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उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी ने साथ आकर जिस तरह के प्रदर्शन की उम्मीद की थी, इन पार्टियों को उसमें नाकामी हाथ लगी है. गुरुवार को आए लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर दौड़ाएं तो साफ दिखता है कि यूपी में एसपी-बीएसपी के समीकरणों ने धरातल पर काम नहीं किया. ये दोनों पार्टियां राज्य में हो रहे बदलाव को समझने में सफल नहीं रहीं.
इसके अलावा कांग्रेस को शामिल ना करना भी कुछ हद तक इस गठबंधन के खिलाफ गया है. कांग्रेस के उम्मीदवार कई सीटों पर इस गठबंधन के लिए वोटकटवा साबित हुए हैं.
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एसपी को 5, बीएसपी को 10 और आरएलडी को एक भी सीट नहीं मिली है. वहीं जिस बीजेपी को इन पार्टियों के गठबंधन से बड़ा खतरा बताया जा रहा था, पिछले चुनाव की तुलना में उसकी 9 सीटें ही कम हुई हैं. बीजेपी को 2014 में यूपी की 71 सीटें मिली थीं, इस बार उसे 62 सीटें मिली हैं.
2018 के लोकसभा उपचुनावों में एसपी-बीएसपी ने साथ आकर बीजेपी के हाथ से जिन 3 सीटों (फूलपुर, गोरखपुर, कैराना) को छीना था, बीजेपी ने उन सीटों को भी एक बार फिर अपने नाम कर लिया है.
इन आंकड़ों से साबित हो गया है कि मायावती और अखिलेश यादव ने जिस मकसद से पुरानी दुश्मनी भुलाकर चुनावी गठबंधन किया, वे उसमें पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी प्रबंधन के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शख्सियत एसपी-बीएसपी गठजोड़ पर भारी पड़ी है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रेमशंकर मिश्रा ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को बताया, "विपक्ष 21वीं सदी में 90 के दशक की रणनीति पर चुनाव लड़ रहा था. वह जातीय अर्थमैटिक पर बिना कार्यकर्ताओं को विश्वास में लिए चुनावी मैदान में था. दरअसल एसपी-बीएसपी का गठबंधन दो बड़े नेताओं का गठबंधन था. इसमें कार्यकर्ता अछूते थे. दोनों ने एक-दूसरे के वोट बैंक ट्रांसफर की बातें तो कीं, लेकिन वह जमीन पर दिखाई नहीं दिया.''
यूपी में जिस तरह के नतीजे आए हैं, उससे लगता है कि बीजेपी एसपी-बीएसपी की जातीय गोलबंदी की रणनीति को कमजोर करने में सफल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ''मेरी जाति गरीब की जाति है.'' इस वाक्य से उन्होंने जाति समीकरणों को वर्ग समीकरण में बदलने की कोशिश की. वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने आक्रामक हिंदुत्व अभियान के जरिए भी जातीय गोलबंदी को कमजोर बनाने की कोशिश की थी. बीजेपी की ये रणनीतियां एसपी-बीएसपी की रणनीतियों पर भारी पड़ी हैं.
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Published: 24 May 2019,10:34 AM IST