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तेलंगाना में KCR का भरोसा हिला, कांग्रेस+TDP+CPI के पास ज्यादा वोट

2014 में अलग राज्य तेलंगाना का बनना इमोशनल फैक्टर था, इसलिए केसीआर के लिए जीत काफी आसान थी,

अरुण पांडेय
तेलंगाना चुनाव
Updated:
तेलंगाना में 7 दिसंबर को वोटिंग है और 11 दिसंबर को नतीजे के दिन राज्य में नई सरकार के साथ साथ उत्तम रेड्डी की दाढ़ी का भी फैसला होगा कि वो बचेगी या जाएगी.
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तेलंगाना में 7 दिसंबर को वोटिंग है और 11 दिसंबर को नतीजे के दिन राज्य में नई सरकार के साथ साथ उत्तम रेड्डी की दाढ़ी का भी फैसला होगा कि वो बचेगी या जाएगी.
(फोटो: Altered by quint)

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तेलंगाना में 7 दिसंबर की वोटिंग के लिए चुनाव प्रचार बुधवार को खत्म हो गया. विपक्ष के प्रजा कुटमी गठबंधन की वजह से तेलंगाना में KCR यानी के. चंद्रशेखर राव सरकार की वापसी कैटवॉक नहीं रह गई है. 2014 के वोट शेयर से लगता है कि कांग्रेस-टीडीपी-सीपीआई का प्रजा कुटमी गठबंधन TRS से ज्यादा वोट हासिल करने की स्थिति में है.

तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उत्तम रेड्डी को तो जीत का इतना भरोसा है कि उन्होंने ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस नहीं जीती, तो वो अपनी दाढ़ी छिला लेंगे.

तेलंगाना में 7 दिसंबर को वोटिंग है और 11 दिसंबर को नतीजे के दिन राज्य में नई सरकार के साथ साथ उत्तम रेड्डी की दाढ़ी का भी फैसला होगा कि वो बचेगी या जाएगी. प्रजा कुटमी नेताओं का दावा है कि तेलंगाना में टीआरएस से नाराजगी है और गठबंधन को 75 सीटें मिलेंगी.

KCR के पास 34% वोट, विरोध में 50%

कुछ दिन पहले तक के. चंद्रशेखर राव की जीत बेहद आसान मानी जा रही थी, लेकिन कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन ने वोटों के लिहाज से उनके सामने कड़ी चुनौती रख दी है. पिछली बार के चुनाव में उन्हें जो वोट मिले हैं, वो जीत की गारंटी नहीं देते. यही वजह है कि वो टेंशन में लग रहे हैं.

119 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 60 सदस्य चाहिए और TRS को 2014 में सिर्फ 63 सीटें मिली थीं. वोट मिले थे केवल 34.3 परसेंट.

प्रजा कुटमी गठबंधन का हिस्सा

  • कांग्रेस
  • तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी)
  • तेलंगाना जन समिति (टीजेएस)
  • सीपीआई
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TRS की मजबूती

KCR की पार्टी को 2014 में सिर्फ 63 सीटें मिली थीं, लेकिन 2018 आते-आते वो बढ़कर 90 हो गईं. 4 साल में कांग्रेस के 12, टीडीपी के 13, वाईएसआर कांग्रेस के 3 और बीएसपी के दो विधायक TRS में शामिल हो गए.

टीआरएस के सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस और टीडीपी के जो विधायक चार साल में टीआरएस में शामिल हुए हैं, उनकी अपनी लोकप्रियता है, इसलिए विपक्ष कागज में वोट जोड़कर टीआरएस से आगे निकल जाना उनकी खुशफहमी है.

TDP के मजबूत गढ़

तेलंगाना के कई इलाके ऐसे हैं, जहां आंध्र प्रदेश वाले इलाके के लोग बसे हुए हैं. ऐसी जगह TDP की अच्छी लोकप्रियता है. इसी तरह कांग्रेस का अपना वोटबैंक है, जो कैंडिडेट के बजाए पार्टी के प्रति वफादार है.

जानकारों के मुताबिक, केसीआर को थोड़ा-बहुत नहीं, अपना वोट शेयर 6 परसेंट से ज्यादा बढ़ाना होगा, वरना सरकार में उनकी वापसी खतरे में पड़ सकती है.

तेलंगाना फैक्टर अब नहीं चलेगा

2014 में अलग राज्य तेलंगाना का बनना इमोशनल फैक्टर था, इसलिए केसीआर के लिए जीत काफी आसान थी, लेकिन अब वो फैक्टर नहीं चलेगा. तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने इस बार नारा बदल दिया है. तेलंगाना अस्मिता और आंध्र विरोधी एजेंडा के बजाए चंद्रबाबू नायडू विरोधी एजेंडा हो गया है.

कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन शहरों में तो अच्छा प्रदर्शन करेगा, लेकिन राजनीतिक पंडितों के मुताबिक गांवों में टीडीपी और कांग्रेस के बीच गठबंधन को पचाने में दिक्कत होगी. TRS लोगों को डरा रही है कि कांग्रेस के जरिए चंद्रबाबू नायडू तेलंगाना में रिमोट कंट्रोल के जरिए काबिज होना चाहते हैं. कांग्रेस के लिए रेड्डी समुदाय का समर्थन पाना चुनौती होगा, क्योंकि परंपरागत तौर पर रेड्डी टीडीपी के पक्ष में वोट नहीं देते.

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Published: 06 Dec 2018,07:27 AM IST

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