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उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 (UP Election 2022) में इस बार गाजीपुर (Ghazipur) जिले की सभी सातों विधानसभाओं में आखिरी चरण यानी सातवें फेज मेंं 7 मार्च को चुनाव हो रहे हैं. इस जिले में गाजीपुर सदर, सैदपुर, जखनियां, मुहम्मदाबाद, जहूराबाद, जंगीपुर, और जमानिया विधानसभा सीटें हैं. गाजीपुर जिले में पिछला विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए अच्छा रहा था. जिले की सात में तीन पर बीजेपी और दो विधानसभा क्षेत्र जखनियां व जहूराबाद में उसकी गठबंधन सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की जीत हुई थी, जो इस बार पाला बदलकर एसपी के साथ खड़ी है. यह जिला यूपी की राजनीति में काफी रोचक मुकाबलों का गवाह रहा है और यहां के चुनाव काफी चर्चित होते हैं. आइए देखते हैं कि इस जिले में यूपी चुनाव 2022 में कैसी राजनीतिक स्थिति बन रही है.
गाजीपुर सदर विधानसभा सीट जिले की मुख्यालय की सीट है. बाहुबली मुख्तार अंसारी ने यहीं से अपना सियासी सफर शुरू किया था. 1991 में मुख्तार अंसारी ने गाजीपुर सदर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पहला चुनाव लड़ा था. इस सीट पर करीब साढ़े तीन लाख के आसपास वोटर हैं. यहां अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाताओं के वोट काफी प्रभावी हैं. इस सीट से 1996 में बीएसपी के उमाशंकर कुशवाहा, 2002 में एसपी की शादाब फातिमा, 2007 में बीएसपी के राजकुमार गौतम और 2012 में एसपी के विजय मिश्रा, 2017 में बीजेपी की डॉक्टर संगीता बलवंत बिंद ने विधानसभा चुनाव जीते थे. पिछला चुनाव जीतीं डॉक्टर संगीता बलवंत को योगी मंत्रिमंडल में बतौर सहकारिता राज्यमंत्री शामिल भी किया गया था.
इस बार भी संगीता बलवंत को ही बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है. उनके मुकाबले में एसपी के जयकिशन साहू हैं, वहीं बीएसपी के राजकुमार हैं. लौटन राम निषाद यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. आम आदमी पार्टी और ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी भी मुकाबले में हैं. यहां पर बिंद समाज के मतदाता काफी संख्या में हैं और संगीता भी बिंद समाज से ही हैं. बिंद वोट के अलावा यहां पर राजभर और महादलित वोट बैंक भी काफी तादाद में है जिससे ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं का यहां प्रभाव है.
इस सीट के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा पांच बार(1952,1957,1962,1969, 1984 में) कांग्रेस पार्टी जीती है. तीन बार बीएसपी (1989,1991 और 2002 में) को विजयश्री मिली है. तीन ही बार एसपी (1996, 2007 और 2012 ) जीतने में सफल रही. बीजेपी काे दो बार (1993 और 2017) में जीत नसीब हुई. इसके अलावा यहां से एक बार लोकदल (1980), एक बार CPI (1967) एक बार बीकेडी.(1974) और एक बार मुस्लिम मजलिस (1977) के उम्मीदवारों को भी विधायक बनने का मौका मिला है. यहां पर मतदाता पिछले चार चुनावों से अलग-अलग पार्टी के प्रत्याशियों को ही जिताते रहे हैं.
गाजीपुर जिले की मुस्लिम बाहुल्य सीट जमानियां में भी पार्टियों में कांटे की फाइट है. यहां बीजेपी की मौजूदा विधायक सुनीता सिंह ही इस बार भी बीजेपी उम्मीदवार हैं और एसपी की ओर से ओमप्रकाश सिंह उतरे हैं. बीएसपी की ओर से परवेज खान मैदान में हैं. इस सीट पर मुस्लिम वोट बैंक हमेशा ही निर्णायक साबित होता है, ऐसे में BSP के चांसेस भी कमजोर नहीं हैं. 2017 में समीकरण कुछ अलग सा था तब मुस्लिम वोट बैंक वाली इस सीट पर भी बीजेपी अपनी भगवा छवि के साथ ही जीत हासिल कर ले गई थी. यहां रोचक मुकाबला हुआ था. बीजेपी की सुनीता सिंह 76,823 मत पाकर जीत गई थीं. वर्तमान में घोसी से सांसद हैं और दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद BSP के अतुल राय को उन्होंने हराया था. वह 67,559 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. एसपी तो यहां तीसरे स्थान पर चली गई थीं. अखिलेश सरकार में तत्कालीन पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे. उन चुनाव में अखिलेश सरकार के 31 मंत्री चुनाव हार गए थे.
मोहम्मदाबाद सीट मुख्तार अंसारी और उसके कुनबे के रुतबे का प्रतीक बन चुकी है. इसी सीट से मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल छह बार विधायक रहे हैं. इसी सीट से बीजेपी के तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई थी. उस हत्याकांड में मुख्तार अंसारी का नाम उछला था. इस बार भी मुख्तार का परिवार चुनावों में है. अखिलेश यादव की एसपी ने मुख्तार अंसारी के भतीजे शोएब अंसारी को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है. मुख्तार के परिवार से टक्कर लेने के लिए बीजेपी की अलका राय मैदान में हैं जो मौजूदा विधायक हैं. दूसरी बार फिर से बीजेपी की उम्मीदवार हैं.
जंगीपुर सीट परिसीमन के बाद 2012 में अस्तित्व में आई. उसके बाद से यहां एसपी ही जीतती आई है. पहले विधायक SP के कैलाश यादव बने और दूसरी बार यानी पिछली बार 2017 में एसपी के वीरेंद्र यादव यहां जीते थे. इस बार भी अखिलेश ने वीरेंद्र यादव पर ही दांव लगाया है. बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर रामनरेश कुशवाहा मैदान में हैं, वहीं BSP ने इस बार सवर्ण राजपूत समाज के मुकेश सिंह को टिकट दिया है. यहां पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं. एसपी उम्मीदवार की दावेदारी इसीलिए मजबूत है, क्योंकि यहां पर यादव मतदाता काफी तादाद में हैं और वीरेंद्र यादव भी यादव समाज से आते हैं. इसके अलावा जंगीपुर सीट पर राजभर समाज का वोट बैंक भी काफी संख्या में है.
सैदपुर विधानसभा सीट सुरक्षित सीट है. 2008 के परिसीमन के बाद से ही यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बीजेपी के बड़े नेता कलराज मिश्र से इस सीट की पहचान है. यहां ज्यादातर बीजेपी, एसपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबले ही होते आए हैं. पिछले 10 साल से यहां एसपी ही विधानसभा चुनाव जीती है. बीजेपी आखिरी बार 1996 में जीती थी. पिछले दोनों चुनावों में यहां से एसपी के सुभाष पासी ने जीत दर्ज की थी पर अब एसपी को झटका लगने वाली बात यह है कि सुभाष बीजेपी के पाले में पहुंच गए हैं. बीजेपी ने इसे अपनी सहयोगी पार्टी निषाद पार्टी के कोटे में दिया है तो निषाद पार्टी से वर्तमान विधायक सुभाष पासी बीजेपी गठबंधन की ओर से इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. एसपी की ओर से अंकित भारतीय प्रत्याशी हैं. BSP ने डॉ. विनोद राम को अपना उम्मीदवार बनाया है. एसपी और बीएसपी दोनों के उम्मीदवार ही यहां के मतदाताओं के लिए नया चेहरा हैं.
गाजीपुर जिले की एक अन्य सीट जखनिया भी आरक्षित सीट है. इस सीट पर राजभर समाज का वोट बैंक अच्छी खासी तादाद में है और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी की पकड़ मजबूत होती जा रही है. इसी वजह से पिछले चुनाव में राजभर की पार्टी के प्रत्याशी त्रिवेणी राम यहां से चुनाव जीते थे. इस बार SP और सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी के गठबंधन ने यहां से बेदी राम को उम्मीदवार बनाया है. बीएसपी की ओर से विजय कुमार चुनाव लड़ रहे हैं. विधानसभा सीट के वोट गणित की बात करें तो यहां पर मुसहर जाति जिसे महादलित श्रेणी में रखा जाता है, उनके वोट बैंक अच्छी खासी संख्या में हैं.
जहूराबाद सीट खुद ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) चुनाव लड़ रहे हैं, जो अपनी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के प्रमुख हैं. उन्होंने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया है. जहूराबाद सीट पर मामला त्रिकोणीय है. यहां पर ओपी राजभर-अखिलेश के गठबंधन, मायावती की BSP और BJP के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है.
उनके मुकाबले बीजेपी ने एक और राजभर प्रत्याशी कालीचरण राजभर को उतारा है. वह यहां से दो बार एमएलए रह चुके हैं. मायावती की बीएसपी ने सैयदा शादाब फातिमा को उतारा है. वह SP सरकार में पहले मंत्री रह चुकी हैं और खेमा बदलकर अब हाथी के पाले में आ गई हैं. वह यहां से 2012 का चुनाव SP के टिकट पर जीत चुकी हैं. यहां के तीनों प्रत्याशियों में एक मजेदार संयोग यह है कि तीनों ही अपने अपने पहले वाले खेमे को छोड़कर दूसरे बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं.
जहूराबाद में राजभर समाज के 65 हजार के आसपास वोट हैं. ओमप्रकाश राजभर के अलावा कालीचरण राजभर भी इस वोट बैंक में खासी दखल रखते हैं. राजभर समाज के अलावा इस विधानसभा में मुसलमान, यादव, और चौहान समाज के भी काफी वोट हैं. चौहान व अन्य पिछड़ा वर्ग के 50-55 हजार के बीच वोट हैं, वहीं 50 हजार तक सवर्ण वोट बैंक भी इस सीट पर है जिनमें ठाकुर, वैश्य और ब्राह्मणों के वोट आते हैं. यहां से जीतने इन जातियों के वोट में सेंध लगाना सबसे जरूरी होता है.
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