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करीब एक महीने से चर्चा थी कि प्रियंका गांधी वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ सकती हैं. जब भी प्रियंका से ये सवाल पूछा गया, उन्होंने यही कहा कि अगर राहुल गांधी चाहें तो मैं चुनाव लड़ने को तैयार हूं. खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस चर्चा को हवा दी. लेकिन आखिर में पार्टी ने वाराणसी से किसी और को टिकट दे दिया. गुरुवार को जारी उम्मीदवारों की नई सूची में कांग्रेस ने वाराणसी से अजय राय को लड़ाने का फैसला किया. अब बड़ा सवाल यही है कि आखिर क्यों कांग्रेस ने वाराणसी से प्रियंका पर दांव नहीं लगाया?
सबसे पहले ये देखिए कि जब राहुल गांधी से प्रियंका के वाराणसी से चुनाव लड़ने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने क्या कहा था.
प्रियंका गांधी यूपी में कांग्रेस की ट्रंप कार्ड मानी जा रही हैं. जब से प्रियंका यूपी के चुनाव मैदान में उतरी हैं, कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में गजब का जोश देखा जा रहा है. उनके लुक्स की तुलना लोग इंदिरा गांधी से भी करते हैं. प्रियंका में एक फायर ब्रांड नेता के सारे गुण दिख रहे हैं. कभी वो पीएम मोदी को प्रधान प्रचार मंत्री बताकर सुर्खियां बटोरती हैं तो कभी कार्यकर्ता को लड्डू से तौलकर काडर का मन जीत लेती हैं. जिस यूपी में मुख्य लड़ाई बीएसपी-एसपी गठबंधन और बीजेपी के बीच है और कांग्रेस चौथी पार्टी के तौर पर देखी जा रही है, वहां प्रियंका के आने से समीकरण कुछ जरूर बदले हैं.
इसके बावजूद अगर पार्टी ने उन्हें वाराणसी से न उतारने का फैसला किया है तो उसके कई कारण हो सकते हैं. पहली और स्वाभाविक वजह तो यही लगती है कि प्रियंका को वाराणसी से बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता के खिलाफ उतारने के अपने रिस्क हो सकते थे. अगर वो मोदी से चुनाव हार जातीं तो उनका राजनीतिक करियर शुरू होने के पहले खत्म होने का डर था. ये रिस्क इतना बड़ा था कि शायद कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी.
अगर प्रियंका मिशन वाराणसी में कामयाब होतीं तो बीजेपी को इस हार से उबरने में न मालूम कितना समय लगता. ये सही है कि इस वक्त नरेंद्र मोदी को देश की किसी भी सीट से हराना मुश्किल है लेकिन जनता दरबार कब क्या फैसला सुना दे, क्या पता? एक राय ये भी है कि अगर प्रियंका मोदी को कड़ी टक्कर देतीं या हार भी जाती तो विपक्ष की एक बड़ी नेता के रूप में उनकी छवि बनती. चुनावों के बाद विपक्ष का केंद्र वो हो जातीं. ये कद इतना बड़ा होता कि राहुल गांधी के 'छोटे' होने का डर था. शायद इन तमाम चीजों को तौलकर कांग्रेस ने आखिर में उन्हीं अजय राय को टिकट दे दिया, जो 2014 में मोदी से बुरी तरह हारे थे.
अजय राय वाराणसी से मजबूत नेता माने जाते हैं. एक जमाने में बीजेपी में ही थे. फिर समाजवादी पार्टी होते हुए कांग्रेस में आए. पांच बार विधायक भी रह चुके हैं. 2014 में अजय राय तीसरे नंबर पर रहे थे. मोदी को 56 फीसदी वोट मिले और दूसरे नंबर पर रहे थे आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल. मोदी को 5.81 लाख वोट मिले, केजरीवाल को 2.09 लाख वोट मिले तो अजय राय को सिर्फ 75 हजार मत मिले.
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Published: 25 Apr 2019,01:34 PM IST