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लोकसभा चुनाव 2019 में एनडीए को सत्ता से हटाने के लिए मजबूत विपक्ष बनाने को लेकर कई कोशिशें हुईं. इस सब के बीच कभी माना गया कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की अगुवाई में क्षेत्रीय दलों का महागठबंधन एनडीए को चुनौती देगा तो कभी तीसरे मोर्चे के बनने की अटकलें भी लगीं. मगर विपक्षी दल जिस एकता की उम्मीद कर रहे थे, वो पूरी तरह से जमीन पर दिखाई नहीं दी.
ऐसे में 2019 का चुनावी मुकाबला कितना दिलचस्प होगा, इसकी एक झलक मार्च में आए सी वोटर के प्री-पोल सर्वे से दिखाई थी. इस सर्वे के मुताबिक, आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को 264 सीटें और कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए को 141 सीटें मिलेंगी. इससे दो बड़ी तस्वीरें साफ होती दिखाई दीं
इनमें से कुछ दल के पास नेशनल पार्टी का भी स्टेटस है, मगर एक राज्य पर मजबूत पकड़ होने के चलते उनकी बात क्षेत्रीय दलों के साथ की जा रही है.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से 34 पर जीत हासिल की थी. भले ही टीएमसी को टक्कर देने के लिए इस बार बीजेपी, लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस सामने हो, मगर इनमें से कोई भी पार्टी पश्चिम बंगाल में टीएमसी जितनी मजबूत नहीं दिखती. सी वोटर ने इस बार के लोकसभा चुनाव में भी टीएमसी के 34 सीटें जीतने का अनुमान लगाया गया है.
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 21 सीटों में से 20 पर जीत हासिल की थी. पटनायक ने आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर हाल ही में दावा किया कि इस चुनाव में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा, इसलिए सरकार बनाने में बीजेडी अहम भूमिका निभाएगी.
आंध्र प्रदेश के सीएम एन चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीती थीं. वहीं (2 जून 2014 को) आंध्र प्रदेश से अलग होकर नए राज्य बने तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस ने उस चुनाव में 11 सीटें जीती थीं.
बात टीडीपी की करें तो उसने तो तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, मगर उसे राज्य की 119 सीटों में से महज 2 सीटें ही हासिल हुई थीं. ऐसे में अब तक की स्थिति के हिसाब से माना जा रहा है कि आंध्र प्रदेश में मजबूत टीडीपी कांग्रेस के साथ गठबंधन किए बिना ही लोकसभा चुनाव लड़ेगी. वहीं टीआरएस भी बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेगी.
अखिलेश यादव की एसपी और मायावती की बीएसपी इस बार उत्तर प्रदेश में गठबंधन के तहत लड़ रही हैं. उत्तर प्रदेश वही राज्य है, जिसकी 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 2014 में 71 पर जीत हासिल की थी. मगर एसपी-बीएसपी के साथ आने से बीजेपी का उस तरह का प्रदर्शन दोहरा पाना लगभग नामुमकिन लग रहा है.
एसपी-बीएसपी गठबंधन से बीजेपी को होने वाले नुकसान की झलक 2018 में उत्तर प्रदेश की 3 लोकसभा सीटों (फूलपुर, गोरखपुर और कैराना) पर हुए उपचुनाव में देखने को मिली. 2014 के चुनाव में ये तीनों ही सीटें बीजेपी ने जीती थीं. मगर 2018 में ये सीटें एसपी-बीएसपी गठबंधन के खाते में चली गईं.
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