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उत्तर प्रदेश (UP Elections) का सियासी पारा सर्दियों के इस मौसम में गिरने की बजाय लगातार ऊपर चढ़ता नजर आ रहा है. क्योंकि अगले कुछ महीने में यहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने एक और पार्टी से गठबंधन का ऐलान किया है. इस बार उनके साथ तस्वीर में कोई और नहीं, बल्कि खुद उनके चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) नजर आए, जो कुछ वक्त पहले बगावत पर उतर आए थे.
अखिलेश यादव यूं तो तमाम छोटे दलों को अपने साथ लेकर चलने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन चाचा शिवपाल यादव की पार्टी- प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को भी अपने पाले में करने के कई मायने हैं. इसका सीधा असर विधानसभा चुनावों के नतीजों में दिख सकता है. आइए समझते हैं कि शिवपाल की यादव परिवार में वापसी के आखिर क्या मायने हैं और इसका कितना असर चुनावों में देखने को मिल सकता है.
शिवपाल यादव मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और अखिलेश यादव के चाचा हैं. लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच तनाव बढ़ना शुरू हुआ. दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी भी की. इसके बाद 2018 में शिवपाल यादव ने अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने का ऐलान कर दिया. परिवार में पड़ी इस फूट की चर्चा हर तरफ रही.
लेकिन इस फूट का असली असर दिखना अभी बाकी था. ठीक एक साल बाद 2019 में लोकसभा चुनाव हुए. जिसमें शिवपाल यादव ने कई अहम सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए. जिन्होंने सीधे समाजवादी पार्टी के वोट काटे और कुछ सीटों पर जीत बीजेपी के पाले में डाल दी. यानी यादव परिवार में पड़ी इस फूट का सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को हुआ.
2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अक्षय यादव फिरोजाबाद लोकसभा सीट हार गए. इस हार में शिवपाल यादव सबसे बड़े विलेन के तौर पर सामने आए. बीजेपी उम्मीदवार ने यहां 28 हजार वोटों से जीत दर्ज की, जबकि शिवपाल यादव को 90 हजार वोट मिले. यानी अगर शिवपाल इस सीट से नहीं लड़ते तो ये समाजवादी पार्टी की झोली में जाती.
फिरोजाबाद के अलावा शिवपाल यादव ने कई और सीटों पर भी अखिलेश यादव की पार्टी को नुकसान पहुंचाया था. जिनमें सुल्तानपुर, उन्नाव, मोहनलालगंज और बांदा शामिल हैं.
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव एक बार फिर यूपी की सत्ता में काबिज होने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए अबकी बार उन्होंने किसी बड़े दल की बजाय छोटे दलों को साथ लेने की रणनीति अपनाई है. क्योंकि अखिलेश जानते हैं कि इस बार यादव-मुस्लिम वोट से ही उनका काम नहीं होने वाला है. इसीलिए उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे दलों के साथ गठबंधन किया है. साथ ही आम आदमी पार्टी से भी बातचीत लगभग तय मानी जा रही है.
शिवपाल यादव की "घर वापसी" के बाद मैनपुरी और इटावा जिले में समाजवादी पार्टी के वोट बंटने से बच गए हैं. यहां पार्टी को अब गठबंधन में कई सीटों पर फायदा मिल सकता है. साथ ही एक और खतरा टल गया है, जिसमें टिकट नहीं मिलने पर समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल यादव की पार्टी से चुनाव लड़ने जा सकते थे.
पिछले काफी दिनों से अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच गठबंधन को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं. बताया जा रहा था कि शिवपाल यादव ने कुछ ऐसी शर्तें रखीं हैं, जिससे बात नहीं बन पा रही. जिसमें 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की भी एक शर्त थी. लेकिन अब माना जा रहा है कि अखिलेश यादव से मुलाकात में ये पेंच भी सुलझ चुका है और सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो चुका है. माना जा रहा है कि शिवपाल यादव को उनकी सीट जसवंत नगर दी जा सकती है. जिसमें यादव परिवार का गांव सैफई भी शामिल है. इस सीट पर अभी तक यादव परिवार का ही दबदबा रहा है.
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