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उत्तर प्रदेश में जैसे ही विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) की तारीखों का ऐलान हुआ, बीजेपी से कई बड़े ओबीसी नेता एसपी में शामिल हो गए. इसे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का बड़ा मास्टर स्ट्रोक और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की विफलता बताई जा रही है. ये बीजेपी (BJP) के लिए इसलिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि इस चुनाव में अखिलेश यादव गैर यादव ओबीसी (Non-Yadav OBC) को जोड़ना चाहते थे. वे कुछ हद तक इसमें सफल भी हुए हैं. ये वही गैर यादव ओबीसी वोट है, जिसने साल 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2019) में बीजेपी को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
चुनाव से 5 महीने पहले यूपी मंत्रिमंडल का विस्तार करना पड़ा
उत्तर प्रदेश में 44% ओबीसी, 20.1% दलित (एससी), 0.1% एसटी, 14.2% फॉरवर्ड कास्ट और 20% मुस्लिम हैं. इन जातियों के समीकरण को सही तरीके से साधने के लिए ही चुनाव से ठीक 5 महीने पहले योगी के मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया, जिसमें 3 नए चेहरों को शामिल कर एससी-एसटी के 11 मंत्री बनाए गए.
वहीं, ओबीसी के 3 और मंत्रियों को शामिल कर उनकी संख्या 21 की गई. लेकिन इस विस्तार के बाद बीजेपी को बड़ा झटका ओपी राजभर ने दिया. उनके नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. अब एसपी में शामिल हो गए हैं. इसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य सहित 3 मंत्री और 11 विधायकों ने बीजेपी छोड़ दी. साल 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य मायावती का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने गैर यादव ओबीसी को बीजेपी से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यही वजह थी कि चुनाव जीतने के बाद योगी सरकार मे मंत्री बना दिए गए.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 27% यादव, 53% कुर्मी-(कोइरी)कुशवाहा, 60% अन्य ओबीसी वोट मिले. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 10% यादव, 59% कुर्मी-(कोइरी)कुशवाहा और 62% अन्य ओबीसी वोट मिले. साल 2019 में ये आंकड़ा और तेजी से बढ़े. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 23% यादव वोट, 80% कुर्मी-(कोइरी)कुशवाहा और 72% अन्य ओबीसी वोट मिले. यानी 2012 से लेकर 2019 तक बीजेपी के खाते में अन्य ओबीसी के वोट शेयर करीब 4 गुना बढ़े. इसी को देखते हुए बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम, स्वतंत्र देव को भाजपा प्रदेश प्रमुख और धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव का प्रभारी बनाया. धर्मेंद्र प्रधान ओबीसी से आते हैं.
अन्य ओबीसी का क्या महत्व है, इसे कुछ आंकड़ों और लोकसभा चुनाव 2019 के जरिए भी समझते हैं. साल 2019 में एसपी और बीएसपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इसे महागठबंधन नाम दिया गया. हालांकि गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में इस महागठबंधन का प्रयोग सफल था. लेकिन लोकसभा में फेल साबित हुआ. इसके पीछे कई वजहें थीं, लेकिन अन्य ओबीसी का बीजेपी के साथ जाना एक बड़ी वजह साबित हुई.
अब वापस आते हैं बीजेपी से ओबीसी के कुछ नेताओं का एसपी में जाने पर. ऐसा नहीं है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ही बीजेपी के सबसे बड़े ओबीसी चेहरा थे. केशव प्रसाद मौर्य भी हैं. पार्टी ने उन्हें डिप्टी सीएम भी बनाया. लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य के एसपी में जाने के बाद केशव मौर्य की जिम्मेदारी बढ़ गई है. सीधे उनके कंधों पर अन्य ओबीसी वोटरों को लाने का जिम्मा आ गया है. तीन दशक से यूपी की राजनीति में सक्रिय स्वामी प्रसाद मौर्य को भी साबित करना होगा कि पिछड़ा वर्ग और कोइरी समाज में उनका जनाधार है.
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