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तेलंगाना चुनाव: गजवेल और कामारेड्डी, KCR दोनों सीटों से इस बार क्यों चुनाव लड़ रहे?

Telangana Polls: KCR 9 नवंबर को न केवल अपने गृह क्षेत्र गजवेल, बल्कि कामारेड्डी से भी अपना नामांकन दाखिल करने जा रहे हैं.

मीनाक्षी शशि कुमार
तेलंगाना चुनाव
Published:
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तेलंगाना चुनाव: KCR गजवेल और कामारेड्डी दोनों जगह से क्यों चुनाव लड़ रहे हैं?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने तेलंगाना विधानसभा चुनावों (Telangana Assembly Elections) में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) से काफी पहले अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी थी और अब राज्य में अपना प्रचार अभियान शुरू कर दिया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में कई लोग BRS अध्यक्ष को लेकर हैरान हैं. मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव इस बार दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ना चाहते हैं.

KCR 9 नवंबर को न केवल अपने 'होम टर्फ' गजवेल विधानसभा क्षेत्र (जहां से वे अभी विधायक) से अपना नामांकन दाखिल करने के लिए तैयार हैं, बल्कि हफ्ते की शुरुआत में पार्टी के एक बयान में कहा गया था कि वे कामारेड्डी से भी चुनाव लड़ेगे.

कामारेड्डी विधानसभा क्षेत्र इसी नाम के नए जिले के अंतर्गत आता है. बीआरएस के बयान में कहा गया है कि नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद, KCR इस खंड में एक सार्वजनिक सभा को भी संबोधित करेंगे.

चेवेल्ला से बीआरएस सांसद रंजीत रेड्डी ने द क्विंट से बातचीत में कहा, "कोई भी पूरी तरह से नहीं जानता कि उन्होंने कामारेड्डी को क्यों चुना, लेकिन वो हमारे नेता हैं और हम जानते हैं कि वो पार्टी की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए ऐसा कर रहे हैं."

हाल ही में बीआरएस की एक चुनाव रैली के दौरान, तेलंगाना के IT मंत्री और केसीआर के बेटे केटी रामाराव ने कहा था कि उनके पिता ने कामारेड्डी को चुना "क्योंकि यहां के लोगों के साथ उनका अटूट बंधन है."

महाराष्ट्र पर नजर?

द क्विंट से बात करते हुए, राजनीतिक टिप्पणीकार आर पृथ्वी राज ने कहा कि केसीआर के फैसले को लेकर कई अटकलें हैं और इसका निर्वाचन क्षेत्र के स्थान से कुछ लेना-देना जरूर हो सकता है.

कामारेड्डी जिला तेलंगाना के उत्तरी भाग में स्थित है और इसकी सीमा महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों से लगती है. उन्होंने कहा, "ये खास तौर पर दिलचस्प है कि केसीआर ने कामारेड्डी और गजवेल निर्वाचन क्षेत्रों को चुना, जो दोनों राज्य के उत्तरी हिस्से में हैं."

गजवेल विधानसभा क्षेत्र सिद्दीपेट जिले में आता है, जिसकी सीमा कामारेड्डी से लगती है.

"बीआरएस (पूर्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति) अब एक राष्ट्रीय पार्टी है. ये महाराष्ट्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रही है और कामारेड्डी महाराष्ट्र की सीमा से बहुत दूर नहीं है. केसीआर का कामारेड्डी से चुनाव लड़ने का मतलब पार्टी के लिए पूरे क्षेत्र में फायदेमंद हो सकता है."
आर पृथ्वी राज

एक वरिष्ठ बीआरएस नेता और तेलंगाना सरकार के अधिकारी ने भी यही बात कही. नेता ने द क्विंट को बताया, "कामारेड्डी संभवतः उनके अगले गंतव्य, जो कि महाराष्ट्र है, के लिए एक करीबी रास्ता है."

बीआरएस महाराष्ट्र आउटरीच के बीच में है और 'किसान-हितैषी' सरकार होने की छवि को आगे बढ़ाने की उम्मीद में उसने पिछले कुछ महीनों में राज्य में कई रैलियां आयोजित की हैं. महाराष्ट्र में पार्टी की पिच में रायथु बंधु और रायथु भीमा जैसी योजनाएं शामिल हैं, जो तेलंगाना में चालू हैं.

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'निजामाबाद पर पकड़ मजबूत'

कामारेड्डी 11 अक्टूबर 2016 को बनाए गए 21 नए 'केसीआर जिलों' में से एक है और इन नए जिलों ने 2018 में पार्टी की प्रचंड जीत में योगदान दिया होगा.

एक नए जिले की स्थापना से एक विशिष्ट क्षेत्र को कई फायदे मिलते हैं, जिसमें अतिरिक्त सुविधाओं की शुरूआत और जिला-स्तरीय प्रशासन तक बेहतर पहुंच शामिल है. ये एक ऐसा कदम भी है जिसका इस्तेमाल अक्सर सत्ता में मौजूद पार्टियां राजनीतिक और चुनावी समर्थन हासिल करने के लिए करती हैं.

जबकि कामारेड्डी विधानसभा क्षेत्र तकनीकी रूप से जहीराबाद संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है, तेलंगाना राज्य के गठन के दो साल बाद जिले को निजामाबाद जिले से विभाजित किया गया था.

पृथ्वी राज ने अनुमान लगाया कि केसीआर के फैसले का कामारेड्डी की निजामाबाद जिले से निकटता से भी कुछ लेना-देना हो सकता है.

"कामारेड्डी और निजामाबाद मिले हुए हैं और निजामाबाद बीआरएस के लिए महत्वपूर्ण क्यों है? 2019 के लोकसभा चुनावों में, केसीआर की बेटी के कविता को बीजेपी के धर्मपुरी अरविंद ने निजामाबाद सांसद के रूप में हराया था."
आर पृथ्वी राज

पिछले लोकसभा चुनावों में कविता की अभूतपूर्व हार का कारण तेलंगाना में राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड स्थापित करने में उनकी कथित विफलता थी. राज्य के हल्दी किसान, खासकर निजामाबाद इलाके में सालों से इसकी मांग कर रहे हैं.

दरअसल, 2019 में कई हल्दी किसानों ने अपनी मांग मनवाने के लिए एक आंदोलन के तहत निजामाबाद से सामूहिक रूप से नामांकन दाखिल किया था.

विश्लेषक ने कहा, "लेकिन अब, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड को मंजूरी दे दी है, और इससे क्षेत्र में बीजेपी को मदद मिल सकती है. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि बोर्ड निजामाबाद या तेलंगाना में स्थापित किया जाएगा या नहीं."

उन्होंने कहा कि किसी भी तरह से, केसीआर के इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने से न केवल विधानसभा चुनावों में, बल्कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में भी बीआरएस की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.

'सुरक्षित सीट चुन रहे हैं': कांग्रेस

जब केसीआर ने पहले घोषणा की कि वह कामारेड्डी से भी चुनाव लड़ेंगे, तो उन्होंने इसके पीछे वजह बताई थी कि उन्हें ऐसा करने के लिए "निर्वाचन क्षेत्र के नेताओं ने आमंत्रित किया था".

कामारेड्डी में मौजूदा बीआरएस विधायक, गम्पा गोवर्धन, पांच बार विधायक हैं, जिन्होंने 2012, 2014 और 2018 में पार्टी के लिए यहां से जीत हासिल की थी. 2014 के विधानसभा चुनावों में, उन्होंने कांग्रेस के पूर्व विधायक मोहम्मद अली शब्बीर को 8,683 वोटों के अंतर से हराया था. हालांकि, 2018 में शब्बीर के खिलाफ उनके अंतर में काफी गिरावट आई - 4,557 वोट.

"कुछ अटकलें हैं कि गंपा गोवर्धन के मार्जिन में गिरावट के चलते केसीआर कामारेड्डी से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उस स्थिति में और भी विधायक हैं, तो उन्होंने गोवर्धन को क्यों चुना? हम सच में नहीं कह सकते."
आर पृथ्वी राज

इस बीच, कांग्रेस का दावा है कि केसीआर ने दो निर्वाचन क्षेत्रों को चुना क्योंकि उन्हें भरोसा नहीं था कि वे अपने गढ़ गजवेल में जीत हासिल कर पाएंगे या नहीं. 2018 के चुनावों में, केसीआर ने गजवेल में कांग्रेस के वंतेरु प्रताप रेड्डी के खिलाफ 58,290 वोटों से जीत हासिल की थी.

मुख्यमंत्री पर "कामारेड्डी भागने" का आरोप लगाते हुए, तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने पहले कहा था, "अगर केसीआर भागना चाहते थे, तो सिद्दीपेट और सिरसिला जा सकते थे, लेकिन कामारेड्डी जाना, जहां शब्बीर अली जैसा अल्पसंख्यक नेता है, यह अल्पसंख्यकों का अपमान है.”

कामारेड्डी में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक आबादी है जो जिले की कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है.

बीजेपी इस बार गजवेल (साथ ही हुजूराबाद) से पूर्व TRS मंत्री एटाला राजेंदर को मैदान में उतार रही है. उसका यह भी दावा है कि केसीआर ने कामारेड्डी को चुना क्योंकि वह “एटाला का सामना करने से डरते हैं.”

लेकिन ये पहली बार नहीं है कि केसीआर एक साथ दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं. 2014 में, उन्होंने विधानसभा चुनाव में गजवेल से और लोकसभा चुनाव में मेडक से चुनाव लड़ा था. उन्होंने दोनों सीटें जीत लीं, लेकिन मेडक संसदीय सीट छोड़ दी थी.

द क्विंट से बात करते हुए, रंजीत रेड्डी ने कहा, "फिलहाल, बीआरएस एक राष्ट्रीय पार्टी है, इसलिए वो अगले साल संसदीय चुनाव में एक सांसद के रूप में चुनाव लड़ना चाह सकते हैं. योजनाएं बदलती रहेंगी, और विधानसभा चुनाव के बाद के तीन महीने महत्वपूर्ण होंगे.”

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