advertisement
चंद महीनों के ही अंदर भारत के 5 राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर- में विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन राजनीतिक चर्चा और सरगर्मी के फ्रंट पर पंजाब (Punjab) कहीं आगे नजर आ रहा है. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर (Amarinder Singh) इस पॉलिटिकल केमिस्ट्री में कैटलिस्ट बन कर उभरे हैं.
सीएम पद से बेदलखली के बाद कांग्रेस छोड़ नई पार्टी बनाने की घोषणा और पंजाब में हाशिये पर दिख रही बीजेपी के साथ गठबंधन की संभावना जताकर उन्होंने एक साथ कई समीकरण सामने रख दिए हैं. इनमें से कुछ समीकरणों के जवाब नजर भी आ रहे हैं.
19 अक्टूबर को कैप्टन अमरिंदर सिंह के मीडिया एडवाइजर रवीन ठुकराल ने उनकी तरफ से ट्वीट करते हुए जानकारी दी कि कैप्टन अपनी नई राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं और वो बीजेपी के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं.
यहां तक कि पंजाब में बीजेपी के प्रभारी दुष्यंत गौतम ने 20 अक्टूबर को कहा कि “हम कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन को तैयार हैं”.
अगर अमरिंदर सिंह बीजेपी के साथ आते हैं तो उनके लिए चुनावी मुद्दा क्या होगा- यकीनन बीजेपी के साथ रहते हुए कृषि मुद्दों को नहीं उठा पाएंगे. इस सवाल का जवाब कैप्टन के हालिया बयानों में खोजा जा सकता है.
हाल ही में जब केंद्र सरकार ने पंजाब समेत कई सीमावर्ती राज्यों में बीएसफ के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि की तो विपक्षी दलों से अलग राग अपनाते हुए कैप्टन ने इसका स्वागत किया और फिर से “राष्ट्रीय सुरक्षा” की दलील दी.
इतना ही नहीं अमरिंदर आर्मी बैकग्राउंड से होने के कारण भी आसानी से राष्ट्रवाद के फ्रंट पर चुनाव लड़ सकते हैं और यह ऐसा मुद्दा है जिस पर वो बीजेपी के साथ एक पेज पर नजर आ सकते हैं.
अगर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नई पार्टी वाले “एडवेंचर” से कोई सबसे ज्यादा खुश होगी तो वह आम आदमी पार्टी होगी. पहले ही पंजाब की “लड़ाई” में सबसे आगे नजर आ रही AAP के लिए कांग्रेस से कैप्टन और उसने कोर वोट की रुखसती किसी जैकपॉट से कम नहीं है.
सितंबर महीने में आये पहले एबीपी-सी वोटर सर्वे की तरह ही पंजाब में आम आदमी पार्टी को दूसरे सर्वे में भी सबसे अधिक सीट जितने का अनुमान लगाया गया है. 117 विधानसभा सीटों वाले इस चुनाव में सर्वे के अनुसार AAP को 49 से 55 सीटें मिल सकती हैं. याद रहे कि यह सर्वे तब का है जब अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस के लिए “वोटकटवा” की भूमिका नहीं अपनाई थी.
एक बात तो साफ है की कांग्रेस के लिए पंजाब चुनाव के पहले आतंरिक कलह का यह पूरा एपिसोड किसी केस स्टडी से कम नहीं नहीं है. कांग्रेस और दूसरी पार्टियां भी इससे सीख सकती है- “चुनाव के पहले क्या नहीं करे”.
पहले ही कृषि कानूनों पर केंद्र के सामने मजबूती के साथ खड़े नहीं होने का आरोप झेल रही कांग्रेस अमरिंदर के साथ छूटने से और कमजोर हो सकती थी. पंजाब पर एबीपी-सी वोटर के दोनों सर्वे में कांग्रेस आप से पीछे रही है. दूसरे सर्वे में इसके 39 से 47 सीटें जीतने की भविष्यवाणी की गयी है.
इसके अलावा एक बड़ी बात यह है कि अमरिंदर के रुखसती के बाद भी कांग्रेस का अंदरूनी कलह शांत नहीं हुआ है. अंदर से आ रही खबर की माने तो सिद्धू नए मुख्यमंत्री चन्नी के बीच सब कुछ ठीक नहीं है और कई मुद्दों पर ऊके बीच तीखी नोक-झोक भी हुई है.
ऐसे में अमरिंदर सिंह के नए समीकरण में कांग्रेस अपना हिसाब कहां फिट कर पाएगी, यह सवाल अहम होगा. सवाल तो यह भी होगा कि वो समीकरण अमरिंदर सामने रख रहे हैं, उसका जवाब क्या उनके पास खुद है भी ?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)