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बुधवार को कुरुक्षेत्र की रैली और एक अखबार को दिए इंटरव्यू में पीएम मोदी का अंदाज बदला-बदला नजर आया. कुरुक्षेत्र में उन्होंने गिनाया कि उन्हें विपक्ष की तरफ से कैसी-कैसी गालियां मिलती हैं तो इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि विपक्ष उनकी गरीबी और परिवार का मजाक उड़ाता है. इसी इंटरव्यू में उन्होंने खुद को लुटियंस दिल्ली के पत्रकारों का शिकार करार दिया. क्या ये दिल की असली भड़ास है या फिर कोई सोची समझी रणनीति? चुनाव के पांच चरण खत्म होने के बाद क्या उन्हें फिर से एक 'अय्यर मोमेंट' की तलाश है?
आगे बढ़ने से पहले आपको बताते हैं उन्होंने बुधवार को क्या-क्या कहा है. पहले कुरुक्षेत्र की रैली. यहां पीएम मोदी ने कहा-''कांग्रेस के लाेग मुझे प्रेम के नाम पर गालियां देते हैं। इनकी प्रेम वाली डिक्शनरी में मेरे लिए तरह-तरह की गालियां हैं। इन लोगों ने मेरे लिए क्या-क्या नहीं कहा, क्या-क्या गालियां नहीं दीं। मेरे प्रधानमंत्री बनने के बाद इन्होंने मेरी मां को गालियां दीं और यह भी पूछा कि मेरे पिता कौन हैं।'
रैली में प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की कि वो गालियों वाला ये वीडियो फैलाएं ताकि देश को कांग्रेस की सच्चाई पता लग सके.
जब एक अखबार से इंटरव्यू में पीएम मोदी से राजीव गांधी का नाम उछालने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने पूछा कि- 'मैंने गलत क्या कहा है'. इसके बाद उन्होंने फिर से याद दिलाया कि कांग्रेस के अध्यक्ष उन्हें गाली देते हैं.
इसी इंटरव्यू में पीएम मोदी ने फिर याद दिलाया कि वो लुटियंस पत्रकारों के शिकार हैं. ये भी बताया कि वो पहले शिकार नहीं, अंबेडकर से लेकर पटेल और मोरारजी देसाई तक उनके शिकार बने. वो एक परिवार को छोड़कर सबको नीचा दिखाना चाहते हैं. ताज्जुब ये है कि जिस मीडिया के मोदी के साथ होने की चर्चा होती है उसी से मोदी को शिकायत है.
याद कीजिए कि 2019 का चुनाव प्रचार किस टोन पर शुरू हुआ था. चुनावी सीजन के शुरुआती दिनों में पीएम मोदी ने कहा कि विपक्ष उन्हें जितनी गालियां देगा वो उतने मजबूत बनेंगे. मार्च में वो गालियों को गहना बता रहे थे. 'चौकीदार चोर है' के जवाब 'मैं भी चौकीदार' अभियान चला. चुनाव प्रचार का सिलसिला 'उन्होंने सत्तर साल कुछ नहीं किया' से शुरू हुआ. फिर मुद्दा बालाकोट और पुलवामा हो गया और फिर इंटरव्यूज के जरिए सॉफ्ट चेहरा दिखाने की बारी आई. अब ये 'गालियों' पर आ टिका है. सिर्फ पीएम मोदी ही नहीं उनके नेता भी बता रहे हैं कि विपक्ष कितनी गालियां दे रहा है.
क्या ये विक्टिम कार्ड जानबूझकर खेला जा रहा है? जरा याद कीजिए 2014 का चुनाव, जब कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को चाय वाला कह दिया था.
मणिशंकर अय्यर के इस बयान के बाद बीजेपी ने पूरे देश में 'चाय पर चर्चा' अभियान चलाया था. इस अभियान का बीजेपी का बड़ा फायदा भी हुआ. क्या 'चाय पर चर्चा' और 'मैं भी चौकीदार' एक जैसा लगता है?
सच्चाई ये है कि रैलियों में बदजुबानी दोनों तरफ से बढ़ी है. हिमाचल बीजेपी के चीफ राहुल गांधी को गाली देने में सारी सीमाएं तोड़ चुके. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विपक्ष के नेताओं को आतंकवादियों का रिश्तेदार कह चुके. लेकिन सिर्फ एक तरफ से विक्टिम कार्ड खेलना कुछ कहता है. विडंबना ये है कि सियासी बातचीत में 'गालियों' के शोर में असल चुनावी मुद्दे मौन हो जाते हैं.
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Published: 08 May 2019,10:39 PM IST