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UP: 3 दिन में 4 नेताओं का दलबदल, सहारनपुर में कैसे बदल रहे चुनावी समीकरण?

2000 के दशक में BSP सहारनपुर में प्रमुख पार्टी थी, लेकिन अब इमरान मसूद की एंट्री ने SP को सबसे आगे खड़ा कर दिया है

आदित्य मेनन
उत्तर प्रदेश चुनाव
Published:
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UP: 3 दिन में 4 नेताओं का दलबदल, सहारनपुर में कैसे बदल रहे चुनावी समीकरण?

(फोटो- अलटर्ड बाई क्विंट)

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सबसे उत्तरी जिले, सहारनपुर (Saharanpur) में पिछले तीन दिनों के अंदर एक बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई है जिसमें जिले के चार बड़े नेताओं ने अपना राजनीतिक पाला बदल लिया है. 10 जनवरी को गंगोह से राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के टिकट उम्मीदवार नौमान मसूद बहुजन समाज पार्टी (BSP) में चले गए.

और फिर 12 जनवरी को कांग्रेस का तीन बड़े नेताओं ने दामन छोड़ दिया.

  • पूर्व विधायक और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव इमरान मसूद समाजवादी पार्टी (SP) में शामिल हुए

  • सहारनपुर से कांग्रेस विधायक मसूद अख्तर SP में शामिल

  • बेहट से कांग्रेस विधायक नरेश सैनी बीजेपी में शामिल हो गए.

इन चार दलबदल से जिले में राजनीतिक समीकरण के पूरी तरह से बदलने की संभावना है.

सहारनपुर का राजनीतिक युद्धक्षेत्र

1996 से ही लगातार बीएसपी सहारनपुर जिले में एक मजबूत खिलाड़ी रही है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने 1996 और 2002 में जिले की हरोरा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी.

बीएसपी ने लगातार तीन चुनावों में जिले की सात सीटों में से एक बड़ा हिस्सा अपने नाम किया: 2002 और 2012 में चार-चार सीट जबकि 2007 की बीएसपी लहर के दौरान सात में से छह पर बाजी मारी.

सहारनपुर की आबादी में में दलितों की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है, लेकिन खास बात यह है कि जाटव, जिस समुदाय से मायावती हैं, कई अन्य जिलों की तुलना में यहां अधिक अनुपात में हैं. इस सीट पर गुर्जर, सवर्ण और सैनी वोटर्स का भी बड़ा हिस्सा है.

साथ ही सहारनपुर जिले में मुसलमान 42 फीसदी हैं. यूपी के बाकी क्षेत्रों के विपरीत, जहां SP मुस्लिम वोटरों की मुख्य पसंद रही है, सहारनपुर में बीएसपी और कांग्रेस को इस समुदाय के वोट का एक बड़ा हिस्सा मिलता है.

भारतीय मुसलमानों की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण जिला है क्योंकि यहां देवबंद का दारुल उलूम सेमीनार सहारनपुर जिले में ही पड़ता है. जिले में मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व का केंद्र मसूद परिवार रहा है.

समाजवादी नेता रशीद मसूद ने सहारनपुर लोकसभा सीट से पांच बार जीत दर्ज की है, पहले जनता पार्टी, फिर लोक दल, फिर जनता दल और अंत में 2004 में SP के टिकट पर. 2011 में वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.

इमरान मसूद और नौमान मसूद दोनों ही रशीद मसूद के भतीजे हैं.

अब क्या बदल गया है?

यूपी के ज्यादातर क्षेत्रों में मुसलमान वोटरों की पहली पसंद होने के बावजूद SP ने सहारनपुर में लगातार कमजोर प्रदर्शन किया है. पिछले दो दशकों में पार्टी ने कभी भी जिले में एक से अधिक सीट अपने नाम नहीं की है. 1996 में इसे दो सीटों पर जीत मिली थी.

खास बात है कि सहारनपुर में किसी भी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं चुना गया है. लेकिन इमरान मसूद और मसूद अख्तर की SP में एंट्री के साथ इसमें बदलाव की संभावना है.

जिले में मुस्लिम वोटरों के समर्थन के मुख्य दावेदार के रूप में SP अब BSP और कांग्रेस की जगह लेने के लिए अच्छी तरह से तैयार है. इमरान मसूद और मसूद अख्तर क्रमश: नकुर और सहारनपुर विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं.

इमरान मसूद को जिले का सबसे लोकप्रिय मुस्लिम नेता माना जाता है. हालांकि वो मुख्य रूप से महागठबंधन के समीकरण के कारण BSP के हाजी फजलर्रहमान के हाथों 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे.

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SP के पास पहले से ही सहारनपुर नगर सीट से जिले के मौजूदा विधायक संजय गर्ग हैं. संजय गर्ग को अभी भी इस विधानसभा सीट पर एक मजबूत उम्मीदवार माना जाता है, जिन्हें मुसलमानों के अलावा वैश्य और ब्राह्मण वोटरों का भी कुछ समर्थन मिलता है. गर्ग हाल ही में बीजेपी के निशाने पर थे, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक मुस्लिम के नाम पर शहर में एक शमशान घाट का नाम रखा था.

हालांकि नौमान मसूद ने RLD छोड़ दिया है और BSP में शामिल हो गए. वह गंगोह सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन कहा जा रहा है कि यह सीट RLD के नहीं बल्कि SP के कोटे में पड़ रही थी, इसलिए उन्होंने BSP में जाने का फैसला किया.

पिछले दो विधानसभा चुनावों और एक उपचुनाव में गंगोह से कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता है.

SP गंगोह सीट से चौधरी इंदर सेन को मैदान में उतार सकती है. वो सहारनपुर के पूर्व सांसद चौधरी यशपाल सिंह के बेटे हैं, जो क्षेत्र के एक प्रमुख गुर्जर नेता थे.

दूसरी विधानसभा सीट जहां अब समीकरण बदल गए हैं, वह है बेहट, जहां से कांग्रेस विधायक नरेश सैनी बीजेपी में शामिल हो गए हैं. मुस्लिम वोटरों की अधिक संख्या के कारण बेहट बीजेपी के लिए आसान सीट नहीं रही है. पार्टी ने 2017 में एक बड़े अंतर से सीट गंवाई और 2012 में अपनी जमानत भी खोनी पड़ी. 2014 और 2019 की मोदी लहरों के बीच भी बीजेपी बेहट क्षेत्र में पीछे चल रही थी.

पार्टी को अब उम्मीद होगी कि सैनी के शामिल होने से उसकी सीट जीतने की संभावना बढ़ जाएगी.

सहारनपुर में बड़ी तस्वीर क्या है?

कुछ मायनों में सहारनपुर में जो कुछ हो रहा है वह यूपी चुनावों की बड़ी कहानी का ही हिस्सा है - पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में दो ध्रुव तैयार हो रहे हैं- बीजेपी और SP, लेकिन एक- दूसरे की कीमत पर

हालांकि BSP को पूरी तरह खारिज नहीं करना चाहिए. जाटव वोटरों के अपने मूल आधार को बनाए रखने पर भी यह जिले में एक मजबूत प्रतिद्वंदी पार्टी बनी रहेगी, भले ही मुसलमानों के बीच इसके समर्थन का क्षरण हो रहा हो.

सबसे चिंताजनक खबर कांग्रेस के लिए है. सहारनपुर राज्य में इसके सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी जिलों में से एक माना जाता था और यह जिले की कम से कम तीन-चार सीटों पर लड़ाई में रहती थी. लेकिन मसूद अख्तर, नरेश सैनी और खासकर इमरान मसूद के चले जाने से कांग्रेस के लिए जिले में प्रासंगिक बने रहना मुश्किल हो सकता है.

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