ट पॉलिटिक्स पर पूरा ध्यान दिया. 16 प्रत्याशियों में से 5 अति पिछड़ा, 3 कुशवाहा, 2 यादव, 1 कुर्मी, 1 राजपूत, 1 भूमिहार, 1 ब्राह्मण, 1 दलित और 1 मुस्लिम को टिकट दिया. जिसका फायदा चुनाव में होता दिख रहा है.

रोजगार और कामकाज का क्रेडिट लेने में रहे सफल

नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होने के बाद प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती और विकास कार्यों की क्रेडिट लेने की होड़ मच गई. तेजस्वी यादव इसे अपनी उपलब्धि बताते रहे. वहीं दूसरी ओर जेडीयू नेता इसके लिए नीतीश कुमार को श्रेय देते रहे.

बता दें कि 17 महीने चली महागठबंधन सरकार के दौरान बिहार में लाखों पदों पर शिक्षकों की भर्ती हुई थी.

चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने अपने शासन के दौरान हुए कामकाज का रिपोर्ट कार्ड जनता के पेश किया, जो चुनावी नतीजों में भी दिख रहा है.

पिछले साल नीतीश कुमार ने बड़ा दांव खेलते हुए  सरकारी नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया था. हालांकि, इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है.

सेक्युलर छवि

बिहार में नीतीश कुमार की छवि एक सेक्युलर नेता के रूप में है. जानकार इसे नीतीश की राजनीत का यूएसपी मानते हैं. इसके साथ ही उनकी पहचान एक समाजवादी नेता के रूप में भी है- जो सभी तबकों को साथ लेकर चलता है. चुनावों में नीतीश कुमार को इसका फायदा होते दिख रहा है.

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने रैलियों में कहा कि उन्होंने अपने शासनकाल में सांप्रदायिक सद्भाव बरकरार रखा. अल्पसंख्यकों के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चलाईं. बीजेपी के साथ होने के बावजूद नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश की कि वह बीजेपी के साथ गठबंधन के बावजूद उनके हितों की रक्षा करना जारी रखेंगे.

वहीं लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा था. कांग्रेस और आरजेडी ने इस समारोह को आरएसएस और बीजेपी का इवेंट करार देकर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने से इनकार कर दिया था. हालांकि, नीतीश कुमार की पार्टी ने इस फैसले से खुद को दूर रखा.

बहरहाल, अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा चुनाव में जेडीयू के बेहतरीन प्रदर्शन से नीतीश कुमार का सियासी सांख और मजबूत हुई है.

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