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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के नतीजे मंगलवार (4 जून) को जारी कर दिए गए. इसमें पंजाब की 13 सीटों के परिणाम भी शामिल हैं, जहां अंतिम चरण में एक जून को मतदान हुआ था. पंजाब के नतीजों पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस को सात सीटें मिली है लेकिन AAP, SAD और बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है. ऐसे में आईये जानते हैं कि पंजाब के नतीजे क्या रहे, AAP, BJP और SAD को क्यों हार का सामना करना पड़ा? और अमृतपाल सिंह के जीत के क्या मायने हैं?
पंजाब में लोकसभा की कुल 13 सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस को 7, आम आदमी पार्टी तीन, शिरोमणि अकाली दल को एक और दो निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली है. जबकि बीजेपी का खाता तक नहीं खुला.
चुनाव नतीजों को देखें तो, पंजाब में कांग्रेस एक बार फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. हालांकि, उसे एक सीट का नुकसान हुआ है. पिछली बार पार्टी ने आठ सीटें अपने नाम की थी लेकिन इस बार उसे सात सीटों पर ही संतोष करना पड़ा.
सबसे अहम बात यह है कि आम आदमी पार्टी, बीजेपी और अकाली दल के तमाम विरोध के बावजूद कांग्रेस पंजाब में अपना किला बचाने में सफल रही. हालांकि, उसका वोट शेयर 2019 के मुकाबले जरूर कम हो गया. पार्टी को 2019 में 40 फीसदी के करीब मत मिले थे, जो 2024 में घटकर 26.28 प्रतिशत हो गए. मतलब साफ है कि पार्टी का वोट शेयर करीब 12 प्रतिशत कम हुआ है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था. यानी पार्टी के लिए जीत के बावजूद भी आगे आने वाला समय कठिन है.
पंजाब की सत्ता पर पिछले दो साल से काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) को तीन सीटों पर जीत मिली है. हालांकि, AAP को अपने दावों (क्लीन स्वीप) के मुकाबले सफलता नहीं मिली है लेकिन उसके सीट और वोट शेयर दोनों में बढ़ोतरी हुई है.
2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक सीट पर जीत मिली थी और उसका वोट शेयर 2014 के मुकाबले 24 प्रतिशत से घटकर 7.38 प्रतिशत रह गया था. लेकिन 2024 के चुनाव में पार्टी का वोट शेयर बढ़कर 26.17 फीसदी तक पहुंच गया है.
पंजाब में कभी लंबे समय तक पक्के दोस्त रहे शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में बड़ा नुकसान हुआ है. SAD को एक सीट पर जीत मिली है जबकि बीजेपी का खाता तक नहीं खुला है. हालांकि, वोट शेयर के हिसाब से देखें तो बीजेपी को फायदा हुआ है. पार्टी का वोट शेयर 2019 चुनाव के मुकाबले 9.63 फीसदी से बढ़कर 18.43 पर पहुंच गया है. जबकि SAD 27.45 से घटकर 13.51 फीसदी पर आ गया है. यानी अकाली दल का 14 प्रतिशत के करीब वोट शेयर कम हुआ है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो राज्य में अकाली और बीजेपी के खराब प्रदर्शन की वजह कमजोर संगठन भी है. पंजाब में बीजेपी लंबे समय तक अकाली दल पर निर्भर रही है लेकिन तीन कृषि कानून को लेकर SAD के बीजेपी से अलग होने के बाद स्थिति पूरी तरह से बदल गई. हालांकि, चुनाव पूर्व दोनों के फिर से साथ आने की चर्चा थी लेकिन ये हकीकत में बदल नहीं पाया.
वहीं, बीजेपी ने अकाली से अलग होने के बाद पार्टी को मजबूत करने के लिए संगठन में बड़े स्तर पर फेरबदल किया, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कई नेताओं की पार्टी में एंट्री कराई गई लेकिन इसका फायदा नहीं हुआ. इसके अलावा कई बीजेपी प्रत्याशियों को विरोध का भी सामना करना पड़ा, जो हार का एक मुख्य कारण बना. पार्टी राज्य के प्रमुख मुद्दों को लेकर भी बहुत संघर्ष करती नहीं दिखी, जिसके कारण जनता में विश्वास की कमी दिखाई दी. दूसरी तरफ अकाली दल के कई नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने का भी उसे नुकसान हुआ. पार्टी न तो मुद्दों और न ही गठबंधन को लेकर स्पष्ट दिखी, इसके अलावा पार्टी राज्य में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के खिलाफ माहौल बनाने में असफल रही, जिसका उसे खामियाजा भुगतना पड़ा.
खडूर साहिब सीट से "वारिस पंजाब दे" संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह की जीत कई मायनों में खास है. पहला, 196058 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर सिंह ने बता दिया कि वो पंजाब की सियासत में कितने मौजूं हैं. दूसरा, खडूर साहिब को पंथिक सीट के रूप में जाना जाता है और ये शिरोमणि अकाली दल का गढ़ रही है. कांग्रेस ने पिछले 50 सालों में केवल दो बार ये सीट जीती है- 1992 (तब नतीजों को संदिग्ध मानते हुए अकालियों ने बहिष्कार किया था, और दूसरा 2019 में.).
पंजाब की अन्य सभी सीटों की तुलना में खडूर साहिब में सिख धर्म-राजनीति का प्रभाव सबसे अधिक है.
तीसरा, अमृतपाल की जीत उनके समर्थकों के लिए भी सूकून देने वाली है,जो सिंह के जेल में जाने के बाद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे थे.
हालांकि, अमृतपाल के लिए ये जीत इतनी आसान नहीं रही. सिंह पिछले एक सालों से भी अधिक समय से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं और असम के डिब्रूगढ़ की जेल में कैद है. लेकिन सिंह के जेल में रहने के बावजूद उनके माता-पिता ने प्रचार की कमान संभाली और चुनाव में बेटे को बड़ी जीत दिलाकर ही दम लिया.
चुनाव आयोग की तरफ से जारी नतीजों को देखें तो कई बडे़ चेहरों को हार का सामना करना पड़ा है. इसमें तरणजीत सिंह संधू समुंदरी, परमपाल कौर सिद्धू, हंस राज हंस, सुशील कुमार रिंकू, रवनीत सिंह बिट्टू और परनीत कौर का नाम शामिल है.
कुल मिलाकर देखें तो पंजाब के नतीजें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल के लिए सबक हैं. कांग्रेस का किला तो बचा लेकिन वोट शेयर कम हुआ, आम आदमी पार्टी के दावों की हवा निकली तो बीजेपी और अकाली दल के लिए अपना अस्तित्व बचाने का खतरा मंडराने लगा है. वहीं, निर्दलीयों की जीत ने भी राजनीतिक दलों को कई संकेत दिए हैं. ऐसे में अगर ये दल भविष्य में अपनी रणनीति में बदलाव नहीं करते हैं तो आने वाले समय इनके लिए कठिन हो सकता है.
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