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उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) के नतीजे पश्चिमी यूपी के जाट बाहुल्य जिलों में बीजेपी को झटका दे गए हैं. वेस्ट यूपी की राजनैतिक राजधानी कहे जाने वाले मेरठ में SP गठबंधन ने BJP को तगड़ी शिकस्त दी है. 2017 के चुनाव में मेरठ की सात सीटों में से 6 पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी गठबंधन यहां 4 सीटें पाने में कामयाब रहा. बीजेपी की प्रतिष्ठा से जुड़ी मेरठ की सरधना विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी ने 18 हजार वोटों के अंतर से हथियाई है.
कोरोना प्रॉटोकाल की वजह से यहां चुनाव के दौरान बड़ी रैलियां नही हो सकीं, लेकिन चुनाव घोषणा से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पश्चिम की इस जमीन को 1200 करोड़ के खेल विश्वविद्यालय के प्रोजेक्ट से नवाजा था लेकिन किसान आंदोलन से तप रहे इस इलाके में पीएम का जादू बेअसर रहा. आंकड़ो के जरिये समझते है कि मेरठ की सियासी जमीन पर किस तरह का फेरबदल हुआ है.
जीते- रफीक अंसारी (SP) वोट- 106395
दूसरे - कमलदत्त शर्मा (बीजेपी) वोट- 80330
तीसरे - रंजन शर्मा (कांग्रेस) - वोट 5333
चौथे- दिलशाद (बसपा) - वोट 4939
जीते- डॉ0 सोमेन्द्र सिंह तौमर (बीजेपी) - वोट 129667
दूसरे - मुहम्मद आदिल चौधरी (SP) - वोट 1,21725
तीसरे - दिलशाद अली (BSP) - वोट 39857
चौथे- नफीस (कांग्रेस) - वोट 2346
जीते- अमित अग्रवाल (बीजेपी) - वोट 1,62032
दूसरे - मनीषा अहलावत (राष्ट्रीय लोकदल) - वोट 43960
तीसरे - अमित शर्मा (BSP) - वोट 28519
चौथे- अवनीश काजला (कांग्रेस) - वोट 5096
जीते- शाहिद मंजूर (सपा) - वोट 107104
दूसरे - सत्यवीर त्यागी (बीजेपी) - वोट 104924
तीसरे - कुशलपाल मावी (बसपा) - वोट 31213
चौथे- बबिता गुर्जर (कांग्रेस) - वोट 1589
जीते- अतुल प्रधान (SP) - वोट 118573
दूसरे - संगीत सिंह सोम (बीजेपी) - वोट 100373
तीसरे - संजीव धामा (BSP) - वोट 18140
चौथे- सैय्यद रेहानुद्दीन (कांग्रेस) - वोट 2144
जीते- गुलाम मुहम्मद (राष्ट्रीय लोकदल) - वोट 101749
दूसरे - मनिन्दर पाल (बीजेपी) - वोट 92567
तीसरे - मुकर्रम अली उर्फ नन्हें मियां (बसपा) - वोट 29958
चौथे- जगदीश प्रसाद (कांग्रेस) - वोट 1577
जीते- दिनेश खटीक (बीजेपी) - वोट 107587
दूसरे - योगेश वर्मा (सपा) - वोट 100275
तीसरे- संजीव कुमार जाटव (बसपा) - वोट 14240
चौथे- विनोद कुमार (AIMIM) - वोट 4290
चलिए एक नजर डालते हैं इस बात पर कि जिले में BJP क्यों रही पीछे
मेरठ में जाट बाहुल्य इलाकों के नतीजे देखें तो बीजेपी यहां पिछड़ी भी और हारी भी. 2017 के मुकाबले बीजेपी को जाटों ने कम वोट दिया. चुनाव प्रचार के दौरान भी बीजेपी के प्रत्याशियों को विरोध खुलकर हुआ था. ये वह इलाके है जहां किसानों ने दिल्ली की सीमा पर 13 महीने चले कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
BSP के प्रत्याशियों की धमक इस बार चुनाव नतीजों में दिखाई नहीं दी. हाईकमान की तरह BSP के प्रत्याशियों ने इस बार चुनाव जीतने जैसा न तो प्रचार किया और न प्रदर्शन. पहले चरण के मतदान वाले इस क्षेत्र में मायावती की कोई रैली नही हुई. BSP का संगठन भी चुनाव के दौरान ठंडे बस्ते में पड़ा रहा.
पिछले दो बार से सरधना से चुनाव हार रहे SP के अतुल प्रधान का चुनावी समीकरण इस बार प्रत्याशियों की घोषणा के साथ ही मजबूत हो गया था. BSP ने इस सीट पर अबकी बार जाट प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा था और उसकी घोषणा भी चुनाव के ऐलान से काफी पहले कर दी थी. किसान आंदोलन से तप रही इस सीट पर सपा को रालोद का साथ मिला और जाट वोट अतुल प्रधान के साथ खड़ा हो गया. 5 सालों तक जमीनी काम करने वाले अतुल प्रधान को दलित और अति पिछड़े वर्गो का भी साथ मिला. इसी वजह से संगीत सोम इस सीट पर हर बार की तरह ध्रुवीकरण नहीं कर पाये.
सिवाल खास सीट पर इस बार मुस्लिम और जाट बिरादरी ने मिलकर रालोद प्रत्याशी को जीत दिलाई. सपा के पूर्व विधायक गुलाम मुहम्मद को गठबंधन ने रणनीति के तहत रालोद के चुनाव चिह्न से मैदान में उतारा था. शुरूआत में गुलाम मुहम्मद के टिकट का जाटों ने विरोध किया लेकिन जयंत चौधरी से हुई वार्ता के बाद गठबंधन से जुड़ा वोट गुलाम मुहम्मद के साथ खड़ा दिखाई दिया. मुजफ्फरनगर से सटे इस इलाके में जाट निर्णायक भूमिका में थे और उसका असर नतीजों पर भी दिखाई दिया.
मेरठ दक्षिण सीट पर BSP प्रत्याशी ने बीजेपी को जिताने एक बार फिर से अहम भूमिका निभाई है. मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने आदिल चौधरी को प्रत्याशी बनाया था. लेकिन बसपा ने भी इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा किया. BSP के दिलशाद अली ने दलित और मुस्लिम वोटों में सैध लगाई और नतीजा यह रहा कि मुसलमानों के एकतरफा होने के बाबजूद इस सीट पर करीब 8 हजार वोटों से सपा चुनाव हार गयी. 2017 के चुनाव में BSP इस सीट पर दूसरे नंबर रही थी.
कहा जाता है कि हस्तिनापुर सीट जिस पार्टी के कब्जे में रहती है यूपी की सत्ता पर वह पार्टी काबिज होती है. यह मिथक इस चुनाव में भी बना रहा. तमाम विरोध और कांटे की टक्कर के बाबजूद यूपी सरकार के राज्यमंत्री और विधायक दिनेश खटीक चुनाव जीत गये. उन्होने SP के योगेश वर्मा को गुर्जर-दलित बाहुल्य इस सीट पर पराजित किया है. योगेश वर्मा पश्चिमी यूपी में BSP के बड़े नेता रहे है और BSP से निष्कासन के बाद उन्होने SP का दामन थाम लिया था.
केन्द्र सरकार ने किसान आंदोलन की आग ठंडी करने के लिए सही वक्त पर फैसला किया. पश्चिमी यूपी के जिन जिलों के किसानों ने इस आंदोलन में खुलकर हिस्सा लिया, उन्होने खुलकर बीजेपी के खिलाफ वोट किया और वह नतीजों में दिखा भी. लेकिन बाकी किसानों को साधने में बीजेपी कामयाब रही. इसका असर लखीमपुर खीरी के नतीजे है. बसपा के कमजोर होने का फायदा भी बीजेपी को मिला है और उसका कोर वोट बीजेपी की ओर खिसका भी है. इस वर्ग को योजनाओं के लाभ के अलावा बसपा के विकल्प के रूप में बीजेपी दिख रही है. 2024 के चुनाव में इस वोट को लेकर घमासान दिखाई देगा. अगर किसानों को न मनाया गया तो मेरठ में सपा-रालोद की जीत बीजेपी के लिए भविष्य में काफी नुकसानदायक साबित होगी.
मेरठ कैंट सीट करीब दो दशकों से बीजेपी की परम्परागत मानी जाती है. इस सीट को अपवाद मान लें तो बाकी 2 सीटों चुनाव जीतने के लिए बीजेपी को काफी संघर्ष करना पड़ा. मेरठ शहर, सिवालखास, किठौर और सरधना की सीटें SP-RLD गठबंधन ने जीतीं. इन सीटों पर न तो बीजेपी सरकार की योजनाओं का असर दिखा और न ही योगी और मोदी का. चुनाव से ठीक पहले नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने मेरठ को 1200 करोड़ का खेल विश्वविद्यालय भी दिया और खुद दोनों नेता एक विशाल रैली का आयोजन में शिरकत करने आये थे. मुजफ्फरनगर से सटे मेरठ में किसान आंदोलन का गुस्सा देखने को मिला और SP-RLD गठबंधन को किसानों ने 4 सीटें दे दी. दरअसल, यह इलाका बीजेपी का गढ़ माना जाता है. 2014 से लेकर 2017 और 2019 में बीजेपी ने यहां जाटों के वोटों के सहारे आसानी से क्लीन स्वीप किया था.
इस इलाके में एनआरसी हिंसा का असर भी मुस्लिम वोटरों के बीच बरकरार था. इस हिंसा के दौरान मुस्लिमों पर फर्जी मुकदमें थोपें गये और 6 लोगों की मौत के बाबजूद पुलिस ने पीड़ितों की शिकायत पर कोई कार्रवाई नही की. इस घटना का नतीजा यह रहा कि शहर की कई सीटों पर मुस्लिम SP-RLD के साथ एकजुट खड़े नजर आये.
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